Nirjala Ekadashi Vrat: According to Markandeya Purana, the Harivansh canto influences the greatness of Ekadashis. There are twenty four ekadashis those are observed throughout the year within the Shukla (bright) and Krishna (dark) phases of the months. The Ekadashi that falls during the bright half of Jyeshta month is considered as the most auspicious “Nirjala Ekadashi“.
The fast performed during this day is most strict as even drinking water is prohibited while performing it and that is why the day is called Nirjala Ekadashi. The word Nirjala – is made of two Hindi words “Nir” which means No and “Jal” means Water. It is said that by performing this single Ekadashi’s fast, the advantage of all other Ekadashis corresponds.
Nirjala Ekadashi Date:
- 2024: 18 June, 2024 (Tuesday)
- 2025: 06 June, 2025 (Friday)
- 2026: 15 June, 2026 (Thursday)
During the era of Mahabharata, once Maharishi Vyas visited the Pandavas and Bhima asked a question to him that all his four brothers and mother Kunti and wife Draupadi observed the fast of all Ekadashis and asked him also to perform the same but he showed his inability and requested Maharishi Vyas to forgive him from all the twenty four Ekadashis fasts as by not performing those he would be part of immoral act. Then Maharishi Vyas said that, there is a fire named “Brik” inside him and was not satisfied until he ate enough food to beat hunger. Therefore he can perform only one Ekadashi of Jyeshta month despite of all the twenty four Ekadashis of the year and will get the fruit of all the occasions but he need to keep this Nirjala Ekadashi throughout the life. Bhima performed the fast with an ease but on the morning of very next day he became unconscious. Then he offered water of river Ganga with Tulsi to end up his day long strict fast. Since then it is also observed as the “Bhimseni Ekadashi“.
In general terms, while performing the fast of Nirjala Ekadashi, Jagran or night prayer is observed in most of the temples in India as well as across the world wherever Indians live. Ceremony of “Jaldan” (donate water through camps) starts from the day of Ekadashi itself where devotees organized the camps of syrups, soft drinks and water on the roads in burning heat of Jyeshta month. Married women also perform the fast with full devotion and belief.
As per the Hindu mythological observations, fast of Nirjala Ekadashi should be observed by all the people of society with full belief and dedication. On this day after the rituals of bathing etc one should sit in an isolated place in order to make concentrations of Lord Vishnu, lying on Shesh Shaiya and do recitation of “Om Namah Bhagwate Vasudevay Namah“. Being dehydrated throughout the day, one should perform Bhajans and meditations in night which is inevitable. Sleeping in night should be completely denial on this particular day and after performing night vigil person should take bath on next day morning of twelfth day. After bath, donate food, clothes, fruits, sherbet, milk etc. then person can break fast by drinking sherbet once the endowment of all items done.
सालभर में 24 एकादशी आती हैं, 12 शुक्ल पक्ष की और 12 कृष्ण पक्ष की और हर एकादशी का खास महत्व होता है। लेकिन, शास्त्रों में निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) को मोक्ष देने वाली एकादशी कहा जाता है, इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन व्रत करने के अलावा गंगा में स्नान करने और दान करने का विशेष महत्व होता है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून 2024, मंगलवार के दिन रखा जाएगा। ऐसे में आप कैसे निर्जला एकादशी का व्रत करें और इसकी व्रत कथा (Vrat Katha) क्या है जानें यहां।
निर्जला एकादशी पर जानें व्रत कथा:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, कर्म और मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प कराया था तब युधिष्ठिर ने पूछा था ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी है उसके बारे में विस्तार से बताइए। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे! राजन, इस बारे में परम धर्मात्मा व्यास जी बताएंगे। तब व्यास जी ने बताया कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में भोजन नहीं किया जाता है और उसके अगले दिन द्वादश तिथि को स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा की जाती है। पहले ब्राह्मण को भोजन कराकर बाद में खुद भोजन किया जाता है।
इस पर भीमसेन बोले: पितामह मैं आपके सामने सच कहता हूं मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूं। मैं पूरे साल में केवल एक ही उपवास कर सकता हूं, जिससे स्वर्ग की प्राप्ति हो, अगर ऐसा कोई व्रत है तो बताएं। इस पर व्यास जी ने कहा ज्येष्ठ माह में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है, उस पर निर्जला व्रत करें। एकादशी तिथि पर सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल नहीं पिएं, तब यह व्रत पूरा होगा। इसके बाद द्वादश तिथि को स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करें। इस तरह से अगर आप केवल निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं, तो इससे सालभर में जितनी भी एकादशी तिथि होती है उसका फल प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि जिस भी व्यक्ति ने श्री हरि (Lord Vishnu) की पूजा और रात में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया उन्हें अपने साथ-साथ पिछली 100 पीढ़ियों को और आने वाली 100 पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुंचा दिया है। कहते हैं कि जो व्यक्ति इस एकादशी पर सच्चे मन से व्रत करता है वो स्वर्ग लोक में जाता है।
ब्राह्मणों को दान देने का महत्व:
ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष में जो शुभ एकादशी होती है उसका निर्जला व्रत करना चाहिए. उस दिन ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुंच सकता है। द्वादश तिथि को ब्राह्मणों का भोजन करने के बाद खुद भोजन ग्रहण करें। इस तरह से व्रत का संकल्प लेने से और व्रत (Ekadashi Vrat) करने से सभी पापों का नाश हो जाता है।