तात्या टोपे: भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के हीरो

तात्या टोपे: भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के हीरो

तात्या टोपे: भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के हीरो – अंग्रेजों से भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने के लिए कई प्रयास हुए जिसमें 1857 में नौजवानों द्वारा किया एक बड़ा प्रयास था, जिसे प्रथम स्वाधीनता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई को मेरठ से हुई थी और जल्दी ही क्रांति की चिंगारी समूचे उत्तर भारत में फैल गई। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा तोड़ने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया और अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी।

तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम (1857) के एक प्रमुख सेनानायक थे

Sketch from the book "The Indian War Of Independence 1857" by Veer Savarkar
Sketch from the book “The Indian War Of Independence 1857” by Veer Savarkar

इस स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने के लिए तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे जैसे लोगों ने अपनी सारी ताकत लगा दी थी। इस रक्तरंजित और गौरवशाली संग्राम में भाग लेने वाले सेनानियों में तात्या टोपे की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी।

इनकी युद्ध करने की नीति और चतुराई से यह अक्सर अंग्रेजों के चुंगल में आने से बच जाते थे। एक जगह से युद्ध में नाकामयाब होने पर वह दूसरे युद्ध की तैयारी में जुट जाते थे। उनके इस रवैये से अंग्रेजों की नाक में दम हो गया था।

तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर था, लेकिन सब इनको प्यार से तात्या ही कहते थे। भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 16 फरवरी, 1814 को महाराष्ट्र में नासिक के पास पटौदा जिले के एक छोटे से गांव येवला के ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

इनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्यम्बक भट्ट था, जो महान राजा पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां कार्य करते थे। इनकी माता का नाम रुक्मिणी बाई था जोकि धार्मिक विचारों वाली गृहणी थी।

जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब जैसे योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए, तब वह लगभग एक साल तक अंग्रेजों के विरुद्ध लगातार संघर्ष करते रहे।

इनकी शिक्षा मनुबाई (रानी लक्ष्मीबाई) के साथ हुई और जब बड़े हुए तो पेशवा बाजीराव ने तात्या को अपने यहां मुंशी के रूप में कार्य दिया। तात्या टोपे आजीवन अविवाहित रहे।

पेशवा जी ने जो भी जिम्मेदारी दी, उसे तात्या ने बखूबी संभाला और राज्य के एक भ्रष्टाचारी कर्मचारी को पकड़ा, तो पेशवा ने खुश होकर उन्हें अपनी एक बेशकीमती टोपी देकर सम्मानित किया जिससे इनका नाम तात्या टोपे पड़ गया।

अंग्रेजों ने पेशवा की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए पुत्र नाना साहब को उनका उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। अंग्रेजों के इस निर्णय से नाना साहब और तात्या काफी नाराज हुए और इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनानी शुरू कर दी।

1857 में ही जब देश में स्वतंत्रता के लिए संग्राम शुरू हुआ तो इन दोनों ने उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। नाना साहब ने तात्या टोपे को अपनी सेना की जिम्मेदारी देते हुए उनको अपनी सेना का सलाहकार मानोनित किया।

Sketch from the book - The Indian War Of Independence 1857
Sketch from the book – The Indian War Of Independence 1857, written by Vinayak Damodar Savarkar

अंग्रेजों ने जब 1857 में ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक के नेतृत्व में कानुपर पर हमला किया तो नाना की हार हो गई।

इसके बाद 1857 में ही जब जंग शुरू हुई तब तात्या ने 20,000 सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को कानपुर छोड़ने को मजबूर कर दिया।

1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इससे नाराज होकर अंग्रेजों ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के गोद लिए पुत्र को भी उनकी संपत्ति का वारिस नहीं माना और झांसी पर आक्रमण कर दिया।

लक्ष्मीबाई ने तात्या से सहायता मांगी तो तात्या ने 15,000 सैनिकों की टुकड़ी झांसी भेजी। इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं।

तात्या टोपे ने अपने सम्पूर्ण जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ करीब 150 युद्ध पूरी वीरता के साथ लड़े थे। तात्या टोपे ने विंध्या की खाई से लेकर अरावली पर्वत श्रृंखला तक अंग्रेजों से गुरिल्ला पद्धति से युद्ध किया था। कई बार उन्हें हार का सामना भी करना पड़ा लेकिन वह कभी पकड़े नहीं जा सके थे।

A close comrade betrayed Tatya Tope
A close comrade betrayed Tatya Tope, in return for amnesty and restoration of his lands

राजा मानसिंह ने राजगद्दी के लालच में धोखे से अंग्रेजों को इनके छुपने की गुप्त सूचना दे दी, जिससे 7 अप्रैल, 1859 को इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 15 अप्रैल को तात्या टोपे का कोर्ट मार्शल किया गया, जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।

Tatia Tope was sentenced to death
Tatia Tope when sentenced to death, he mocked and mounted the scaffold with as much firmness as handcuffs would allow him and put his head into the noose

18 अप्रैल को शिवपुरी में तात्या टोपे को सायं 5 बजे सैंकड़ों की तादाद में मौजूद लोगों के बीच फांसी पर चढ़ा दिया गया। फांसी के समय तात्या टोपे के चेहरे पर किसी तरह की शिकन या निराशा के भाव नहीं थे। फांसी दिए जाने के दौरान उनका चेहरा दृढ़ता से भरा दिख रहा था।

आजादी के संघर्ष में तात्या टोपे द्वारा किए गए कार्य के लिए भारत सरकार ने इनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था। 2016 में संस्कृति एवं पर्यटन तथा नागर विमानन मंत्री ने 200 रुपए का स्मरणीय और 10 रुपए का प्रसार सिक्का जारी किया। उत्तर प्रदेश के कानपुर में तात्या टोपे का एक स्मारक बना हुआ है।

~ ‘तात्या टोपे: भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के हीरो’ by ‘सुरेश कुमार गोयल‘, बटाला

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