The celebration of Ramakrishna Paramahansa Jayanti is taking place on March 12, 2024, to mark the 188th birth anniversary of Ramakrishna Paramahansa.
Ramakrishna Jayanti commemorates the birth anniversary of Ramakrishna Paramahansa, a 19th-century Hindu saint in India who was renowned for simplifying complex spiritual teachings. He is also referred to as Gadadhar Chatterji or the Paramahansa, and he is remembered on this special day for his contributions to spirituality and his teachings on the unity of different faiths.
Ramakrishna Paramahansa Jayanti 2024:
Ramakrishna Jayanti will be observed on Tuesday, March 12, 2024. The auspicious occasion falls on the Dwitiya Tithi of the Phalguna month in the Hindu calendar.
Ramakrishna Jayanti’s Time:
- Dwitiya Tithi starts: 10:45 – 11 March 2024
- Dwitiya Tithi Ends: 07:15 – 12 March 2024
The 188th Ramakrishna Jayanti is being observed on March 12, 2024, providing an occasion for individuals to reflect on Ramakrishna Paramahansa’s life and teachings and look for inspiration in his message of spiritual peace and universal love.
History behind Ramakrishna Jayanti:
Born into a humble and devout Brahmin family in the Hooghly district of West Bengal, India, Ramakrishna Paramahansa’s spiritual journey began when he became a priest at the Dakshineswar Kali Temple, which was devoted to the worship of Goddess Kali. He later married Sarada Devi, who was not only his wife but also his spiritual partner.
Among his many devoted followers was Swami Vivekananda, who regarded Ramakrishna as his spiritual mentor. With his guidance, Swami Vivekananda became an instrumental figure in spreading the spiritual movement known as the Ramakrishna Movement to people all over the world.
What is the real name of Ramakrishna Paramahansa?
- Ramakrishna Paramahansa was born as Gadadhar Chattopadhyay.
How old was Ramakrishna Paramahansa when he died?
- Ramakrishna Paramahansa was 50 years old when he died.
Significance of this day:
Ramakrishna Jayanti is a day of great significance and importance for followers of Ramakrishna Paramahansa, a celebrated 19th-century saint in India, and is observed with fervour and devotion. The occasion is an opportunity for people to reflect on his life and teachings and seek inspiration from his message of spiritual harmony and universal love.
Quotes by Shri Ramakrishna Paramhansa Deva:
Here are some of his best quotes:
- Women are, all of them, the veritable images of Shakti.
- Knowledge leads to unity, but Ignorance to diversity.
- Lovers of God do not belong to any caste.
- Never get into your head that your faith alone is true and every other is false. Know for certain
that God without form is real and that God with form is also real. Then hold fast to whichever
faith appeals to you. - Through selfless work, love of God grows in the heart. Then, through His grace, one realizes
Him in course of time. God can be seen, one can talk to Him, as I am talking to you. - Many are the names of God, and infinite the forms that lead us to know Him. In whatsoever
name or form you desire to call Him, in that very form and name you will see Him. - Rain-water never stands on high ground, but runs down to the lowest level. So also the mercy
of God remains in the hearts of the lowly, but drains off from those of the vain and the proud. - As you pray to God for devotion, so also pray that you may not find fault with anyone.
- Men are like pillow-cases. The colour of one may be red, that of another blue, and that of the
third black; but all contain the same cotton within. So it is with man; one is beautiful, another
is ugly, a third holy , and a fourth wicked; but the Divine Being dwells in them all. - It is the mind that makes one wise or ignorant, bound or emancipated.
- It is easy to talk on religion, but difficult to practice it.
रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। हिन्दी पंचांग के अनुसार रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर हुआ था। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से परमहंसजी का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुर में हुआ था। उनकी मृत्यु 16 अगस्त 1886 को कोलकाता में हुई थी। उनकी जयंती के अवसर पर जानिए 3 ऐसे प्रेरक प्रसंग, जो सुखी और सफल जीवन के सूत्र बताते हैं…
पहला प्रसंग – सभी लोग भक्ति क्यों नहीं कर पाते हैं?
एक दिन रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य ने पूछा कि इंसान के मन में सांसारिक चीजों को पाने की और इच्छाओं को लेकर व्याकुलता रहती है। व्यक्ति इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए लगातार कोशिश करता है। ऐसी व्याकुलता भगवान को पाने की, भक्ति करने की क्यों नहीं होती है?
परमहंसजी ने जवाब दिया कि व्यक्ति अज्ञानता की वजह से भक्ति नहीं कर पाता है। अधिकतर लोग सांसारिक वस्तुओं को पाने के भ्रम में उलझे रहते हैं, मोह-माया में फंसे होने की वजह से व्यक्ति भगवान की ओर ध्यान नहीं दे पाता है। इसके बाद शिष्य ने फिर पूछा कि ये भ्रम और काम वासनाओं को कैसे दूर किया जा सकता है?
परमहंसजी ने जवाब दिया कि सांसारिक वस्तुएं भोग हैं और जब तक भोग का अंत नहीं होगा, तब तक व्यक्ति भगवान की ओर मन नहीं लगा पाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि कोई बच्चा खिलौने से खेलने में व्यस्त रहता है और अपनी मां को याद नहीं करता है। जब उसका मन खिलौने से भर जाता है या उसका खेल खत्म हो जाता है, तब उसे मां की याद आती है। यही स्थिति हमारे साथ भी है।
जब तक हमारा मन सांसारिक वस्तुओं और कामनाओं के खिलौनों में उलझा रहेगा, तब तक हमें भी अपनी मां यानी परमात्मा का ध्यान नहीं आएगा। भगवान को पाने के लिए, भक्ति के लिए हमें भोग-विलास से दूरी बनानी पड़ेगी, तभी हम भगवान की ओर ध्यान दे पाएंगे।
दूसरा प्रसंग – जो लोग नियमों को तोड़ते हैं, उन्हें दंड जरूर मिलता है
एक दिन रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। वे धर्म और अध्यात्म से जुड़ी बातें कर रहे थे। तभी एक शिष्य ने कहा कि ये सृष्टि इतनी बड़ी है। यहां इतनी विविधता है, फिर भी संपूर्ण सृष्टि पूरे नियंत्रण के साथ चल रही है, ऐसा कैसे हो रहा है?
परमहंसजी ने जवाब दिया कि इस सृष्टि की रचना परमात्मा ने की है और उनका पूरा नियंत्रण है इस पर। ईश्वर के नियमों में जरा भी ढील नहीं है, उनका कानून बहुत सख्त है। जो जैसा करेगा, उसे वैसा ही फल मिलेगा।
जंगल में अंसख्य जानवर हैं, सभी को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और सभी अच्छी तरह करते भी हैं। ये शक्ति भगवान ने ही दी है। आकाश में असंख्य ग्रह-नक्षत्र हैं, सभी अपनी धूरी पर अपने नियमों के साथ टिके हुए हैं। एक भी ग्रह सृष्टि के नियमों से अलग नहीं जाता है। हमारे में समाज में असंख्य लोग हैं, सभी की सोच अलग है, लेकिन एक-दूसरे से प्रेम और मैत्री भाव के साथ रहते हैं। जो लोग सृष्टि के नियमों को तोड़ता है, प्रकृति उन्हें दंड जरूर देती है।
ये पूरी सृष्टि परम पिता परमेश्वर का परिवार है, सभी पर भगवान का नियंत्रण है। यहां सभी को अपने नियमों का पालन सख्ती से करना ही पड़ता है। इसीलिए हमें गलत कामों से बचना चाहिए, वरना प्रकृति के नियम बहुत कठोर हैं।
तीसरा प्रसंग – भक्ति में किसी एक रास्ते पर आगे बढ़ते रहना चाहिए
एक चर्चित प्रसंग के अनुसार एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्य से बात कर रहे थे। तब उन्होंने कहा कि ईश्वर एक ही है, उस तक पहुंचने के मार्ग अलग-अलग हैं। इसीलिए हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है ईश्वर तक पहुंचना। भक्ति के तरीके-तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।
ये बात सुनकर शिष्य ने कहा कि हम ये कैसे मान सकते हैं कि सभी रास्ते एक ही लक्ष्य तक पहुंच रहे हैं? परमहंसजी ने कहा कि सभी रास्ते सत्य हैं। किसी भी एक रास्ते पर दृढ़ता से आगे बढ़ते रहने से एक दिन हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने शिष्य को समझाते हुए कहा कि किसी अनजाने घर की छत पर पहुंचना कठिन है। छत पर पहुंचने के कई रास्ते हो सकते हैं, जैसे सीढ़ियों से, रस्सी से या किसी बांस के सहारे हम ऊपर पहुंच सकते हैं। हमें इनमें से किसी एक रास्ते को चुनना होगा। जब एक बार किसी तरह छत पर पहुंच जाते हैं तो सारी स्थितियां स्पष्ट नजर आती हैं। नीचे से ऊपर देखने पर जो रास्ते भ्रमित कर रहे थे, वे ऊपर से नीचे देखने पर एकदम साफ-साफ दिखाई देते हैं।
हमें भक्ति करते समय किसी एक रास्ते पर दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ते रहना चाहिए। अलग-अलग रास्तों को देखकर भटकना नहीं चाहिए। तभी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।