हिरण्याक्ष के वध से उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुखी हुआ और वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजेय बनने की भावना से कठोर तप किया। इसके परिणामस्वरूप उसे देवता, मनुष्य या पशु आदि से न मरने का वरदान मिल गया और यह वरदान पाकर वह अजेय हो गया।
हिरण्यकशिपु का शासन इतना कठोर था कि देव-दानव सभी उसके भय से उसके चरणों की वंदना करते रहते थे। भगवान की पूजा करने वालों को हिरण्यकशिपु कठोर दंड देता था। उसके शासन से सब लोक और लोकपाल घबरा गए। जब उन्हें और कोई सहारा न मिला तब वे भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया।
दैत्यराज का अत्याचार दिनों-दिन बढ़ता ही गया। यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रह्लाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह के कष्ट देने लगा। प्रह्लाद बचपन से ही खेलकूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करते थे। वह भगवान के परम प्रेमी भक्त थे। वह समय-समय पर असुर बालकों को भी धर्म का उपदेश देते रहते थे।
प्रह्लाद जी द्वारा असुर बालकों को उपदेश देने की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रह्लाद जी को दरबार में बुलाया। प्रह्लाद जी बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ कर चुपचाप दैत्यराज के सामने खड़े हो गए। उन्हें देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा, “मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बल-बूते पर निडर की तरह मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?”
इस पर प्रह्लाद जी ने कहा, “पिता जी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वही परमेश्वर अपनी शक्तियों के द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं। आप अपना यह आसुरी भाव छोड़ दीजिए और अपने मन को सबके प्रति उदार बना लीजिए।”
प्रह्लाद जी की बात सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा। उसने प्रह्लाद जी से कहा, “रे मंदबुद्धि! तेरे बहकने की अब हद हो गई है। यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खम्भे में क्यों नहीं दिखता?”
यह कह कर क्रोध से तमतमाया हुआ हिरण्यकशिपु स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से नीचे कूद पड़ा और उसने बड़े जोर से उस खम्भे को एक घूंसा मारा। उसी समय उस खम्भे के भीतर से नृसिंह भगवान प्रकट हो गए। उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था। क्षण मात्र में ही लीलाधारी नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु की जीवन-लीला समाप्त कर दी और अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।