सूर्य उपासना का पर्व 'मकर संक्रांति'

सूर्य उपासना का पर्व ‘मकर संक्रांति’

सूर्य उपासना का पर्व: पर्व, अनुष्ठान भारत की प्राचीन उनज्जवल संस्कृति के आधार स्तम्भ हैं। हमारे मनीषियों ने इन पर्वों को विशेष रूप से ऊर्जा एवं दिव्यता का संचार करने वाला बताया है। हमारे शास्त्रों में उत्तायण और दक्षिणायन इन दो मार्गों का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति के मंगल पर्व से सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति से ही सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है। संक्रति से अभिप्राय है परिवर्तन, अर्थात इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।

हमारे आध्यात्मिक ग्रंथों में उत्तरायण को नव स्फूर्ति, प्रकाश और ज्ञान के साथ जोड़ा गया है। उत्तरायण मार्ग को मोक्ष प्रदान करने वाला कहा गया है। इस पावन बेला में जो अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे दिव्य लोक को प्राप्त होते हैं।

महाभारत युग की प्रामाणिक आस्थाओं के अनुसार सर्वविदित है कि उस युग के महान नायक भीष्म पितामह शरीर के क्षत-विक्षत होने के बावजूद भी तीरों की शैया पर लेट कर शरीर त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण प्रवेश का इंतजार करते रहे।

सूर्य के उत्तायण की ओर जाने से प्रकृति में भी परिवर्तन होता है। इस दिन से ही सूर्य उत्तरी गोलार्ध में आना शुरू होता है, जिसके फलस्वरूप रातें छोटी तथा दिन बड़े होने लगते हैं। इस घटना को हमारे मनीषियों ने आध्यात्मिक शब्दावली में समझाते हुए कहा है कि यह उत्तरायण अंधकार से प्रकाश कौ वृद्धि की ओर प्रेरित करता है।

समस्त जीवधारी प्रकाश चाहते हैं। भौतिक प्रकाश एवं आध्यात्मिक प्रकाश से ही प्राणियों में नई ऊर्जा का संचार होता है। मकर संक्रांति के पावन अवसर पर सूर्य का उत्तरायण मार्गी होना हमें सुषुप्ति से जागृति की ओर बढ़ने का दिव्य संदेश देता है।

प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है और अंधकार अज्ञान का। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।

मकर संक्रांति के अलग-अलग रूप

सूर्योपासना के सबसे बड़े पर्व मकर संक्रांति को भारत में विविध परम्पराओं के साथ मनाया जाता है। इसे तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू के रूप में, बिहार में खिचड़ी के रूप में मनाने कौ परम्पराएं हैं। नेपाल में भी इस पर्व को बड़े चाव से मनाया जाता है। वहां के थारु समुदाय का यह विशेष पर्व है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आता है अत: कहां-कहीं इसे ‘ उत्तरायणी” भी कहा जाता है।

बताया जाता है इस दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से हो कर सागर में उनसे मिली थीं। पश्चिमी बंगाल में गंगा सागर स्नान का बड़ा महात्म्य है। प्रतिदिन सूर्य को जल से अर्ध्य देने की प्राचीन परम्परा निरन्तर चली आ रही है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देने वाले देवता हैं। वेदों में सूर्य का उल्लेख विश्व कौ आत्मा और ईश्वर के नेत्र के रूप में किया गया है। सूर्य की पूजा से जीवनशक्ति, मानसिक शांति, ऊर्जा और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है।

~ डा. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा

तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति के समय सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। भारत के लोग इस दिन सूर्य देव की आराधना एवं पूजन करके उसके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

उत्तरायण दिव्य शक्तियों एवं सात्विक प्रवृत्तियों को जगाने की उत्तम बेला है। उत्तरायण को सकारात्मकता एवं आध्यात्मिक ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक माना गयाहै तथा दक्षिणायन मार्गको नकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भी उत्तरायण मार्ग को नव स्फूर्ति, आध्यात्मिक ऊर्जा एवं मुक्ति प्रदान करने वाला बताया है। उत्तरायण के पावन अवसर पर शरीर त्यागने वाले योगी, सिद्ध पुरुष मोक्ष को प्राप्त करते हैं। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि उत्तरायण मार्ग के प्रारंभ होने से इस भूलोक पर भी आध्यात्मिक शक्तियों का समावेश हो जाता है। उत्तरायण मार्ग में सूर्य का प्रवेश मनुष्य को भी अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान एवं आध्यात्मिक विद्या के प्रकाश को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।

~ आचार्य दीप चंद भरद्वाज

Check Also

Tamil New Year

Tamil New Year: Puthandu Information, How to celebrate

Tamil New Year: The month of Chitthirai or Chittrai also called as Varushapirapu i.e. from …