मणिकर्णिका घाट पर गुलाल की तरह उड़ी चिताओं की राख
बाबा भोलेनाथ की नगरी में सब कुछ अलौकिक, अद्भुत और दुर्लभ हो होता है। रंगधरी एकादशी के दुसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म होली का पारंपरिक पर्व हजारों आस्थावानों के साथ मनाया गया। हर तरफ चिताओं की राख को अबीर-गुलाल की तरह उड़ाकर भक्तों ने होली खेली। विश्व प्रसिद्ध पर्व को मनाने के लिए सुबह से ही भक्तजन तैयारी में लग गए थे। एक तरफ चिताए जल रही थीं और जीवन के अंतिम सत्य के दर्शन हो रहे थे, वहीँ दूसरी तरफ चिता भस्म होली के लिए शहनाई की मंगल ध्वनि बजाई जा रही थी। एक तरह मौत का शोक दूसरी हाफ शहनाई की धुन, यह दल जुड़ाव काशी की धरती पर ही दिखाई देता है।
काशी चिता भस्म होली
मणिकर्णिका घाट पर पहुंचते हैं बाबा भोलेनाथ
बाबा भोलेनाथ भगवान शंकर जिनको औघड़ की उपाधि दी गई है, उनको भभूती से अति प्रेम है। मणिकर्णिका तरथ पर दोपहर के समय स्नान करते भक्तों का उत्साह देखते हो बन रहा था। हजारों हजार की संख्या में भक्तों का सैलाब मणिकर्णिका घाट पर पहुंच रहा था। माना जाता हैं कि बाबा दोपहर में स्नान करने मणिकर्णिका तर्थ पर पहूंचते है।इस मान्यता से यहाँ पर स्नान का महात्य और भी बढ़ जाता है। मान्यता यह भी है कि स्नान के बाद बाबा महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर पहूंचकर चीता भस्म से होली खेलते हैं। यह परंपरा अनादि काल से यहां भव्य रूप से चली आ रही है।
हर-हरि और माता मशान काली को चढ़ता है गुलाल
बाबा महास्मशान नाथ और माता मशान काली (शिव शक्ति) की मध्याल आस्ती कर बाबा को जया, विजया, मिष्ठान, व सोमरस का भोग लगाया गया। बाबा व माता को चिता भस्म व नौला गुलाल चढ़ाया गया। जैसा की सभी को पता है कि होली योगेश्वर श्रीकृष्ण राधा का भी प्रिय त्येहार है तो हर और हर दोनों के लिए भस्म के साथ नीला गुलाल, माता मशान काली का लाल गुलाल चढ़ा कर इस अदभुत पर्व को प्रारंभ किया जाता है। पर्व पर पूर मंदिर प्रांगण और और शवदाह स्थल भस्म से भर जाता है, इस उत्सव में इस वर्ष सतुवा बाबा संतोष दास महाराज, महंत संजय झींगरण, चैनू प्रसाद गुप्ता, विजय शंकर पांडेय, राजू पाठक, बिहारी लाल गुप्ता, संजय गुप्ता, मनोज शर्मा, दीपक तिवारी, विवेक चौरसिया, अजय गुप्ता, बडंक॒ यादव पूरी आस्था के साथ सब्मिलित हुए।
अनादिकाल से चली आ रही परंपरा को किया पुनर्जीवित
बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने इस प्राचीन परम्परा को पुनर्जीवित किया, जो पिछले 23 वर्षों से इसे भव्य रूप देकर दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं। उन्होंने बताया कि काशी में मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं। इस दिन को काशीवासी उत्सव के रूप में मनाते हैं और रंगों का त्यौहार होली शुरू हो जाता है।
गणों के लिए भगवान शंकर खेलते हैं भस्म होली
रंगभरी एकादशी के उत्सव में सभी शामिल होते हैं, जैसे देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य और जो शामिल नहीं होते, वे हैं बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर, दृश्य-अदृश्य शक्तियां, जिन्हें स्वयं बाबा मनुष्यों के बीच जाने से रोक कर रखते हैं। काशी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच मनाए जाने वाले इस पारम्परिक उत्सव को देखने दुनिया भर से लोग काशी पहुंचते हैं।