‘स्वराज्य का सरखेल’ जिसने ब्रिटिश, पुर्तगाल, डच और मुगलों को कई बार धूल चटाई: 17 बड़े युद्ध जीते, समुद्र में 40 साल बजा डंका
भारत के एक वीर का डर देखिए कि यूरोप की दो बड़ी ताकतें, जो अब तक भारत में वर्चस्व जमाने के लिए दुश्मन बनी हुई थीं – वो एक हो गईं। इस बार कान्होजी आंग्रे का सामना पुर्तगाल और अंग्रेजों की संयुक्त शक्ति से था। जानिए फिर ‘स्वराज्य के पहले सरखेल’ ने क्या करामात किया।
भारतवर्ष की भूमि पर एक से बढ़ कर एक योद्धा हुआ हैं, जिन्होंने देश-विदेश में अपने झंडे गाड़े। लेकिन, ये नाम थोड़ा अलग सा है। अलग इसीलिए, क्योंकि इनका इलाका जमीन नहीं था। इन्होंने समुद्र फतह किया। इस महावीर ने भारत माँ की तरफ पानी से आने वाले खतरों को तबाह किया। खौफ ऐसा कि 40 साल तक पूरे अरब सागर में एक ही व्यक्ति का डंका बजा और उनका नाम मराठा नौसेना अधिकारी कान्होजी आंग्रे था।
कान्होजी आंग्रे का जन्म सुवर्णदुर्ग में हुआ था। ये जगह महाराष्ट्र के रत्नागिरी में स्थित है। 1669 ईश्वी में जन्मे कान्होजी आंग्रे ने 20 साल बाद ही मराठा सैन्य शक्ति को बढ़ाने में अपनी ताकत झोंक दी और फिर अगले 40 साल तक इसी एक काम में लगे रहे, अपने निधन तक। पुर्तगाल, ब्रिटिश, मुग़ल हो या फिर डच – समुद्र में उनका कोई सानी न था। अगर समुद्र के रास्ते कोई कुछ गलत करेगा तो उसे उनके हाथों सज़ा मिलनी तय थी।
अक्सर ब्रिटिश और पुर्तगाली आक्रांताओं के जहाज उनका शिकार बनते थे। भारतीय नौसेना के इतिहास में उनका एक अलग स्थान इसीलिए भी है, क्योंकि कम से कम 17 ऐसे बड़े मौके आए जब उन्हें युद्ध के मैदान में उतरना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी भी विदेशी ताकतों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। हमेशा ही जीत उनकी हुई। उन्होंने बचपन से ही तैराकों के साथ पानी के दाँव-पेंच सीखने शुरू कर दिए थे।
फिर उन्होंने जहाज की यात्रा और इसके अलग-अलग आयामों को सीखा। सतारा के मुखिया ने 1698 में सतारा के मुखिया ने उन्हें ‘सरखेल या दरिया सारंग’ के रूप में नियुक्त किया। ऐसा समझ लीजिए, उन्हें मराठा नौसेना की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसके बाद भारत के पश्चिमी तटों पर उनका ही राज़ चलने लगा, मुंबई से लेकर वेंगुर्ला तक। सबसे पहले तो ईस्ट कंपनी के जहाज उनका निशाना बने और इसके बाद यूरोपीय ताकतों के मन में उनका खौफ बैठ गया।
भारत के बारे में ईसा के जन्म से पहले ही दुनिया भर में ये बात फ़ैल गई थी कि ये ‘सोने की चिड़िया’ है और यहाँ के लोग बड़े ही सीधे-सादे हैं। इसीलिए, तभी से लुटेरों का यहाँ आना शुरू हो गया था। कई मुल्क सिर्फ भारत के एक छोटे से हिस्से से लुटे हुए धन के कारण अमीर हो गए। प्रारम्भ में चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, समुद्रगुप्त और हर्षवर्धन जैसे राजाओं ने विदेशी ताकतों को धूल चटाई, लेकिन बाद में आंतरिक कलह ने भारत को लुटेरों का अड्डा बना दिया।
यहाँ हम 17वीं शताब्दी के अंतिम दशक और मुख्यतः 18वीं सदी के पहले 30 साल की बात कर रहे हैं। तब तक भारत में विदेशी आक्रांताओं ने अपनी जड़ें जमा ली थीं और दिल्ली में मुगलों का शासन था। मराठा शक्तिशाली बन कर उभरे थे और छत्रपति शिवाजी का नाम लेकर उनका कद बढ़ता जा रहा था। बाजीराव ने दिल्ली तक मराठा साम्राज्य का विस्तार शुरू कर दिया था और इधर समुद्र में कान्होजी आंग्रे जैसे योद्धा तैनात थे।
हिंद महासागर की लड़ाई शुरू हो चुकी थी क्योंकि जहाँ दिल्ली में मुस्लिम आक्रांताओं ने पैठ बनाई हुई थी, समुद्र के रास्ते यूरोपियन ताकतों ने भारत को लूटना शुरू कर दिया था। व्यापारी के वेश में आने वाले ये लुटेरे बड़ी लंबी साजिश का एक हिस्सा था, जिसका दुष्परिणाम अंततः भारत की गुलामी के रूप में हुआ। लेकिन, तब हिंद महासागर और अरब सागर को आज़ाद करने की मुहिम के लिए छत्रपति शिवाजी ने ही नौसेना की नींव डाल दी थी और कई समुद्री दुर्ग तैयार किए थे।
विनायक दामोदर सावरकर ने भी अपनी पुस्तक ‘हिन्दू पदपादशाही’ में लिखा है कि मराठों समुद्री ताकत को दबाने का साहस किसी भी आक्रांता में नहीं हुआ। अब जब समुद्री सीमा बड़ी थी, दुश्मन कई थे, साधन संपन्न थे और बड़े क्षेत्र पर नजर रखनी पड़ती थी, इसीलिए कान्होजी आंग्रे को भी एक बड़ी सेना रखनी पड़ी। इसके लिए विदेशी जहाजी बेड़ों पर ‘चौथ’ लगाया गया। अंग्रेजों ने विरोध किया तो उन्हें सबक सिखाया गया।
कान्होजी आंग्रे के लिए उनके सामान लदे जहाजों को पकड़ कर जब्त करना बाएँ हाथ का खेल हुआ करता था। लेकिन, 1715 में चार्ल्स बून को मुंबई का गवर्नर बना कर भेजा गया और उसने प्रण लिया कि वो कान्होजी आंग्रे की ताकत को ख़त्म कर देगा। अभिमानी बून ने एक बड़ी सेना लेकर विजय दुर्ग पर आक्रमण किया। आक्रमणकारी जहाजों में ‘हंटर, रिवेंज, विक्ट्री और हॉक’ नाम के जहाज शामिल थे। इन नामों से ही पता चलता है कि अंग्रेजों की सोच क्या थी।
उसने दो तरफ से किले पर हमला किया। जबरदस्त गोलीबारी की गई, लेकिन उसे एहसास हो गया कि ये अभेद्य है और इसके चारों तरफ तोपखाने हैं। अंग्रेजों ने इसके भीतर जाने की लाख कोशिशें की, लेकिन मराठा तोपों ने सब बेकार कर दिए। अंत में मराठों ने अंग्रेजों की विशाल सेना पर धावा बोला और उन्हें अच्छी-खासी क्षति पहुँचाई। अंग्रेज जितनी जल्दी आए थे, उससे भी जल्दी भाग खड़े हुए।
गवर्नर बून नहीं माना और उसने अगले साल खाण्डेरी द्वीप पर आक्रमण किया, लेकिन वहाँ भी उसे हार मिली। विवश होकर उसने इंग्लैंड के राजा को एक पूर्व जहाजी बेड़ा तैयार कर के भेजने का निवेदन किया। इसके बाद कोमोडोर मैथ्यू के नेतृत्व में अंग्रेजों का एक जंगी बेड़ा आया। कान्होजी आंग्रे का खौफ देखिए कि अब दो दुश्मन भी एक होने वाले थे। जी हाँ, अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को भी अपने साथ मिला लिया।
17वीं शताब्दी की शुरुआत में ही ‘ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company)’ भारत में पाँव जमाने के लिए बेचैन हो गई थी और इसके लिए थॉमस बेस्ट को भेजा गया था, जो सूरत में फैक्ट्री लगाना चाहता था। लेकिन, मुगलों की संधि पुर्तगालियों से थी, जिससे अंग्रेजों को खासी दिक्कत आ रही थी। पुर्तगालियों ने अपनी कूटनीति से मुगलों को खुश रखा हुआ था। सूरत के पास सुवाली में एक युद्ध हुआ और अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को हरा दिया।
भारत के एक वीर का डर देखिए कि यूरोप की दो बड़ी ताकतें, जो अब तक भारत में वर्चस्व जमाने के लिए दुश्मन बनी हुई थीं – वो एक हो गईं। इस बार कान्होजी आंग्रे के सामना पुर्तगाल और अंग्रेजों की संयुक्त शक्ति से था। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राम नाइक की मानें तो कान्होजी आंग्रे मराठा स्वराज्य के पहले ‘सरखेल’ थे, यानी आज की नौसेना में इसे एडमिरल के रूप में समझ सकते हैं।
कान्होजी भी डरने वालों में से नहीं थे। उन्होंने बचपन से अपने पिता तुकाजी से ही समुद्र की कलाबाजियाँ सीखी थीं। इसीलिए, देवगढ़, अलीबाग और पूर्णागढ़ जैसे कई तटों पर उन्होंने अभेद्य दीवारें खड़ी की थीं, ताकि व्यापार के नाम पर भारत को गुलाम बनाने की साजिश करने वालों की मंशा सफल न हो। उन्होंने ‘अलीबागी रुपैया’ नामक करेंसी भी चलाई। उन्होंने विजय दुर्ग, अलीबाग और कोलाबा में अपना मुख्य बेस बनाया।
80 युद्ध नौकाओं के साथ मराठा नौसेना के मुखिया कान्होजी आंग्रे पश्चिमी समुद्र तट पर डटे रहते थे। 1712 में उन्होंने बॉम्बे के ब्रिटिश प्रेसिडेंट विलियम एस्लाबी की हथियारबंद नौका को जब्त किया था। गोवा में उन्होंने अंग्रेजी जहाजों का आवागमन दूभर कर दिया। 1721 में 6000 सैनिकों को ‘समुद्र के सरखेल’ को पकड़ने के लिए लगाया गया। अंग्रेजों और पुर्तगालियों की तरह नीदरलैंड ने भी विजय दुर्ग पर चढ़ाई की, लेकिन नाकाम लौटे।
छत्रपति साहूजी की मराठा नौसेना की कमाल संभालने वाले कान्होजी आंग्रे ने जब कमान संभाली थी तो मराठों के पास महज 8-10 नौकाएँ ही थीं और दुश्मन चारों तरफ उत्पात मचा रहा था। केवल उनके कारण अंग्रेजों को अपने जहाजों पर हर साल 49 लाख रुपए (तब) खर्च करने पड़ते थे, ताकि कान्होजी उसे पकड़ न पाएँ। तो, कोमोडोर मैथ्यू के नेतृत्व में आई संयुक्त सेना को भी मराठों ने हराया। आग-बबूला होकर कोमोडोर दुर्ग की तरफ दौड़ा, लेकिन एक मराठा सैनिक ने उसके जांघ पर वार कर उसे घायल कर दिया।
उसने दो बार पिस्तौल भी चलाई, लेकिन सब व्यर्थ क्योंकि गुस्से में वो गोली भरना ही भूल गया था। मौके का फायदा उठा कर पुर्तगाली सेना पर मराठे टूट पड़े और वो भागने लगी। उन्हें पीछे हटते देख कर अंग्रेज भी भाग खड़े हुए। कोंकण के सिद्दी मुस्लिमों और हैदराबाद के निजाम की सेनाएँ भी उनसे टकरा कर भागती थीं। 1729 में 60 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने दुश्मनों को भारतीय समुद्री सीमा में फटकने नहीं दिया।
#KanhojiAngre the undefeated admiral of Bharat!
The first important naval figure in modern India, Angre managed to maintain an unquestionable hold over a heavily disputed stretch of coastline throughout the early decades of the 18th century.@Dev_Fadnavis @smritiirani pic.twitter.com/NgZziooofQ
— Sandeep Krishnarao Patil 🇮🇳 (@MODIfied_SKP) July 4, 2021
ऐसा नहीं है कि कान्होजी आंग्रे ने धन के लिए मराठा नौसेना की कमाल संभाली थी। एक बार एक पुर्तगाली कमांडर उनके लिए हीरे-जवाहरात सहित कई संदूकों में भर कर भेंट लेकर आया और व्यापार की अनुमति माँगी। कान्होजी ने जब पूछा कि क्या वो व्यापार कर के चला जाएगा तो उसने यहीं रहने का इरादा जताया। इसे भाँप कर वीर मराठा ने सारे धन को लात मार दिया और उसे दफा हो जाने को कहा।
अरब सागर में महाराष्ट्र की जमीनी सीमाँ से 5 किलोमीटर दूर एक द्वीप का नामकरण कान्होजी आंग्रे के नाम पर किया गया है। उनके नाम पर क्रूज भी चलती है। मुंबई पोर्ट ट्रस्ट इस द्वीप को विकसित कर के इसे एक बड़ा पर्यटन स्थल बनाने के लिए काम कर रहा है। भारतीय नौसेना के वेस्टर्न कमांड में ‘INS आंग्रे’ भी है। 21 वर्षों तक खाण्डेरी का किला कान्होजी का मुख्य बेस रहा। ये द्वीप दक्षिणी मुंबई में स्थित है।