गुड़ी पड़वा का त्यौहार: चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या युगादि के नाम से जानी जाती है। मान्यता है कि इसी तिथि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। ‘गुड़ी’ का मतलब होता है – विजय पताका, जबकि ‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों से मिलकर बना है ‘युगादि’। गुड़ी पड़वा चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है। यह चैत्र महीने के पहले दिन मनाते हैं। इस प्रकार हिंंदू नववर्ष का शुभारंभ हो जाता है। चैत्र माह में पड़ने वाले नवरात्र वासंतिक नवरात्र कहे जाते हैं, इन्हीं के साथ ही गुड़ी पड़वा की दस्तक होती है। इस वर्ष गुड़ी पड़वा पर्व 09 अप्रैल 2024 को पड़ रहा है। गुड़ी पड़वा पर्व से जुड़ी अलग अलग प्रकार की परंपरा, महत्व और रीति-रिवाज के बारे में बताएंगे।
गुड़ी पड़वा का त्यौहार
धार्मिक महत्व:
एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था इसीलिए गुड़ी पड़वा ‘नवसंवत्सर’ भी कहलाता है। इसके अलावा महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी तिथि पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ भी रचा था। ‘गुड़ी पड़वा’ के अवसर पर आंध्रप्रदेश में एक विशेष प्रकार का प्रसाद वितरित किया जाता है। मान्यता है कि बिना कुछ खाए-पीए यह प्रसाद जो भी व्यक्ति ग्रहण करता है, वह सदैव निरोगी रहता है, उससे बीमारियां दूर रहती हैं। साथ ही यह प्रसाद चर्मरोग से भी मुक्ति दिलाने वाला होता है। भारत के महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों जैसे यह पर्व 9 दिनों तक विशेष विधि विधान और पूजा से मनाने का चलन है। इस उत्सव का समापन रामनवमी के दिन किया जाता है।
स्वास्थ्य के लिहाज से महत्व: गुड़ी पड़वा का त्यौहार
स्वास्थ्य के लिहाज से भी गुड़ी पड़वा का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार इस दिन बनाए जाने वाले सभी भोजन स्वास्थ्वर्धक होते हैं। आंध्र प्रदेश में पच्चड़ी, महाराष्ट्र में पूरन पोली जैसे व्यंजन इस पर्व के लिए खासतौर पर बनाए जाते हैं। लोगों में विश्वास है कि खाली पेट पच्चड़ी के सेवन से चर्म रोग दूर होते ही हैं वहीं स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। जबकि पूरन पोली को बनाने में गुड़, नीम के फूल, इमली और आम का इस्तेमाल करते हैं, यह सभी हमारे शरीर के स्वास्थ्य के लिहाज से काफी लाभदायक होते हैं। इस दिन सुबह के समय नीम की पत्तियां खाने की भी परंपरा है। ऐसा करने के पीछे माना जाता है कि इससे हमारे शरीर के खून में मौजूद अशुद्धियां दूर हो जाती हैं।
किस तरह की जाती है तैयारियां:
गुड़ी पड़वा के दिन लोग घर की साफ-सफाई करने के बाद रंगोली, तोरण द्वार बनाकर घर को सजाते हैं। अपने घर के मुख्य द्वार के आगे एक गुड़ी यानि झंडा रखते हैं। घर में किसी बर्तन पर स्वास्तिक चिंह बनाकर उसको रेशम के कपड़े में लपेट कर रखा जाता है। प्रात:काल के समय सूर्यदेव की आराधना के साथ ही सुंदरकांड, रामरक्षा स्रोत और देवी भगवती के मंत्रों का जाप करके पूजा करने का चलन है।
इस विधि से मनाते हैं गुड़ी पड़वा:
- सुबह सर्वप्रथम उठकर स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है।
- शहरों में घर की सफाई की जाती है और गांव में गोबर से घर लीपने का रिवाज है।
- मान्यता है कि इस तिथि पर अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान करना लाभदायी होता है।
- सूर्योदय के पश्चात गुड़ी की पूजा अर्चना की जाती है।
- सुर्ख रंगों से रंगोली आदि बनाई जाती है। ताजे फूलों से घर को सजाकर वातावरण को खुशनुमा बनाया जाता है।
- गुड़ी पड़वा के दिन पारंपरिक वस्त्र पहनने का भी चलन है। जिसके चलते मराठी स्त्रियां पारंपरिक नौवारी साड़ी (9 गज लंबी साड़ी) तो पुरुष केसरिया या लाल रंग की पगड़ी के साथ कुर्ता-पजामा या धोती-कुर्ता धारण करते हैं।
- इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुनने-सुनाने का भी रिवाज है।
- गुड़ी पड़वा पर श्रीखंड और खीर जैसे स्वादिष्ट भोजन बनाए जाने की परंपरा है।
- संध्याकाल में लोग समूह में रहकर लेजिम नामक पारंपरिक नृत्य भी करते हैं।
गुड़ी पड़वा कहाँ मनाया जाता है?
- हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र मास से होती है। महाराष्ट्र में हिंदू नववर्ष को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते हैं। यह दिन फसल दिवस का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु व ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है।
गुड़ी पड़वा के दिन क्या बनाते हैं?
- गुड़ी पड़वा का दिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन खास तरह के पकवान श्री खंड,पूरनपोली, खीर आदि बनाए जाते हैं। गुड़ी पड़वा पर लोग अपने घरों की सफाई करके मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है और आम या अशोक के पत्तों से अपने घर में तोरण बांधते हैं।
गुड़ी का अर्थ क्या होता है?
- यह दो शब्दों गुड़ी और पड़वा से मिलकर बना है, जिसमें गुड़ी का अर्थ है- भगवान ब्रह्मा का ध्वज। वहीं, पड़वा का मतलब चंद्रमा के चरण का पहला दिन होता है। यह त्योहार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मनाया जाता है। इस दिन विजय के प्रतीक के रूप में गुड़ी को सजाकर उसकी पूजा की जाती है।
गुड़ी पड़वा के संस्थापक कौन थे?
- हिंदी शास्त्रों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने गुड़ी पड़वा के दिन ही ब्रह्मांड की रचना की थी और उन्होंने ही दुनिया को दिन, सप्ताह, महीने और साल से परिचित कराया था।