3000 वर्ष पुराना है भारत में यहूदियों का इतिहास

भारत में यहूदियों का इतिहास: 3000 वर्ष पुराना

हिन्दू राजाओं ने बसाया, इस्लामी व पुर्तगाली ताकतों ने किया अत्याचार: 3000 वर्ष पुराना है भारत में यहूदियों का इतिहास

माना जाता है कि राजा सोलोमन (970-931 BC राज्यकाल) के समय व्यापारी के रूप में ये यहूदी केरल आए थे। इससे इजरायल और दक्षिण भारत के बीच होने वाले प्राचीन व्यापार के बारे में भी पता चलता है।

भारत में यहूदियों का इतिहास: फिलिस्तीन में बैठे हमास के आतंकियों ने इजरायल पर रॉकेट दागे, जिसके जवाब में इजरायल ने भी करारा हमला किया। 57 इस्लामी मुल्कों वाले संगठन OIC ने एक सुर में उम्माह का हवाला देते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया और इजरायल की निंदा की। भारत ने भले ही दोनों पक्षों को शांति के लिए समझाया, लेकिन भारतीयों ने जिस तरह से इजरायल के समर्थन में आवाज़ बुलंद किया, उसे दिल्ली में वहाँ के राजदूत ने भी सलाम किया।

ये सब कुछ अचानक नहीं हुआ। समुद्र और इस्लामी मुल्कों से घिरे इजरायल में यहूदियों ने किस तरह से अपना अस्तित्व बचा कर रखा है, ये एक बहुत ही बहादुरी भरा कार्य है। अपनी तकनीकी क्षमता और निर्णय लेने की निडरता के कारण इजरायल से उलझने वाले आतंकियों को इसके भयंकर दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। हमास तो दशकों से उसका दुश्मन बना हुआ है और पूरे इजरायल पर कब्ज़ा इन इस्लामी कट्टरपंथियों का लक्ष्य है।

भारत का यहूदियों से काफी प्राचीन सम्बन्ध रहा है। भारत के मालाबार इलाके में यहूदी प्राचीन काल से ही बसे हुए थे, जिन्हें ‘कोचीन यहूदी’ कहा गया। वो वहाँ कैसे आए, इसे लेकर अलग-अलग दस्तावेज अलग-अलग दावे करते हैं। माना जाता है कि राजा सोलोमन (970-931 BC राज्यकाल) के समय व्यापारी के रूप में ये यहूदी केरल आए थे। इससे इजरायल और दक्षिण भारत के बीच होने वाले प्राचीन व्यापार के बारे में भी पता चलता है।

जब यहूदियों के खिलाफ दुनिया भर में अत्याचार हो रहे थे, तब भी भारत में वो सुरक्षित थे और आज तक उन्हें अपने मजहब को लेकर घृणा का सामना नहीं करना पड़ा। अब यहाँ के यहूदियों ने अपनी संस्कृति को भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ कर अपनी पहचान को नया रूप दिया है। 1940 के दशक में भारत में 20,000 से भी अधिक यहूदी रहते थे लेकिन इजरायल के गठन के बाद उनमें से कई ने वहाँ घर बसाया।

यहूदियों में भी कई प्रकार के समुदाय हैं। भारत में भी लगभग 7 प्रजाति के यहूदी रहते हैं। कोचीन के अलावा ‘चेन्नई यहूदी’ भी हैं, जो 17वीं शताब्दी में हीरे के कारोबारी के रूप में भारत आए थे। वहीं ‘नगरकोइल यहूदी’ अरब से 52 AD के आसपास आए थे। इसके बाद आते हैं वो यहूदी, जिन्हें गोवा पर पुर्तगाल के आक्रमण के बाद अत्याचार का सामना करना पड़ा। ‘बेने इजरायल’ समुदाय के यहूदी कराची में रहते थे, लेकिन विभाजन के बाद उन्हें भागना पड़ा।

लगभग 250 वर्ष पहले सूरत में आकर कुछ ‘बगदादी यहूदी’ बसे थे। इजरायल के ‘खोए हुए समुदायों’ में से एक समूह तेलुगु राज्यों में भी बसा हुआ है। कोचीन आए यहूदियों के बाद इजरायल में एक ‘सेकेण्ड टेम्पल’ को ध्वस्त किए जाने के बाद वहाँ से कई यहूदियों को भागना पड़ा, जिनमें से एक खेप भारत भी आया। जेरुसलम में स्थित ‘सेकेण्ड टेम्पल’ रोमन साम्राज्य ने अपने खिलाफ विद्रोह को दबाने के लिए इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया।

रोमन के खिलाफ यहूदियों ने तीन बड़े विद्रोह किए। उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। यहूदियों का नरसंहार हुआ, उन्हें भगाया गया और अपने ही देश को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। कोचीन यहूदियों के भारतीय राजाओं के साथ इतने अच्छे सम्बन्ध थे कि उन्हें ताँबे की प्लेट देकर समाज में एक अलग दर्जा दिया गया था। उस समय के दस्तावेजों से पता चलता है कि यहूदियों को कुछ गाँवों में ‘दुनिया ख़त्म होने तक’ रहने के अधिकार दिए गए थे।

ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबिल में लिखा है कि किस तरह राजा सोलोमन ‘ओफिर’ नामक स्थान से समुद्र के रास्ते सोने-चाँदी का व्यापार करता था। सर विलियम स्मिथ ने ‘अ डिक्शनरी ऑफ द बाइबिल’ में केरल के पूवर को ही ‘ओफिर’ बताया है। कुछ इतिहासकारों ने इसे केरल के कोझिकोड में स्थित प्राचीन नगर बेपुर के रूप में चिह्नित किया। वहीं मैक्स मुलर ने ब्रिटिश काल में गुजरात में स्थित अभिरा को ‘ओफिर’ बताया।

इस जगह को प्राचीन दस्तावेजों में चन्दन, मोर और हाथीदाँत के लिए भी प्रसिद्ध बताया गया है। केरल में 70 AD में रोमन अत्याचार के बाद बड़ी संख्या में यहूदी शरणार्थी पहुँचे। कोडुंगल्लार के हिन्दू महाराजा ने न सिर्फ उनका स्वागत किया, बल्कि रहने के लिए जमीन भी दी। उन्हें अपने धर्म के पालन की आज़ादी दी गई। उस समय केरल में चेरा / पेरुमल राजाओं का शासन था। अंजुवन्नम में भारत के पहले यहूदी गाँव के बसने के सबूत मिलते हैं।

राजा भास्कर रवि वर्मा ने इस गाँव को यहूदियों को उपहार के रूप में दिया था। 1000 CE में यहूदियों के पूर्वज जोसेफ रब्बन को उन्होंने ये उपहार दिया था। रब्बन के नेतृत्व में वहाँ यहूदी लगातार फले-फूले। अंजुवन्नम को ‘पूर्व का जेरुसलम’ कहा जाने लगा। इसके बाद ही यहूदी कोचीन में बसे। हालाँकि, यहूदियों के स्थान बदलने के लिए उनके भीतर की लड़ाई भी जिम्मेदार थी। इस्लामी और पुर्तगाली अत्याचार ने रही-सही कसर पूरी की।

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कोडुंगल्लार को तब क्रैंगनोर के रूप में जाना जाता था। पेरियार नदी के किनारे बसा ये शहर एक अमीर और समृद्ध इलाकों में से एक था। पेरियार नदी में 1341 में आई भीषण बाढ़ के बाद ये इलाका पानी में चला गया और मालाबार का कोचीन सबसे बड़ा बंदरगाह बन कर उभरा और यहूदी भी उधर ही बसने लगे। रब्बन के दो बेटों के बीच संपत्ति विवाद के कारण भी उनका पलायन हुआ। इससे वहाँ के राजाओं द्वारा उन्हें दी जा रही सुरक्षा में भी कमी आई।

जोसेफ रब्बन को भारतीय राजाओं ने कर में छूट से लेकर व्यापार में सहायता तक प्रदान की। लेकिन, दुनिया भर में यहूदियों के खिलाफ ‘Anti-Semitism‘ की भावना का पीछा भारत में भी नहीं छूटा और कुछ विदेशी ताकतों ने यहूदियों पर अत्याचार किया। 1524 में कोडुंगल्लूर में मुस्लिमों और यहूदियों के बीच जबरदस्त संघर्ष हुआ। एक मुस्लिम सरदार के आतंक के कारण भी वहाँ से यहूदियों का पलायन हुआ।

फिर हिन्द महासागर में कारोबार के लिए यूरोप और इस्लामी ताकतों में हिंसक संघर्ष होने लगा, जिसमें यहूदी काफी कमजोर पड़ गए। गोवा में जब पुर्तगाल का शासन आया, तब फिर यहूदियों पर अत्याचार हुए। यहूदियों का भारत के साथ सम्बन्ध काफी पुराना है। प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सूर्य सिद्धांत’ को एक यहूदी खगोलविद सनद इब्न अल यहूदी ने 9वीं शताब्दी में अरबी में अनुवाद किया। दोनों सभ्यताओं के बीच गणित और खगोल ज्ञान का आदान-प्रदान हुआ।

यहूदियों के पवित्र स्थल को सिनेगॉग कहते हैं। आज भी भारत में आपको कई सिनेगॉग मिलेंगे। हालाँकि, इनमें से कई अब सक्रिय नहीं हैं और देखभाल के अभाव में ध्वस्त होने लगे हैं। अरब और यूरोप में जहाँ यहूदियों को घृणा व हिंसा का सामना करना पड़ता था, भारत में उन्हें शांति मिलती थी और सिनेगॉग के निर्माण की इजाजत भी। केरल में पहला सिनेगॉग के निर्माण के लिए राजा ने ही जमीन दी थी।

भारत में अब भी 60 से भी अधिक यहूदियों के सक्रिय और निष्क्रिय सिनेगॉग मौजूद हैं। महाराष्ट्र में इनमें से कई अब भी मौजूद हैं। पहले यहूदी लोग अपने घरों में ही सिनेगॉग बना कर प्रार्थना करते थे। कोंकण में अब भी आपको ‘बेने इजरायल’ समुदाय के यहूदी मिल जाएँगे, जो मराठी भाषी हैं। केरल में पहली बार 1564 में ‘Paradesi Synagogu’ का निर्माण हुआ, जो यहाँ का सबसे पुराना है। इसके लिए भी जमीन कोच्चि के महाराजा ने ही दी थी।

Paradesi Synagogue (भारत में यहूदियों का इतिहास)

The Paradesi Synagogue was built in 1568 by Samuel Castiel, David Belila, and Joseph Levi for the flourishing Jewish community in Kochi composed mainly of Malabari Jews and the refugees from the Portuguese religious persecution of Jews locally from Cranganore and farther a field originating from Spain and Portugal. It is the oldest active synagogue in the Commonwealth of Nations, located in Kochi, Kerala, in South India. (The first synagogue in India was built in the 4th century in Kodungallur (Cranganore) when the Jews had a merchantile role in the South Indian region (now called Kerala) along the Malabar coast. When the community moved to Kochi in the 14th century, it built a new synagogue there.) It is one of seven synagogues of the Malabar Yehudan or Yehudan Mappila people or Cochin Jewish community in the Kingdom of Cochin. Paradesi is a word used in several Indian languages, and the literal meaning of the term is “foreigners”, applied to the synagogue because it was built by Sephardic or Portuguese-speaking Jews, some of them from families exiled in Aleppo, Safed and other West Asian localities. It is also referred to as the Cochin Jewish Synagogue or the Mattancherry Synagogue.

The synagogue is located in the quarter of Old Cochin known as Jew Town, and is the only one of the seven synagogues in the area still in use. The complex has four buildings. It was built adjacent to the Mattancherry Palace temple on the land given to the Malabari Yehuden or “Yehuden Mappila” community by the Raja of Kochi, Rama Varma. The Mattancherry Palace temple and the Mattancherry synagogue share a common wall.

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