क्षमावाणी दिवस: जैन धर्म के अनुयायियों का एक पर्व

क्षमावाणी दिवस: जैन धर्म के अनुयायियों का एक पर्व

अपनी गलतियों पर क्षमा मांगने की क्षमता को विकसित करना बहुत जरूरी है। क्षमावाणी ऐसा पर्व है, जब लोग जीवन जीने के क्रम में होने वाली गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं। इस अवसर पर साफ दिल से सच्ची क्षमा मांगकर अपने जीवन को धन्य करें और यही इस पर्व की महत्ता भी है।

क्षमावाणी दिवस: क्षमा में भाव का होना है जरूरी

यह एक आध्यात्मिक पर्व है। इस दौरान उत्तम क्षमा की भावना को विशेष महत्ता प्रदान की गई है। जैन धर्म में पयुर्षण पर्व के दौरान दसलक्षण धर्म का महत्व बतलाया गया है। वे दस धर्म क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आंकिचन और ब्रह्मचर्य के रूप में बतलाए गए हैं। पर्युषण पर्व के दौरान प्राणी मात्र के अलावा सभी जीव-जन्तु से क्षमा मांगी जाती है। यह पर्व प्राणी-जगत को सुख-शांति का संदेश देता है।

क्षमावणी या “क्षमा दिवस” जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाने वाला एक पर्व है। दिगम्बर इसे अश्विन कृष्ण मास की एकम को मनाते हैं। श्वेतांबर इसे अपने ८ दिवसीय पर्यूषण पर्व के अंत में मनाते है। इस पर्व पर सबसे अपने भूलों की क्षमा याचना की जाती है। इसे क्षमावाणी, क्षमावानी और क्षमा पर्व भी कहते है।

भगवान महावीर कहा है कि शिष्य को गुरु से कोई भी बात छुपानी नहीं चाहिए। बच्चे की भांति सरल होकर समस्त बातें कह देनी चाहिए। आपने जीवन में जो भी कर्म किए हैं, चाहे वह अच्छे हैं सया बुरे, उसका संपूर्ण विवरण गुरु के समझ कर देना चाहिए। भगवान महावीर ने कहा है कि हम सबने अनमोल जीवन पाया है, ऐसे में आप सोचें कि क्या दो पल भी सुख के बीते हैं। जैसे काँटा चुभने पर सारी शरीर में वेदना होती है और कांटा निकल जाए तो शरीर असीम सुख प्राप्त होता है, उसी प्रकार आलोचना से मन में कोई शल्य नहीं रहता। यहां पर आलोचना का आशय खुद के भीतर के दोषों को प्रकट करने से है। आलोचना भीतर के ऋजु-भाव को उत्पन्न करती है। आलोचना से मन के समस्त विकार बाहर निकल जाते हैं।

अध्यात्म प्रकरण में कहा है – 66 करोड़ उपवास का फल और एक कटु-वचन को समता से सहन करने का फल बराबर है।

जीवन में मन के मैल को धुलना बहुत जरूरी है। एक बार आप इसमें सफल रहे, तो आप सही मायने में भीतर से शुद्ध और पवित्र हो जाएंगे। दरअसल, सम्वत्सरी पर्व ऐसा पर्व है, जिसमें इस विशेष मौके पर सबसे मैत्री, वात्सल्य, आत्मीयता का संबंध जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। आपको खुश होना चाहिए कि जीवन में ऐसे कई अवसर आपके सामने आ रहे हैं, जब आप सही मायने में खुद का आत्मविश्लेषण कर पाएं। इसलिए यह दिन खुशी के साथ मनाए जाने का दिन है। जब आप आत्म गुणों को विकसित करते हैं, तो जीवन में खुद ब खुद खुशी का संचार होने लगता है। खास तौर पर पर्व के इस इन पर हर किसी को शांत भाव के साथ रहना चाहिए। अपने क्रोध को वश में रखने की कोशिश करें। क्रोध आने पर आप विचार करें कि क्रोध का मूल कहां हैं और क्रोध के कारण पर विचार करें। ऐसे समय में जरूरी है कि आप आत्म भावों को समझें।

क्षमावाणी दिवस

आज के दिन प्रतिक्रमण का भी विशेष महत्व है। प्रतिक्रमण का मतलब है कि किए हुए अतिक्रमण से पीछे हटना। जिन्दगी में जाने अनजाने बहुत से पाप हो जाते हैं, उन पापों से पीछे हटना ही प्रतिक्रमण है। ऐसे में आपकी कोशिश होनी चाहिए कि जीवन में जाने अनजाने जितने भी पाप हुए हैं, उन सबको स्मृति पटल पर लाते हुए उस अतिक्रमण का प्रतिक्रमण करें। ऐसा करने पर सबके साथ खुद ब खुद मैत्री भाव स्थापित हो जाता है।

आज के दिन को क्षमा विशेष का दिन कहा जाता है। वास्तव में क्षमा एक शब्द नहीं है, इसे समझने के लिए अंतर्मन में झांकना होता है। यह हृदय की आंतरिक गहराइयों से उपजा जीवन संगीत है, जो दूसरों के जीवन में भी उत्साह ला देता है। जैन मुनियों का मानना है कि इस पर्व पर संगीत की सुगन्ध आपसे भी बह सकती है, यदि आप ठीक से पर्यूषण की आराधना कर जीवन को निर्मल बनायें। पर्यूषण और संवत्सरी की इस आध्यात्मिक घड़ी में प्राणी मात्र पर प्रेम, करूणा और क्षमा का भाव अपने मन में लाएं।

वह कहते हैं कि जिनके साथ आपका प्रेम है। उनसे तो आप क्षमायाचना करेंगे ही, लेकिन सही मायने में इस पर्व का महत्व इस बात से जुड़ा हुआ है कि आप उनसे भी क्षमा-याचना करें, जिनके साथ आपके मन में जरा सभी मन-मुटाव है या जिन्हें आप जरा भी पसंद नहीं करते हैं। ऐसा तभी मुमकिन है, जब आप अपने मन की ग्रन्थियों को खोल दें।

पूरे विश्व में ऐसे कई संत और मुनि हुए हैं, जिन्होंने उम्र के अन्तिम पड़ाव पर शरीर के साथ न देने पर भी समस्त शिष्यों के समक्ष जीवन भर की गलतियों के लिए क्षमा-याचना की। सही मायने में सोचें, तो क्षमा मांगना बड़ी बात है। यह ऐसा भाव है, जो मन को सुख और शांति देता है। इसके साथ ही आप सोच को विस्तार दे पाते हैं।

अन्तकृतदशांग सूत्र के अनेक उदाहरणों में कहा गया है कि हमारी दृष्टि क्षमा की होनी चाहिए। मानव एक शक्ति है उसका प्रयोग निर्माण में लग जाए तो वह मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाता है और विध्वंस में लग जाए तो वह संसार के लिए कहीं से भी सही नहीं होता है। यदि आप जप, तप, मौन, ध्यान करके मोक्ष के करीब जा रहे हैं, तो सही है, लेकिन इसके विपरीत यदि दूसरों को यातनाएं दे रहे रहे हैं, तो आप गलत मार्ग की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

जैन मुनि मानते हैं कि भाग्यशाली वह होते हैं जो आज के दिन दान, शील, तप, भावना से आराधना करते हैं। पौषध उपवास करते हैं। अध्यात्म प्रकरण में कहा है – 66 करोड़ उपवास का फल और एक कटु-वचन को समता से सहन करने का फल बराबर है। समता का फल अत्यधिक है। एक कथा के अनुसार, प्रभु महावीर के समक्ष गौतम और गौशालक दोनों ही खड़े थे। प्रभु ने दोनों पर ही समभाव रखा। हर परिस्थिति को शान्त-भाव से सहन करना यही प्रभु महावीर की सामायिक है। आज के दिन हम एकान्त में बैठकर आत्म-निन्दा करें, आत्म-आलोचना करें। इसलिए जरूरी है कि सर्व प्रथम क्षमा याचना करें और इसके बाद दिन की शुरुआत करें। ऐसा आप अपने जीवन में हर रोज कर सकें, तो बेहतर होगा। सच्चे मन से अगर प्रभु की क्षमा हमारे भीतर आ गई तो हमारा सही मायने में समाज की तस्वीर बदल सकती है। इसलिए जरूरी है कि आप आज के इस पवन पर्व पर आप व्यापक पैमाने पर क्षमा मांगे और आत्म शुद्धि की ओर अग्रसर हों। इससे निश्चित रूप से आपके जीवन में सार्थकता आएगी और आप प्रभु की सेवा का पूर्ण फल भी प्राप्त कर सकेंगे। यह याद रखें कि हमारी आत्मा का मूल गुण क्षमा ही है।

Jainism In India

Jainism is India’s sixth-largest religion and is practiced throughout India.

As per the 2011 census, there are only 4,451,753 Jains in the 1.21 billion population of India, the majority living in Maharashtra, Rajasthan, Gujarat and Madhya Pradesh, however, the influence of Jainism has been far greater on the Indian population than these numbers suggest. Jains can be found in 34 out of 35 states and union territories, with Lakshdweep being the only union territory without Jains. The state of Jharkhand, with a population of 16,301 Jains also contains the holy pilgrimage centre of Shikharji.

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