हेमू - हेमचंद्र विक्रमादित्य: दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट

हेमू – हेमचंद्र विक्रमादित्य: दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट

दिल्ली के सिंहासन पर बैठे अंतिम हिंदू सम्राट, जिन्होंने गोहत्या पर लगा दिया था प्रतिबंध: सरकारी कागजों में जहाँ उनका समाधि-स्थल, वहाँ दरगाह का कब्जा

हरियाणा के पानीपत में जहाँ हेमू का सिर काटा गया था, वहाँ एक समाधि बना दी गई। सौदापुर गाँव में स्थित हेमू की यह समाधि सदियों तक उपेक्षित रही। इस बीच प्रवासी मुस्लिमों ने वहाँ एक दरगाह बना दिया। सन 1990 तक यह जगह भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) के पास थी। सन 1990 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने समाधि वक्फ बोर्ड को दे दिया

Full Name: HemuHemu Vikramaditya and Hemchandra
Rule: 07 October – 05 November, 1556
Predecessor: Adil Shah Suri
Successor: Akbar
Born: 1501 – Alwar, Rajasthan
Died: 5 November 1556 (aged 54–55) Panipat, Mughal Empire
Father: Rai Puran Das
Religion: Hinduism

हेमू: दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट

भारत की धरती वीरों की जननी है। इन्हीं में से एक महावीर थे हेमू। इन्हें हेमचंद्र विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है। विक्रमादित्य एक उपाधि है, जिसे देश के हिंदू शासक धारण करते आए हैं। हेमू दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट थे। वे अद्वितीय योद्धा एवं कुशल रणनीतिकार थे। उन्हें मध्ययुग का नेपोलियन कहा जाता है। आज 5 नवंबर को उनकी पुण्यतिथि है।

हेमू का जन्म 1501 ईस्वी में राजस्थान के अलवर क्षेत्र में राजगढ़ के निकट माछेरी ग्राम में के एक साधारण परिवार में हुआ था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि हेमू बिहार के सासाराम के रहने वाले थे। साधारण परिवार में जन्म लेकर एक व्यापारी से वजीर (प्रधानमंत्री) और सेनापति होते हुए उन्होंने दिल्ली के ताज तक का सफर उन्होंने अपने पराक्रम से हासिल किया।

हेमू ने अपने जीवन में 22 लड़ाइयाँ लड़ीं और विजयी रहे। आगे चलकर उन्होंने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की। हेमू का उद्भव ऐसे समय में हुआ, जब हिंदुस्तान में मुगल एवं अफगान दिल्ली की सत्ता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे। वे दिल्ली की सत्ता हासिल करने में सफल रहे, लेकिन यह अधिक समय तक कायम नहीं रही। भारतीय इतिहास की यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।

हेमू की कहानी शुरू होती है व्यापार से। उनका परिवार किराने का काम करता था। हेमू जब बड़े हुए तो वे भी अपने परिवार के व्यवसाय शामिल हो गए। अकबर के जीवनीकार अबुल फ़ज़ल ने उन्हें फेरीवाला कहा है, जो रेवाड़ी की गलियों में नमक बेचा करते थे। उन दिनों ईरान-इराक से दिल्ली के मार्ग पर रिवाड़ी महत्वपूर्ण नगर था। उन्होंने शेरशाह की सेना को रसद और जरूरी सामग्री पहुँचानी शुरू कर दी थी।

हेमू में युद्ध में काम आने वाले शोरा भी बेचने लगे थे। इसके कारण वे शेरशाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह की नजर में आ गए। आगे चलकर वे शेरशाह के विश्वासपात्र बन गए। शेरशाह की 22 मई 1545 को मौत हो गई। उसके बाद इस्लाम शाह ने हेमू को शानाये मण्डी, दरोगा-ए-डाक चौकी तथा प्रमुख सेनापति के साथ-साथ अपना सलाहकार बना दिया। यह स्थान ब्रह्मजीत गौड़ नाम के एक ब्राह्मण को हासिल था।

सन 1552 में इस्लाम शाह की मौत हो गई। इस्लाम शाह की मौत के बाद उसके दो साल के बेटे फिरोज खान को शासक बनाया गया, लेकिन उसके मामा मुबारक शाह उर्फ आदिल शाह ने उसकी हत्या कर दी। भोग-विलास में डूबे आदिल शाह के समय हर तरफ अराजकता फैल गई। इसके बाद आदिल शाह ने हेमू को प्रधानमंत्री तथा अफगान सेना का मुख्य सेनापति बना दिया।

इस बीच बाबर का बेटा हुमायूँ 1555 में भारत लौटा और दिल्ली पर हमला कर दिया। आदिल शाह ने हेमू को लड़ाई के लिए भेजा और खुद चुनार भाग गया। अब सूरी वंश का चार भागों में बँट गया था, जिसका एक हिस्सा आदिल शाह के अंतर्गत था। 26 जनवरी 1556 को हुमायूँ की मौत हो गई और अकबर को गद्दी मिली। उस समय अकबर की उम्र 13 साल थी। बैरम खाँ को उसका अभिभावक नियुक्त किया गया।

हेमू ने इसे एक महत्वपूर्ण मौका माना। उन्होंने आगरा के मुगल गवर्नर इसकंदर खाँ उजबेग को पराजित किया शहर को कब्जे में ले लिया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली का रूख किया। दिल्ली का मुगल गवर्नर तारीफ बेग खाँ अत्यधिक घबराकर बैरम खाँ से सेना भेजने का आग्रह किया। सेनापति पीर मोहम्मद शेरवानी के नेतृत्व में आई मुगल सेना को हेमू ने 6 अक्तूबर 1556 को तुगलकाबाद में बुरी तरह परास्त किया।

इस तरह 7 अक्तूबर 1556 को हेमू ने दिल्ली सिंहासन पर कब्जा कर लिया। इस तरह से एक भारत के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई। उनका दिल्ली के पुराने किले, जिसे पांडव निर्मित किला कहा जाता है, में राज्याभिषेक हुआ। दिल्ली की गद्दी बैठते ही उन्होंने कई घोषणाएँ कीं, जिनमें से एक गोहत्या पर प्रतिबंध भी था।

Maharaja Hemu Bhargava - Victor of Twenty Two Pitched Battles

सम्राट के रूप में हेमचंद्र ने घोषणा की कि उनके राज्य में गोहत्या पर प्रतिबंध होगा और जो इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसका सिर काट लिया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने दूसरी घोषणा भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों को हटाने की की। उन्होंने शासन प्रशासन से लेकर वाणिज्य तक, हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए। अब हेमू का अगला लक्ष्य मुगलों और अफगानों को भारत से खदेड़ने का था। उन्होंने इसकी तैयारी शुरू कर दी।

दिल्ली में हार का समाचार सुनकर बैरम खाँ बौखला गया। उस समय पंजाब के जालंधर में बैरम ख़ाँ अकबर के साथ था। अकबर वापस काबुल जाना चाहता था, लेकिन बैरम खाँ इस हार को पचा नहीं पा रहा था। हार की जानकारी देने टारडी ख़ाँ दिल्ली से भाग कर अकबर के ख़ेमें में गया तो बैरम खाँ ने उसका सिर काट दिया। बैरम खाँ ने कहा कि इससे लोगों को सबक मिलेगा कि युद्ध से भागने का क्या अंजाम होता है।

उधर हेमू को पता चला कि बैरम खाँ हमले की योजना बना है तो उन्होंने अपनी तोपें पानीपत की तरफ भेज दीं। बैरम ख़ाँ ने भी अली क़ुली शैबानी के नेतृत्व में 10,000 सेना पानीपत की भेज दिया। हेमू की सेना में 30,000 अनुभवी घुड़सवार और 500 से 1500 के बीच हाथी थे। हाथियों की सूढ़ों में तलवारें और बरछे बँधे हुए थे और उनकी पीठ पर युद्ध कौशल में पारंगत तीरंदाज़ सवार थे।

6 नवंबर 1556 की पानीपत की दूसरी लड़ाई के नाम से मशहूर इस लड़ाई में सिर में कोई कवच नहीं पहना था। वे हाथी पर बैठकर सेना का लगातार जोश बढ़ा रहे थे। यह लड़ाई बहुत भयंकर थी। क्षत्रियों के नेतृत्व में यह हेमू के हमले से मुगल सेना बिखर गई थी। बदायूँनी ने अपनी किताब ‘मुंतख़ब-उत-त्वारीख़’ में इसका जिक्र किया था। हेमू अपनी जीत के करीब थे।

इस बीच क़ुली शैबानी के सैनिक हेमू की सेना पर लगातार तीरों की बौछार कर रहे थे। इन्हीं में से एक तीर उनकी आँख में जा धँसा। हरबंस मुखिया अपनी किताब ‘द मुग़ल्स ऑफ़ इंडिया’ में मोहम्मद क़ासिम फ़ेरिश्ता के हवाले से लिखते हैं कि तीर लगने पर भी हेमू ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपनी आँख तीर निकाला और रूमाल से ढ़क कर लड़ना जारी रखा।

हालाँकि, अत्यधिक खून बहने के कारण हेमू बेहोश होकर अपनी हाथी के हौदे में गिर गए। इस बीच क़ुली शैबानी ने बिना महावत के एक हाथी को घूमते हुए देखा तो उसने एक व्यक्ति को उस पर चढ़कर देखने के लिए कहा। जब वह व्यक्ति हाथी पर चढ़कर देखा तो उसमें एक व्यक्ति बेहोश दिखा। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि हेमू थे। इसके बाद शैबानी उस हाथी को हाँक कर अकबर के पास ले गया।

इसकी जानकरी मिलते ही हेमू की सेना के हताशा छा गई और मुगल सेना खुशियाँ मनाने लगी। उधर, हेमू को जंजीरों से बाँधकर अकबर के सामने पेश किया। बैरम खाँ ने अपनी तलवार से हेमू का सिर काट दिया। उनका सिर काबुल भेजा गया और धड़ को दिल्ली दरवाजे पर लटका दिया गया। हेमू के पुराने घर माछेरी पर आक्रमण कर लूटमार की गई। उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास के साथ-साथ कई रिश्तेदारों को इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा गया।

जब सम्राट हेमचंद्र के परिजन और रिश्तेदार नहीं माने तो उनका कत्ल कर दिया गया। इससे एक मीनार बनाई गई। इस मीनार की पेंटिंग अकबरनामा में भी है। इस तरह हेमू एक शूरवीर की तरह युद्ध क्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गए और 29 दिन के उनके शासन का अंत हो गया। विन्सेंट ए स्मिथ अकबर की जीवनी में लिखते हैं, “क्षत्रिय (राजपूत) नहीं होने के बावजूद हेमू ने युद्ध के मैदान पर आखिरी साँस ली।”

Hemu's Samadhi Sthal
Hemu’s Samadhi Sthal

सम्राट हेमू – हेमचंद्र विक्रमादित्य की समाधि वक्फ बोर्ड के पास

हरियाणा के पानीपत में जहाँ हेमू का सिर काटा गया था, वहाँ एक समाधि बना दी गई। सौदापुर गाँव में स्थित हेमू की यह समाधि सदियों तक उपेक्षित रही। इस बीच प्रवासी मुस्लिमों ने वहाँ एक दरगाह बना दिया। सन 1990 तक यह जगह भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) के पास थी। सन 1990 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने समाधि वक्फ बोर्ड को दे दिया

जिस जगह सम्राट हेमू की समाधि है, वह पूरा क्षेत्र 10 एकड़ का है। चौटाला ने उन सारी जमीनों को वक्फ को दे दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय हरियाणा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मेवात क्षेत्र के एक मुस्लिम विधायक थे। उस विधायक पर कुछ लोगों से पैसे लेकर सम्राट हेमचंद्र की समाधि पर अतिक्रमण की अनुमति देने के आरोप लगे थे। इसको लेकर दोनों समुदायों में विवाद चल रहा है।

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