‘वर्ल्ड एस्टेरॉयड डे (International Asteroid Day)’ यानी ‘विश्व उल्कार्पिड दिवस‘ प्रतिवर्ष 30 जून को मनाया जाता है, जो 1908 में ‘तुंगुस्का घटना‘ की सालगिरह है जब उल्कापिड विस्फोट से पूरा जंगल नष्ट हो गया था।
यह घटना 75 वर्ष पुरानी है जब 30 जून, 1908 को रूस के साइबेरिया इलाके में एक बहुत ही भयानक विस्फोट हुआ। पोडकामेन्नया (Poddkamenna) तुंगुस्का नदी के पास हुए इस धमाके से आग का जो गोला उठा उसके बारे में कहा जाता है कि यह 50 से 100 मीटर चौड़ा था इसने इलाके के टैगा जंगलों के करीब 2 हजार वर्ग मीटर इलाके को पल भर में राख कर दिया था। धमाके की वजह से 8 करोड़ पेड़ जल गए थे।
‘तुंगुस्का घटना’ – 115 वर्ष पहले ‘महाविनाश’ से बच गई थी धरती
इस धमाके में इतनी ताकत थी कि धरती कांप उठी थी। जहां धमाका हुआ वहां से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित कस्बे के घरों की खिड़कियां टूट गई थीं। वहां के लोगों तक को इस धमाके से निकली गर्मी महसूस हुई थी। कुछ लोग तो उछलकर दूर जा गिरे थे।
सैंकड़ों जानवर मारे गए
किस्मत से जिस इलाके में यह भयंकर धमाका हुआ, वहां पर आबादी नहीं थी। आधिकारिक रूप से इस धमाके में केवल एक गड़रिए के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। वह धमाके की वजह से एक पेड़ से जा टकराया और उसी में फंसकर रह गया था। इस धमाके की वजह से उक्त जंगल में रहने वाले रेंडियर सहित अनेक जानवर मारे गए थे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस धमाके से इतनी ऊर्जा पैदा हुई थी कि ये हिरोशिमा पर गिराए गए Atom Bomb से 85 गुना ज्यादा थी। कई वैज्ञानिक तो यह मानते हैं कि धमाका इससे भी ज्यादा ताकतवर था। इस धमाके से जमीन के अंदर जो हलचल मची थी, उसे हजारों किलोमीटर दूर ब्रिटेन तक में दर्ज किया गया था।
सुलझा नहीं है रहस्य
आज भी इस धमाके के राज से पूरी तरह से पर्दा नहीं हट सका है। वैज्ञानिक अपने-अपने हिसाब से इस धमाके की वजह पर अटकलें ही लगाते रहे हैं लेकिन अधिकतर को लगता है कि उस दिन तुंगुस्का में कोई उल्कापिड या धूमकेतु टकराया था। यह धमाका उसी का नतीजा था।
हालांकि, इस टक्कर के कोई बड़े सबूत इलाके में नहीं मिलते हैं। बाहरी चट्टान के सुराग भी वहां नहीं मिले। खास बात यह थी कि यहां कोई गड्डा नहीं था जिसकी वजह से दशकों से यह विस्फोट वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना रहा है।
कुछ वर्ष पूर्व साइबेरिया फैडरल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐसा मॉडल पेश किया जिससे प्रतीत होता है कि यह विस्फोट आखिर हुआ कैसे था। उनके अनुसार इसके पीछे एक धूमकेतु था जो धरती से छूकर गुजर गया यह काफी छिछले कोण पर धरती के वायुमंडल में दाखिल हुआ जिससे हवा में ही धमाका हुआ और फिर यह अंतरिक्ष में चला गया। यानी धरती महाविनाश की घटना से बच गई।
तुंगुस्का की घटना आम नहीं
तुंगुस्का की घटना बाकी ऐसी घटनाओं से इसलिए अलग है क्योंकि यह महाविस्फोट था। अगर यह घटना किसी बड़ी आबादी वाले शहर में होती तो भयंकर तबाही मचती लेकिन इसकी संभावना कम ही है क्योंकि धरती का 70 प्रतिशत हिस्सा समुद्रों से मिलकर बनता है।
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