’18 साल का वैवाहिक जीवन, 14 बच्चे, 15वें प्रसव के दौरान 37 की उम्र में मुमताज की मौत’: जानिए कब और कैसे बना ताजमहल
10 सालों तक शाहजहाँ, मुमताज की हड्डियों अथवा कंकाल को लेकर ही यहाँ से वहाँ घूमता रहा होगा। मुमताज की कब्र है कहाँ इसको लेकर पुख्ता जानकारी खुद पुरातत्व विभाग के पास ही नहीं है।
देश में ताजमहल (Taj Mahal) के बंद दरवाजों को खोलने को लेकर जारी सियासत और उस पर कोर्ट के फैसले के बीच ताजमहल को लेकर इतिहास क्या कहता है। इस अजूबे को दुनिया प्रेम की निशानी मानती है, लेकिन इसके क्या तथ्य हैं? इसे किसने बनवाया है, इस पर नजर डालते हैं।
शुरुआत मुगल आक्रान्ता शाहजहाँ की बीवी मुमताज उर्फ अर्जुमन बानो बेगम से होती है। 19 साल की उम्र में अर्जुमन बानो बेगम (मुमताज महल) का निकाह 21 साल के शाहजहाँ से 1612 में हुआ था। ये शाहजहाँ का दूसरा निकाह था। मुमताज और शाहजहाँ का वैवाहिक जीवन 18 साल का रहा। इन 18 सालों में शाहजहाँ से मुमताज को 14 बच्चे हुए और 15वें बच्चे के प्रसव के दौरान 1630 में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में मुमताज की मौत हो गई। उस दौरान वो 37 साल की थी।
उसकी मौत के दो साल पहले ही शाहजहाँ को मुगल साम्राज्य की गद्दी मिली थी। बीवी की मौत के बाद करीब सप्ताह भर के लिए तो उसने पूरी सल्तनत के काम को रुकवा दिया। इतिहासकार EVV हैवेल कहते हैं कि मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहाँ ने जबरदस्ती दो सालों तक शोक मनाया। इस दौरान किसी भी तरह के संगीत, त्योहार औऱ यहाँ तक कि गहने पहनने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
बुरहानपुर में ही दफ्न की गई मुमताज
मौत के बाद मुमताज को बुरहानपुर में ही दफ्न कर दिया गया था। माना जाता है कि करीब छह महीने बाद, उसकी कब्र को आगरा लाया गया था। इसको लेकर भी दो तथ्य हैं – पहला ये राजपूत राजा मान सिंह के बेटे राजा जय सिंह की पुस्तैनी जमीन पर उसे तुरंत दफ़न कर वहाँ एक बगीचा बना दिया गया था। दूसरा मुमताज को आगरा लाने के बाद उसे 9 सालों तक एक मस्जिद में दफ़न किया गया। उल्लेखनीय है कि इन दो सालों तक शाहजहाँ न तो किसी से मिला औऱ न ही दरबार में आय़ा। सवाल ये उठता है कि फिर किसने मुमताज के गल चुके शरीर के ढाँचे को कब्र खोदकर उसे आगरा लाने का फरमान सुनाया, ये तथ्य इतिहास में दफन हो गया है। जबकि सत्य तो ये है कि शाहजहाँ के बिना उसे कोई हाथ नहीं लगा सकता था।
अब अगर इस बात को माना जाय कि सच में मुमताज की कब्र को आगरा लाया गया था, तो पहले 9 सालों तक मस्जिद में दफ़न किया गया और 1641 के आसपास ताजमहल के बगीचे में दफनाया गया होगा। मतलब ये कि 10 सालों तक शाहजहाँ, मुमताज की हड्डियों अथवा कंकाल को लेकर ही यहाँ से वहाँ घूमता रहा होगा। मुमताज की कब्र है कहाँ इसको लेकर पुख्ता जानकारी खुद पुरातत्व विभाग के पास ही नहीं है। वो भी कही-सुनी बातों पर यकीन करता है।
किसकी है ताजमहल वाली जमीन
आगरा का ताजमहल जिस जमीन पर शान से खड़ा है, वो वास्तविकता में जयपुर के राजा मान सिंह की है। इस तथ्य को भारतीय इतिहासकार जादूनाथ सरकार समेत यूरोपियन इतिहासकार जॉन मार्शल और EVV हैवेल भी स्वीकार करते हैं। इस पर इस्लामिक इतिहासकार भी सहमत नजर आते हैं।
हाँ, इसे बनवाने में आए कुल खर्च पर इतिहासकारों में एकमत नहीं है। कुछ स्थानों पर इसका खर्चा 50 लाख तो कहीं 185 लाख रुपए तक बताया गया है। दीवान-ए-अफरीदी में खर्चा 9 करोड़ 17 लाख बताया है जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स में 1853 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार 1,750,000 पौंड था।
शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान फ्रांसीसी यात्री जीन बापिस्ट टावरनियर भारत के दौरे पर आया था। अपनी इस यात्रा पर एक किताब भी उसने लिखी थी। जिसका अनुवाद 1889 में प्रकाशित हुआ था। किताब के मुताबिक, वो 1640-41 में पहली बार आगरा आया था। दरअसल, उसका भारत आना-जाना लगा रहता था। जब पेरिस से चलकर अपनी पाँचवी भारत यात्रा पर आया तो वह 1667 में सूरत में था। यह उसकी आखिरी भारत यात्रा थी। उसने अपने संस्मरण के पृष्ठ 110 पर लिखा है, “I witnessed the commencement and accomplishment of this great work (Taj Mahal)“. इस आधार पर टावरनियर के अनुसार ताज महल का निर्माण 1640-41 के दौरान शुरू हुआ होगा। जबकि मुमताज की मौत एक दशक पहले 1630 में ही हो चुकी थी।
1667 में जब टावरनियर सूरत में था, एक साल पहले 1666 में शाहजहाँ भी मर चुका था। अपनी मृत्यु से आठ साल पहले तक वह अपने बेटे औरंगजेब की कैद में भी रहा था। ऐसे में 1658 के आसपास से ही परिवार में गद्दी को लेकर आपसी लड़ाई छिड़ चुकी थी। टावरनियर यह भी लिखता है, “ताजमहल को बनाने में 22 साल लगे थे“। अब 1641 से 22 साल 1663 में जाकर पूरे होते है। इस दौरान शाहजहाँ तो आगरा के किले में नजरबन्द था।
ताजमहल का निर्माण कब हुआ इस पर एक और कहानी पढ़ने की मिलती है। एक स्पेनिश धार्मिक यात्री सेबस्टियन मैनरिक 1641 में आगरा में था। उसे किसी ने बताया कि ताजमहल के मुख्य वास्तुकला को इटली के गेरोनिमो वेरोनियो ने तैयार की है। हालाँकि, वह कभी वेरोनियो से नहीं मिला था क्योंकि शाहजहाँ ने उसे 1640 में एक पुर्तगाली के हाथों मरवा दिया था। लाहौर में उसकी कब्र आज भी है। साल 1899 में हेनरी जॉर्ज ने अपनी किताब ‘A Handbook for Visitors to Agra and Its Neighborhood‘ के पेज नंबर 23-24 पर लिखा है, “ताजमहल के पूरा बनने से पहले ही वेरोनियो मर गया था… इस प्रकार 17 सालों तक चले निर्माण के बाद यह इमारत 1648 में जाकर बनी”।
हालाँकि, इस तथ्य को अधिकतर इस्लामिक इतिहासकार मानने से इनकार करते हैं। उनका दावा है कि ताजमहल का ढाँचा शाहजहाँ के करीबी मुस्लिम उस्ताद अहमद लाहौरी ने बनाया था। बावजूद इसके दस्तावेजों के अध्ययन से ये संदेह पैदा होता है कि वास्तव में ताजमहल कब बना, किसने बनाया और कब इसका निर्माण पूरा हुआ?
कहा जाता है कि ताजमहल को 20,000 मजदूरों ने मिलकर बनाया था। पहली बार ये तथ्य ब्रिटिश काल में लाहौर से प्रकाशित एक पुस्तक ‘गाइड टू द ताज एट आगरा’ के पृष्ठ 14 में मिलता है। हेनरी जॉर्ज ने इन मजदूरों की दुर्दशा के बारे में अपनी किताब में लिखा है। किताब के पेज नंबर 27 पर लिखा है, “20,000 मजदूरों ने काम किया लेकिन उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे। उन्हें भत्ते के तौर पर मक्के के दाने दिए जाते थे, जिसकी लालची अधिकारियों द्वारा कटौती होती रहती थी। ये मजदूर बुरी तरह से तनाव में थे और इसी कारण इनकी मौत की संख्या भी काफी बढ़ गई थी। एक कवि ने लिखा है कि इस संकट की घड़ी में भगवान ही हमारा रखवाला है। अच्छा होता कि हम भी मुमताज के साथ ही मर गए होते।”