‘वो दुष्ट पहाड़ी राजा मूर्तिपूजक, मैं मूर्तिभंजक हूँ’: गुरु गोविंद सिंह ने की थी मुगलों को गद्दी दिलाने में सहायता – किताबों में पूरा इतिहास
बहादुर शाह ने कवि नंदलाल के माध्यम से गुरु से सहायता माँगी और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। उन्होंने भाई धर्म सिंह के साथ 200-250 लड़ाकू सिखों का एक जत्था बहादुर शाह की सहायता के लिए भी भेजा।
सिख और हिन्दुओं के इतिहास की बात करते हुए इससे पहले हमने आपको बताया था कि किस तरह गुरु नानक के बेटे ही अपने पिता से अलग रास्ते पर चले थे और उन्होंने ‘उदासी संप्रदाय‘ की स्थापना की। दूसरे लेख में हमने जाना कि मिर्जा राजा जय सिंह और उनके बेटे राम सिंह ने औरंगजेब से गुरु तेग बहादुर की रक्षा की। जय सिंह ने अपनी हवेली दान में दे दी, जिसे आज ‘गुरुद्वारा बँगला साहिब‘ कहते हैं। अब हम बात करेंगे कि गुरु गोविंद सिंह के हिन्दुओं से कैसा रिश्ता था और उन्होंने खुद को क्यों ‘मूर्तिभंजक’ कहा था।
आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि गुरु गोविंद सिंह ने कभी औरंगजेब की प्रशंसा की थी। जब गुरु के बच्चों को दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया गया था और मुग़ल इस भ्रम में थे कि उन्होंने गुरु गोविंद सिंह को मार डाला है, उस दौरान वो दीने नाम के एक गाँव में अपने एक श्रद्धालु के यहाँ ठहरे हुए थे। वो वेश बदल कर घूम रहे थे। इसी गाँव से उन्होंने औरंगजेब को एक खत भेजा, जिसे ‘फतेह-पत्र’ या फिर ‘जफरनामा’ के नाम से भी जाना जाता है। ये पत्र औरंगजेब के दरबार में पहुँचा भी था।
डॉक्टर महीप सिंह अपनी पुस्तक ‘गुरु गोविंद सिंह: एक युग व्यक्तित्व’ में लिखते हैं कि इस पत्र में उन्होंने औरंगजेब की प्रशंसा करते हुए उसे वीर योद्धा और ‘चतुर राजनीतिज्ञ’ बताया था। लेकिन, साथ ही उसे अधार्मिक बता कर उसकी निंदा भी की थी। उन्होंने लिखा है कि औरंगजेब की मौत के बाद जब दिल्ली में गद्दी का संघर्ष शुरू हुआ तो गुरु गोविंद सिंह ने बहादुर शाह का साथ दिया और उसके बादशाह बनने के बाद वो उसके साथ दोस्त बन कर रहते थे, उसकी यात्राओं पर भी साथ जाते थे।
बहादुर शाह को बादशाह बनाने में गुरु गोविंद सिंह ने की थी मदद
कहते हैं, कि इस पत्र को पढ़ कर औरंगजेब को ग्लानि हुई थी और उसने गुरु गोविंद सिंह से मिलने की इच्छा प्रकट की। हालाँकि, गुरु गोविंद सिंह जब दिल्ली के लिए निकले तो रास्ते में ही उन्हें मुग़ल बादशाह की मौत का समाचार प्राप्त हुआ। उस समय गद्दी का कानूनी अधिकारी बहादुर शाह अफगानिस्तान का सूबेदार था, जिसका फायदा उठाते हुए मुहम्मद आजम ने गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया। बहादुर शाह उस समय पंजाब में कत्लेआम मचाता हुआ आगे बढ़ रहा था।
फ़ारसी का एक कवि नंदलाल गुरु गोविंद सिंह का मित्र था। अपनी पुस्तक ‘देश-धर्म के रक्षक गुरु गोविंद सिंह’ में जसविंदर कौर बिंद्रा लिखते हैं कि बहादुर शाह ने कवि नंदलाल के माध्यम से गुरु से सहायता माँगी और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। उसने गुरु का आशीर्वाद माँगते हुए भरोसा दिलाया था कि वो सत्ता संभालते ही उनके साथ हुए अत्याचारों का न्याय करेगा। उन्होंने भाई धर्म सिंह के साथ 200-250 लड़ाकू सिखों का एक जत्था बहादुर शाह की सहायता के लिए भी भेजा।
बहादुर शाह ने अपने भाई को मार गिराया और उसके बाद सत्ता पर काबिज हुआ। इसके बाद उसने सहायता हेतु धन्यवाद करने के लिए सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह को आगरा निमंत्रित किया। माता साहिब कौर के साथ वो आगरा पहुँचे और मुग़ल बादशाह का आतिथ्य स्वीकार किया। इसी दौरान का एक लोकप्रिय वाकया है जब दरबार में गुरु की बादशाह की नजदीकी के कारण ईर्ष्या से भरे एक मुस्लिम दरबारी ने गुरु गोविंद सिंह से कुछ चमत्कार दिखाने की जिद कर डाली।
इस पर गुरु गोविंद सिंह ने कहा, “बादशाह बहादुर शाह स्वयं एक कारामात हैं। जब चाहें, किसी बड़े से बड़ा को नीचा दिखा सकते हैं और नीचे से नीचे को भी ऊँचा उठा सकते हैं। ताकतवर को मिट्टी में मिला सकते हैं। क्या यह करामात नहीं है?” हालाँकि, जब वो बार-बार जिद करने लगा तो गुरु गोविंद सिंह ने अपनी तलवार निकाली और उसे ‘चमत्कार’ दिखाने के लिए आगे बढ़े, लेकिन उसने तुरंत माफ़ी माँग ली। हालाँकि, गुरु गोविंद सिंह ने मराठों के विरुद्ध बादशाह की लड़ाई में हिस्सा लेने से साफ़ इनकार कर दिया था।
हिन्दू-सिख इतिहास 2: गुरु गोविंद सिंह ने खुद को बताया था ‘मूर्तिभंजक’
अब वापस लौटते हैं गुरु गोविंद सिंह द्वारा औरंगजेब को भेजे गए पत्र पर। इस पत्र में उन्होंने औरंगजेब से पूछा था कि वो पहाड़ी सरदारों का साथ क्यों दे रहा है? पहाड़ी सरदार हिन्दू थे और मूर्तिपूजा करते थे। वहीं गुरु गोविंद सिंह ने खुद को ‘मूर्तिभंजक (बुतशिकन)’ बताया। गुरु गोविंद सिंह ने कई बार खुद को मूर्तिपूजा का विरोधी बताया था और ‘पत्थरों की पूजा’ का विरोध किया था। उनका कहना था कि ईश्वर इन पत्थरों में नहीं रहता है। उनका कहना था कि ईश्वर को जाए बिना ही अधिकतर लोग अलग-अलग कर्मकांडों में व्यस्त हैं।
पहाड़ी राजाओं से युद्ध को लेकर भी उन्होंने यही दलील देते हुए कहा था कि वो ‘दुष्ट मूर्तिपूजक’ हैं, जबकि मैं एक मूर्तियों को खंडित करने वाला हूँ। ‘ज़फरनामा‘ के 95वें पद्य में उन्होंने ये बात कही है। असल में यर पत्र उन्होंने औरंगजेब को इसीलिए लिखा था, क्योंकि उसने वादा कर के धोखा दिया था। उसने गुरु और उनके परिवार को सुरक्षित निकलने का वचन दिया था, लेकिन ‘चमकूर के युद्ध’ में मुग़ल फ़ौज गुरु गोविंद सिंह को खोज रही थी, ताकि उनका सिर बादशाह को पेश किया जाए।
Everyone knows about the boast of Guru Govind Singh in his #Zaffarnama, “ I’m also the annihilated Of Hill Rajas, idol worshippers. They are idol worshippers & I’m idol breaker “ !
Sikhs have tried to put spin to it but they were idol breakers even before Govind Singh said so… https://t.co/gz2TjSSooI pic.twitter.com/DmuTFyjuoQ
— OliveGreens09 (PROUD ONIONIST) ! (@OliveGreens09) January 28, 2021
इस धोखे की उन्होंने औरंगजेब को याद दिलाई थी। हालाँकि, कई लोग ‘दशम ग्रन्थ’, जिसका हिस्सा ‘जफरनामा’ है, उसकी रचना को लेकर सवाल भी खड़े करते हैं और कहते हैं कि ये गुरु गोविंद सिंह के जीवनकाल के बाद अस्तित्व में आया, ऐसे में इस पर संदेह है कि उन्होंने ही इसकी रचना की थी। कहते हैं कि इस पत्र को पाने के बाद औरंगजेब ने वजीर खान को आदेश दिया था कि वो गुरु को तंग न करे। कई लोग इसे गुरु गोविंद सिंह की चतुर कूटनीति का हिस्सा भी मानते हैं।
गुरु गोविंद सिंह की सेना ने हिन्दू पहाड़ी राजाओं से युद्ध के बाद उन्हें खासा नुकसान पहुँचाया था। इसमें से कुछ ऐसे थे जिन्होंने उन्हें उनके पिता के बलिदान के बाद शरण दी थी। इसीलिए, ये कहना बिलकुल गलत है कि सिखों ने केवल हिन्दुओं की रक्षा के लिए ही तलवार उठाए थे। लेखक कोएंराल्ड एल्स्ट (Dr. Koenraad Elst) कहते हैं कि गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों से तभी युद्ध किया, जब उन्हें मजबूरी में करना पड़ा। उनका कहना है कि इसमें ‘हिंदुत्व को बचाने’ जैसी कोई बात नहीं थी।