85 घाटों पर 12 लाख दीये, 11 टन फूलों से विश्वनाथ मंदिर की सजावट: काशी की देव दीपावली में पहुँचे 70 देशों के प्रतिनिधि, CM योगी बोले – हर हर महादेव
बता दें कि राक्षस त्रिपुरासुर ने कभी पूरी सृष्टि में आतंक मचाया था। भगवान शिव ने उसका संहार किया और फिर देवताओं ने दिवाली मनाई थी, इसीलिए इसे देव दीपावली के रूप में जाना गया।
देव दिवाली: कार्तिक पूर्णिमा
देव दिवाली के मौके पर सोमवार (27 नवंबर, 2023) को वाराणसी प्रकाश से जगमग दिखा। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा, ‘देव दिवाली के पावन अवसर पर आशा, आस्था, आत्मीयता और अंत्योदय के असंख्य दीयों के दिव्य प्रकाश से जगमग अविनाशी काशी।’ उन्होंने इस दौरान ‘हर-हर महादेव‘ का नारा भी लिखा। शाम के बाद पूरी काशी रंग-बिरंगे प्रकाश से जगमग दिखी। काशी के घाटों पर गजब की चकाचौंध देखने को मिली।
काशी के 85 घाटों पर 12 लाख दीये जलाए गए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस दौरान वहाँ उपस्थित रहे। पहली बार 70 देशों के राजदूत व प्रतिनिधि भी देव दिवाली के साक्षी बने। 12 लाख में से 1 लाख दीये गाय के गोबर के बनाए गए थे। बता दें कि राक्षस त्रिपुरासुर ने कभी पूरी सृष्टि में आतंक मचाया था। भगवान शिव ने उसका संहार किया और फिर देवताओं ने दिवाली मनाई थी, इसीलिए इसे देव दिवाली के रूप में जाना गया।
देवाधिदेव महादेव के पूजन के रूप में ये परंपरा पुरातन काल से ही चली आ रही है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर देव दीपावली मनाई जाती है। विश्वनाथ मंदिर को सजाने के लिए 11 टन फूल मँगाए गए थे। केंद्रीय आवासीय, शहरी मामलों, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी समारोह में मौजूद रहे। DM ने खुद तैयारियों का जायजा लिया था। साफ़-सफाई के लिए विशेष निर्देश दिए गए थे। विदेशी मेहमानों के लिए भी विशेष व्यवस्थाएँ की गई थीं।
गंगा नदी के किनारे प्रकाश से सारे घाट जगमग रहे। इस दिन लाखों लोग गंगा में भी स्नान करते हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने सभी विदेशी मेहमानों का स्वागत किया। कुल मिला कर 150 विदेशी मेहमान उपस्थित थे। वाराणसी मंडल के कई मजिस्ट्रेट को व्यवस्था बनाने के लिए तैनात किया गया था। इससे पहले अयोध्या भी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल हुआ था। अयोध्या में 22.23 लाख दीये जलाए गए थे। अब वाराणसी जगमग हुआ है।
जानिए क्या है देव दीपावली का महत्व, काशी में क्यों जलाए जाते हैं लाखों दीये
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है. पूरे कार्तिक महीने में पूजा, अनुष्ठान और दीपदान का विशेष महत्व होता है. इस कार्तिक माह में ही देवी लक्ष्मी की जन्म हुआ था और इसी महीने में भी भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागे थे.
वाराणसी:
मान्यता है कि देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस के घाटों पर आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के इस विशेष दिन पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर खुशी मनाई थी। काशी में देव दीपावली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस दिन दीपदान करने का विशेष महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर ने खुद देवताओं के साथ गंगा के घाट पर दिवाली मनाई थी, इसलिए देव दीपावली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। इसलिए काशी में दीपावली के 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। इस साल यह विशेष पर्व 19 नवंबर को है। कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही समस्त देवी-देवता स्वर्ग से धरती पर आते हैं और गंगा स्नान करने के बाद दीप जलाकर देव दीपावली का त्योहार मनाते हैं। पूर्णिमा के दिन लोग खूबसूरत रंगोली और लाखों दीये जलाकर इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
काशी में ही क्यों मनाए जाते हैं देव दिवाली
पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख है कि त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से सभी बहुत त्रस्त हो चुके थे। इस राक्षस से मुक्ति दिलाने के लिए ही भगवान शिव ने इसका संहार कर दिया था। उसके आतंक से जिस दिन मुक्ति मिली थी उस दिन कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। तभी से भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी पड़ा। इससे सभी देवों को अत्यंत प्रसन्नता हुई। तब सभी देवतागण भगवान शिव के साथ काशी पहुंचे और दीप जलाकर खुशियां मनाई। कहते हैं कि तभी से ही काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने का प्रचलन है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। पूरे कार्तिक महीने में पूजा, अनुष्ठान और दीपदान का विशेष महत्व होता है। इस कार्तिक माह में ही देवी लक्ष्मी की जन्म हुआ था और इसी महीने में भी भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागे थे। कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर श्रद्धालु गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं और शाम को मिट्टी के दीपक या दीया जलाते हैं। गंगा नदी के तट पर घाटों की सभी सीढ़ियां लाखों मिट्टी के दीयों से जगमगाती हैं। यहां तक कि वाराणसी के सभी मंदिर भी लाखों दीयों से जगमगाते हैं।
वाराणसी में दिवाली और देव दिवाली के बीच अंतर
अमावस्या के दिन पूरे भारत में दिवाली मनाई जाती है क्योंकि भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद रावण को मारने के बाद अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपने घर वापस आए थे। देव दिवाली दिवाली के ठीक 15 दिन बाद मनाई जाती है। इसे कार्तिक पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।