भोलेनाथ जी ने दोनों से कहा कि जो भी तीनों लोकों की परिक्रमा करके पहले कैलाश पहुंचेगा, उसे वह उत्तराधिकारी बनाएंगे। कार्तिक जी मयूर पर सवार होकर कुछ क्षणों में ही आंखों से ओझल हो गए जबकि गणेश जी अपने वाहन चूहे पर सवार होकर निकले। थोड़ी दूर नारद जी से भेंट हो गई जिन्होंने कहा कि भगवान तो स्वयं तीनों लोकों के मालिक हैं जिनकी परिक्रमा करने से ही तीनों लोकों का भ्रमण हो जाता है। उनकी बात सुनकर गणेश जी उसी समय कैलाश पहुंचे और अपने माता-पिता की परिक्रमा कर हाथ जोड़ खड़े हो गए। भगवान शिव ने गणेश जी की बुद्धि से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
दूसरी ओर कार्तिक जी आकाश मार्ग से इस पवित्र स्थान के ऊपर से जा रहे थे तो नारद जी ने उन्हें कैलाश का समाचार सुनाया जिसे सुनकर वह बहुत दु:खी हुए। उसी समय कैलाश न जाने का प्रण किया और धरती पर उतरकर तपस्या करने लगे। यही स्थान आजकल श्री अचलेश्वर महादेव तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। कार्तिक जी के फैसले की जानकारी नारद जी ने कैलाश पहुंचकर भगवान भोलेनाथ को दी तो स्वयं भगवान शंकर और मां पार्वती 33 करोड़ देवी-देवताओं को साथ लेकर कार्तिक जी को मनाने यहां पधारे परन्तु कार्तिक जी ने जब कैलाश न जाकर यहीं अचल रहने का निर्णय सुनाया तो भगवान शिव ने उन्हें अचलेश्वर महादेव का नाम देकर नौवीं का अधिकारी घोषित कर वरदान दिया कि यहां नौवीं का पर्व मनाया जाएगा और जो भी श्रद्धालु लगातार 40 दिन पवित्र सरोवर में स्नान कर सच्चे मन से पूजा अर्चना करेगा, उसकी हर इच्छा पूर्ण होगी।
कलियुग में इसी स्थान की शोभा सुन पहली पातशाही साहिब श्री गुरु नानक देव जी यहां पधारे। प्राचीन विशाल सरोवर के बीचों-बीच गंगाधारी भगवान शंकर का विशाल मंदिर, किनारे पर कार्तिक जी का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर और दूसरी तरफ विशाल गुरुद्वारा देश के आपसी प्यार व भाईचारे की महान संस्कृति को दर्शाते हैं।