हम गुरु गोविंद सिंह के पुत्र हैं, अपना धर्म नहीं छोड़ सकते… जब साहिबजादों ने इस्लाम की जगह चुना बलिदान: वीर बाल दिवस पर राष्ट्र का नमन, राष्ट्रपति ने 17 बच्चों को दिए राष्ट्रीय बाल पुरस्कार
वैसे तो सिख गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगजेब के भेजे वजीर खान से कई युद्ध लड़े थे और उसे कई बार धूल भी चटाई थी, लेकिन 1704 में वजीर खान ने आनंदपुर साहिब को घेरकर गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से आघात करने की साजिश रची, लेकिन जब उसमें भी विफल हुआ तो पकड़े जाने पर उसने साहिबजादों को दीवार में चुनवाया।
गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे
26 दिसंबर को आज जब पूरा देश वीर बाल दिवस मना रहा है, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों को याद किया। उन्होंने कहा कि छोटी सी उम्र में जिस तरह साहिबजादे अपने विश्वास और सिद्धांतों पर अडिग रहे थे, उनका वो साहस पीढ़ियों को प्रेरित करने वाल है। पीएम मोदी ने माता गुजरी को भी याद करते हुए लिखा कि वो प्रार्थना करते हैं कि माता गुजरी और गुरु गोबिंद सिंह हमेशा समाज निर्माण में उनका मार्ग दर्शन करते रहें।
#WATCH | Delhi | PM Narendra Modi says, "Today, we are participating in the program of 3rd Veer Baal Diwas. Our government started celebrating this day to commemorate the valour and sacrifices of the Sahibzades…Today, 17 children of our nation are receiving the award in sectors… pic.twitter.com/i2YQj261b6
— ANI (@ANI) December 26, 2024
गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे: आज के दिन राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने भी राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में 17 बच्चों को उनकी असाधारण उपलब्धियों के लिए राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्रदान किया। साथ ही उनकी असीमित क्षमताओं और अतुलनीय गुण के लिए उनकी तारीफ की। राष्ट्रपति ने कहा कि 2047 में जब हम भारत की स्वतंत्रता की शताब्दी मनाएँगे, तब ये पुरस्कार विजेता देश के प्रबुद्ध नागरिक होंगे। ऐसे प्रतिभाशाली लड़के-लड़कियाँ विकसित भारत के निर्माता बनेंगे।
President Droupadi Murmu conferred the Pradhan Mantri Rashtriya Bal Puraskar on 17 children for their exceptional achievements at a ceremony held at Rashtrapati Bhavan Cultural Centre. The President said that examples of patriotism among award-winning children reinforce our faith… pic.twitter.com/T2PC50Kj95
— IANS (@ians_india) December 26, 2024
बता दें कि वीर बाल दिवस के दिन गुरु गोबिंद सिंह के दोनों बेटों को यूँ ही याद नहीं किया जाता। आज के समय में जिस धर्म को बचाने की बात लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर करते हैं, उसी धर्म की रक्षा में गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादों ने 26 दिसंबर 1704 को अपने प्राण बलिदान कर दिए थे। आइए आज उनके उस बलिदान को फिर याद करें…
साहिबजादों को दीवार में चुनवाया गया:
वैसे तो सिख गुरु गोबिंद सिंह ने औरंगजेब के भेजे वजीर खान से कई युद्ध लड़े थे और उसे कई बार धूल भी चटाई थी, लेकिन 1704-05 में वजीर खान ने आनंदपुर साहिब को घेरकर गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से आघात करने की साजिश रची थी। मौजूदा जानकारी बताती है कि उस समय वजीर खान की फौज ने सिख सैनिकों से बार-बार पराजय झेलने के बाद आनंदपुर साहिब को चारों ओर से घेर लिया था और रसद-पानी की किल्लत पैदा करके उन्हें कमजोर करने की कोशिश की थी। इसके बाद उन्होंने संधि का प्रस्ताव देकर कहा था कि अगर गुरु गोविंद सिंह दुर्ग छोड़ देते हैं तो उन्हें और उनके परिवार को सुरक्षित निकलने के लिए रास्ता दिया जाएगा। इसके लिए मुग़ल सूबेदारों ने कुरान तक की कसम खाई थी।
हालाँकि, गुरु गोविंद सिंह ने पहले ही शर्त रख दी थी अगर वो ऐसा करते हैं तो गुरु-शिष्य का रिश्ता नहीं रहेगा। इसके बाद लगभग आठ महीने के समय तक आनंदपुर साहिब को मुगलों ने घेरे रखा और एक दिन कुरान की सौगंध को धता बताते हुए खालसा सेना पर आक्रमण कर दिया। इस दौरान सिख सेना ने गुरु गोविंद सिंह, उनकी माँ गुजरी देवी और चारों साहिबजादों (अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह) के साथ दुर्ग छोड़ने की योजना बनाई।
Today, on Veer Baal Diwas, we remember the unparalleled bravery and sacrifice of the Sahibzades. At a young age, they stood firm in their faith and principles, inspiring generations with their courage.
🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹#VeerBaalDiwas #VeerBaalDiwas2024 pic.twitter.com/R074ZY1XmG
— Delhi SCHOOL TEACHERS FORUM (@DSTF_2020) December 26, 2024
वो 21 दिसंबर, 1704 की रात थी। स्थान था सरसा नदी का तट। मौसम था ठंड और बारिश का। ऐसे कठिन समय में भी अजीत सिंह (19) और जुझार सिंह (14) को लेकर गुरु गोविंद सिंह किसी तरह चमकौर की गढ़ी तक पहुँचने में कामयाब रहे, लेकिन परिवार के बाकी लोग उनसे बिछुड़ गए। जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह के साथ उनकी दादी थीं, माँ गुजरी देवी।
गुरु गोविंद सिंह का एक पुराना रसोइया था, जिसके गाँव में जाकर इन तीनों ने शरण ली। लेकिन, उसने विश्वासघात किया और दोनों बच्चों को वजीर खान को सौंप दिया। क्रूर वजीर खान ने इन दोनों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ठंड के मौसम में उन्हें ठंडी जगह में रखा गया। वजीर खान ने दोनों साहिबजादों, जोरावर सिंह (9) और फतेह सिंह (6) के समक्ष शर्त रखी कि वो इस्लाम अपना लें, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। वजीर खान ने उन दोनों को ज़िंदा दीवार में चुनवाने का आदेश दिया। दोनों छोटे बच्चों ने कहा कि वो अपना धर्म कभी नहीं छोड़ सकते।
इस दौरान उन्होंने अपने दादा गुरु तेग बहादुर के बलिदान को भी याद किया और कहा- “हम गुरु गोविंद सिंह के पुत्र हैं, जो अपना धर्म कभी नहीं छोड़ सकते।” असल में पहले वजीर खान ने इन दोनों बच्चों को दीवार में चुनवाने के लिए मलेरकोटला के नवाब को सौंपना चाहा, जिसका भाई सिखों के साथ युद्ध में मारा गया था। लेकिन, उसने ऐसा करने से इनकार करते हुए कहा कि उस युद्ध में इन दोनों बालकों का क्या दोष? वजीर खान को लगा था कि वो बदले की आग में जल रहा होगा।
गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे: दोनों साहिबजादों में जोरावर सिंह बड़े थे। जब दीवार ऊपर उठने लगी तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। इस पर छोटे भाई ने पूछा कि क्या वो बलिदान देने से डर गए, इसीलिए रो रहे हैं? जोरावर सिंह ने जवाब दिया कि ऐसी बात नहीं हैं। वो तो ये सोच कर दुःखी हैं कि छोटा होने के कारण फ़तेह सिंह दीवार में पहले समा जाएँगे और उनकी मृत्यु पहले हो जाएगी। उन्होंने कहा- “दुःख यही है कि मेरे से पहले बलिदान होने का अवसर तुम्हें मिल रहा है।” उन्होंने कहा- “मैं मौत से नहीं डरता, वो मुझसे डरती है।”
इतिहास के किसी युद्ध में बच्चों के साथ इस तरह की अमानवीयता का उदाहरण फिर कहीं नहीं मिलता। इसके बाद फिर चमकौर की गढ़ी में भी युद्ध हुआ, जिसमें वीरता का प्रदर्शन करते हुए गुरु गोविंद सिंह के बाकी दोनों बेटों अजीत सिंह और जुझार सिंह का भी निधन हो गया। वहीं गुरु गोविंद सिंह की माँ गुजरी देवी की बात करें तो कहते हैं, अपने दोनों पोतों की मृत्यु की खबर सुनते ही उन्हें ऐसा सदमा लगा था कि उनका भी निधन हो गया था।
यही कारण है कि दिसंबर महीने का सिख पंथ में एक अलग स्थान है। चमकौर के युद्ध में तो अंतिम सिख सैनिक भी बलिदान हो गया था लेकिन लड़ते-लड़ते। इस तरह गुरु गोविंद सिंह के चारों बेटों और माँ का बलिदान हुआ, लेकिन सिख सेना ने उन्हें कुछ नहीं होने दिया। इसके बाद ही वजीर खान को अपनी क्रूरता के कारण डर का एहसास होने लगा था और ये चार साहिबजादों का बलिदान ही था कि आगे के सिखों में वीरता और बहादुरी कई गुनी हो गई और उनका साहस आसमान छूने लगा।