अंगदान: गत माह एक लाइफ इंश्योरैंस मल्टीनैशनल ने भारत में अंगदान की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की थी। उन्होंने देश के 12 शहरों में 1565 लोगों के साथ गुणवत्तापूर्ण तथा संख्यात्मक साक्षात्कारों का एक मिश्रण आयोजित किया ताकि यह समझा जा सके कि अंगदान की प्रक्रिया में लोगों द्वारा निर्णय लेने को क्या कारक प्रभावित करते हैं। परिणामों ने कुछ दिलचस्प लेकिन अनाश्चर्यजनक आंकड़ों पर रोशनी डाली।
‘लाइफ आफ्टर लाइफ: स्टेट आफ आर्गन डोनेशन इन इंडिया‘ शीर्षक से करवाए गए इस शोध में भाग लेने वाले अधिकतर लोग अंगदान बारे जागरूक थे मगर केवल 35 प्रतिशत को इसकी प्रक्रिया बारे समझ थी। जहां 67 प्रतिशत का यह मानना था कि अंगदान महत्वपूर्ण है, केवल 24 प्रतिशत अपने अंग दान करने के इच्छुक थे तथा मात्र 3 प्रतिशत ने खुद का प्रशासन के साथ पंजीकरण करवाया था।
निराशाजनक आंकड़े: अंगदान
अंगदान सर्वाधिक महान कार्यों में से एक है जिसमें कोई व्यक्ति किसी अन्य को नया जीवन उपहार में दे सकता है। फिर भी भारत में अंगों की अनुपलब्धता के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख लोग मारे जाते हैं। इस निराशाजनक आंकड़े के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं।
एक हैल्थकेयर संस्थान के प्रबंध निदेशक डा. धर्मेंद्र नागर का कहना है कि ब्रेन डैथ के बारे में जानकारी का अभाव, सामाजिक – सांस्कृतिक कारक, धार्मिक मान्यताएं तथा संगठनात्मक समर्थन का अभाव प्रमुख कारणों में से कुछ हैं। इनके अतिरिक्त प्रत्यारोपण केंद्रों की पर्याप्त संख्या तथा अच्छी तरह से प्रशिक्षित प्रत्यारोपण समन्वयकों का अभाव हमारे अंगदान कार्यक्रम के सामने अन्य चुनौतियां हैं।
दरअसल अंगदान दर के मामले में भारत विश्व में सबसे कम दरों वाले देशों में से एक है। कुछ पश्चिमी देशों की तुलना में यहां मृतकों के अंगदान करने की दर प्रति 10 लाख लोगों के पीछे लगभग 0.3 है जबकि अमरीका में प्रति 10 लाख के पीछे अंगदान की दर 26, स्पेन में 35 तथा क्रोएशिया में 36.5 है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमानों के अनुसार भारत में प्रति वर्ष 1 से 2 लाख किडनियों की जरूरत होती है। हालांकि वास्तव में महज 5000 प्रत्यारोपण किए जाते हैं। दानकर्त्ताओं में से अधिकतर जीवित व्यक्ति होते है, बजाय शवों के। नैशनल आर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (नोट्टो) की निदेशक डा. वसंती रमेश का मानना है कि इसके प्रति जागरूकता समय की मांग है।
कारणों का मिश्रण: अंगदान
गलतफहमी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है, जो अंगदान की प्रक्रिया के आड़े आती है। सीनियर कंसल्टैंट डा. नवीन गोयल का कहना है कि अंगदान के बारे में सही जानकारी का अभाव न होने जैसी चुनौतियां न केवल समाज में बल्कि चिकित्सा समुदाय में भी मौजूद हैं।
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में विश्वास एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है। लगभग 35 प्रतिशत लोगों का मानना है कि जब अंगदान को संभालने की बात आती है तो अस्पताल इस मामले में कुशल नहीं हैं तथा 29 प्रतिशत इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि वे कहां प्रभावपूर्ण तरीके से इस प्रक्रिया को अंजाम दे सकते हैं। लगभग 46 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि हमारे देश में अंगदान एक घोटाला तथा अविश्वसनीय प्रक्रिया है।
डा. रमेश का कहना है कि बात करना अलग चीज है तथा उस पर अम्ल करना अलग। पहली तथा सबसे महत्वपूर्ण बात, मौत के बारे में बात करने का डर समाप्त होना चाहिए। फिर हमें अंगदान बारे बात करनी चाहिए। उसके बाद लोग शपथ लेंगे। फिर जरूरी नहीं है कि शपथ लेने के बाद भी वे अंगदान करें। बीमा कम्पनी के प्रबंध निर्देशक एवं सी. ई. ओ. सुमित राय का मानना है कि इस मनोरथ का समर्थन करना हमारे लिए जरूरी है क्योंकि जीवन बीमा की ही तरह अंगदान भी लोगों को चिंतामुक्त जीवन जीने में मदद कर सकता है।
चिंता के क्षेत्र:
रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि जागरूकता (90 प्रतिशत) तथा इस विश्वास (87 प्रतिशत) के मामले में पूर्वी राज्य अग्रणी साबित हुए हैं कि अंगदान महत्वपूर्ण है। हालांकि जब प्रक्रिया की समझ (34 प्रतिशत) तथा अंगदान करने की इच्छा (24 प्रतिशत) की बात आती है तो यह आंकड़ा गिर जाता है। पश्चिमी राज्य इन सभी मापदंडों पर घटिया कारगुजारी दिखाते हुए 15 प्रतिशत के साथ अंगदान में सबसे कम इच्छा दर्शाते हैं।
अंगदान में सबसे बड़ी रुकावट शोकग्रस्त परिवार तथा ग्रीफ कौंसलर्स द्वारा समय पर सलाह देने की जरूरत है। डा. रमेश का कहना है कि हर संस्थान में ग्रीफ कौंसलर नहीं होता। जब अचानक मौत होती हैं और लोग जब मौत को स्वीकार नहीं कर पाते तब ग्रीफ कौंसलर्स की जरूरत होती है ताकि शोकग्रस्त परिवार को सांत्वना दी जा सके। मगर हमारे पास प्रत्यारोपण समन्वयक हैं जो शोक के समय की चुनौतियों से निपटने में प्रशिक्षित होते हैं।
जागरूकता के अलावा आधारभूत ढांचा भी एक मुद्दा बना हुआ है। देश में पर्याप्त संख्या में प्रत्यारोपण केंद्र नहीं हैं। डा. गोयल कहते हैं कि भारत में केवल 301 अस्पताल हैं जो अंग प्रत्यारोपण कर सकते हैं जिनका अर्थ यह हुआ कि लगभग 43 लाख लोगों के पीछे मात्र 1 ऐसा अस्पताल है जो अंग प्रत्यारोपण तथा रिट्रीवल के लिए सुविधा सम्पन्न है।
शपथ पूरी करने के रास्ते में धर्म, अंधविश्वास तथा मिथ भी आते हैं। सर्वेक्षण में 19 प्रतिशत लोगों ने माना कि यदि वे अंगदान करते हैं तो अगले जन्म में उन अंगों के बिना पैदा होंगे। दरअसल 2017 में नोट्टो ने अंगदान के बारे में बात करने तथा मौत के बाद धार्मिक मान्यताओं से संबंधित भ्रमों को दूर करने के लिए धार्मिक नेताओं के एक साथ बिठाया था।
आगे का रास्ता:
गत कुछ वर्षों के दौरान परिवर्तन देखने को मिले हैं। हाल के वर्षों में भारत में अंग्दानियो की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई दी है, फिर भी अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। दक्षिण भारत में मृतकों के अंगदान करने की संख्या में वृद्धि हुई है जबकि उत्तर भारत को अभी रफ्तार पकड़ने की जरूरत है। नोट्टो के 2017 के आंकड़े अनुसार 905 दानी दर्ज किए गए जो 2013 में 313 के मुकाबले लगभग तीन गुना वृद्धि है।
डा. नागर का कहना है कि लोगों को ब्रेन डैथ के सिद्धांत के बारे में जानकारी नहीं है जिसमें किसी व्यक्ति को सिर पर चोट या स्ट्रोक के कारण न ठीक होने वाली दिमागी क्षति पहुंचती है लेकिन अन्य अंग समर्थन के साथ या बिना कार्य कर रहे होते हैं। यहां तक कि ब्रेन डैथ की इन आधी मौतों को भी अंगदान में परिवर्तित कर दिया जाए तो बहुत सी जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।