अक्सर समुद्र और नदियों के किनारे बहुतायत में मिलने वाले शंख को सभी लोग बहुत पसंद करते है, परन्तु क्या आप जानते है कि शंख की उत्पत्ति कैसे हुई और अधिकाधिक संख्या में पाए जाने वाले इन शंखो का इतिहास क्या है तथा क्या है इनका महत्व एवं महिमा?
जंहा तक प्रश्र शंख की उत्पत्ति का है तो कहा जाता है कि सबसे पहले फ़्रांस की की पुरानी ‘क्रो मेगनन‘ नामक दुर्लभ गुफाओ में विभिन्न प्रकार के शंखो के मिलने की पुष्टि की हुई है!
आश्चर्य की बात यह है कि यंहा पाए जाने वाले समस्त शंख ऐसे है जो केवल हिन्द महासागर की अलावा अन्य किसी स्थान पर पाए ही नहीं जाते! इस बारे में इतिहासकारों की राय है कि हज़ारों वर्ष पूर्व शंखों का अंतर्राष्ट्रीय मेला लगता था जिनमे व्यापारी इन शंखो को कड़ी मेहनत व लग्न से हिन्द महासागर की तटवर्ती क्षेत्रो से निकाल कर फ़्रांस में लाकर बेचते थे! इसी कारण ये सागरों से निकलकर मानवो तक आ पहुँचनें में सफल हो सके है!
वैसे तो प्राचीन कल के लोग शंख को बहुत अधिक पसंद करते थे लेकिन समय के साथ-साथ इसके प्रति आजकल के लोगो में भी शंख के बने आभूषण देखने को मिलता है! न सिर्फ स्त्रियां ही हाथ में शंख के बने आभूषण पहन रही हैं अपितु बाएं हाथ की पकड़ वाले शंख को भी काफी शुभ मानकर घरों में पूजा स्थल की स्थान पर विराजमान कर रहे है!
इन शंखो की अदभुत सुंदरता ने देवी-देवताओ को तो प्रसन्न कर ही रखा है, साथ ही मानव जाती की भी अपने से लगाव लगा रखा है!
यधपि यह शंख एक वाध्य है परन्तु सच्चाई यही है कि यह समुद्र में पाए जाने वाले एक जीव का एकमात्र खोल है हो काफी कठोर होता है! जंतु वैज्ञानिक इस बारे में कहते है कि समुद्र की किनारे हज़ारों की गिनती में मिलने वाले शंख की प्रजाति की जितने अधिक जीव पाए जाते है उतने शायद ही किसी अन्य प्रजाति के जीव पाए जाते हों!
इनके डिज़ाइन में न केवल विविधता विधमान होती है बल्कि ये मनमोहकता से परपूर्ण भी होते है!
शायद यही कारण रहा होगा कि कोलम्बस जैसे विश्व प्रसिद्ध यात्री को समुद्री यात्राओ के दौरान शंखो का पानी में रंग-बिरंगा झिलमिलाता इतन अधिक अच्छा लगा है कि उसने शंखो का बहुत अधिक मात्रा में संग्रह कर डाला!
फलस्वरूप कोलम्बस को एकत्रित करते देख इंग्लैंड, फ़्रांस और हॉलैंड जैसे देश भी शंखो के प्रति विश्वव्यापी रूचि बढ़ी!
कहते है की शंखों की खोज की दौरान एक हवाई द्वीप की खोज की गई है! इसके अतिरिक्त कुछ दुर्लभ शंख आदि भी बड़ी मात्रा में खोज निकाले गए जिन्हे ब्रिटिश सरकार ने आज भी अपने संग्रहालय में सहेज कर रखा है! यंहा बताना अप्रासंगिक नहीं होगा की कुछ दिनों पहले ‘ग्लोरी ऑफ़ द सी‘ नामक शंख दो हज़ार डॉलर का नीलाम हुआ है जिसकी लम्बाई मात्रा पांच पांच इंच आंकी गई है जबकि इसकी कलात्मकता बहुत अधिक अदभुत व अद्वितीय है!
और तो और, फिजी द्वीप का ‘सुनहरी कौड़ी‘ व बंगाल की खाड़ी का ‘लिस्टर शंख‘ भी मूलयवान है! इन शंखो की कीमत लगभग दो हज़ार डॉलर से भी कंही अधिक है!
अब शंख न सिर्फ हिन्दू धर्म में अपितु संस्कृति, सभ्यता मनोविज्ञान चिकित्सा के अलावा आयुर्वेद जैसी क्षेत्रो में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं! हिन्दू धर्म में जंहा शंख को सबसे पवित्र समझा जाता है, वहीं अमेरिका के डॉक्टर विलियम कैप व अल्फ्रेड आस्बीमर ने शंख को मनोविज्ञान में महत्पूर्ण माना है! उनके शब्दों में जीवन से निराश हो चुके एवं बुरी तरह परेशान हो गए लोगो को शंख-संग्रह दिखाना एक रामबाण औषधि से काम नहीं! इससे उन्हें मानसिक शांति मिलती है जबकि हिन्दू धर्म में मान्यता है की पूजा-अर्चना के समय शंखनाद से दूर-दूर तक वातावरण शुद्ध व सुखमय हो जाता है और समस्त कीड़े-मकोड़े दूर भाग जाते है!