Tulsi Vivah Festival Information For Household

Tulsi Vivah Festival Information For Hindus

Tulsi Vivah is celebrated on the next day of Karthik Ekadashi. On this day Tulsi is married to Saaligram.

Tulsi Vivah is the ceremonial marriage of the Tulsi plant to the Hindu god Shaligram or Vishnu or to his avatar, Sri Krishna. The Tulsi wedding signifies the end of the monsoon and the beginning of the wedding season in Hinduism.

Tulsi Vivah Dates:

  • 2022: Saturday, 05 November 2022
  • 2021: Monday, 15 November 2021

The tulsi plant is held sacred by the Hindus as it is regarded to be an incarnation of Mahalaxmi who was born as Vrinda. Tulsi was married to demon king Jalandhar. She prayed to Lord Vishnu that her demon husband should be protected, with the result no God was able to harm him. However on the request of the other Gods, Lord Vishnu took the form of Jalandhar and stayed with the unsuspecting Tulsi. When the truth emerged after Jalandhar’s death, Vrinda cursed Lord Vishnu and turned him to stone (Shaligram) and collapsed. From her body emerged the tulsi plant. That is why Vishnu puia is considered incomplete without tulsi leaves.

The very name Tulsi, that which cannot be compared, the “incomparable one”, has spiritually uplifting qualities. Tulsi has been found to possess extraordinary powers of healing.

तुलसी विवाह (Tulsi Vivah)

तुलसी विवाह एक बहुत ही पवित्र और फलदाई त्योहार है। इस दिन तुलसी के पौधे की शालीग्राम (पत्थर) से शादी की जाती है। ये शादी भी अन्य शादियों की तरह मनाई जाती है। नए नए कपड़े डाले जाते हैं, मंडप सजता है, फेरे होते हैं और दावत भी दी जाती है। दरअसल चार महीने तक देवता सोए हुए होते हैं और इस दौरान सिर्फ पूजा पाठ ही होता है कोई शुभ कार्य नहीं होता है। देव उठनी के दिन सभी जागते हैं और मुहुर्त भी खुल जाते हैं। देवताओं के उठने के बाद पहला शुभ कार्य होता है तुलसी विवाह। तुलसी विवाह कार्तिक एकादशी के अगले दिन होता है।

कैसे होता है तुलसी विवाह?

विवाह में सब कुछ आम विवाह की तरह ही होता है। बस दुल्हन की जगह होता है तुलसी का पौधा और दुल्हे की जगह शालीग्राम। शालीग्राम असल में विष्णु भगवान हैं। घर सजाया जाता है। मंडप लगता है। सबसे पहले तुलसी के पौधे को लाल चुनरी ओढ़ाई जाती है। 16 श्रंगार का सामान चढ़ाया जाता है। अग्रि जलाई जाती है, शालिग्राम और तुलसी को हाथ में पकड़ कर फेरे दिलाए जाते हैं। विवाह के बाद प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। विवाह में महिलाएं विवाह गीत और भजन गाती हैं।

तुलसी विवाह कथा

कहा जाता है कि बहुत सदियों पहले एक जालंधर नाम का असुर था। वो हमेशा ही देवताओं को हरा देता। हर तरफ उसने क्रूरता फैला रखी थी। उसकी ताकत के पीछे थी उसकी पत्नी वृंदा और उसका पतिव्रता धर्म। जालंधर से परेशान देवताओं ने विष्णु से गुहार लगाई। तब विष्णु ने जालंधर की पत्नी का सतीत्व नष्ट कर दिया। सतीत्व खत्म होते ही जालंधर असुर युद्ध में मारा गया। वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया कि तुम अब पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।

तुलसी विवाह हर साल क्यों?

प्रबोधिनी एकादशी के अवसर पर तुलसी विवाह करवाने की परंपरा युगों से चली आ रही है। इसकी वजह यह है कि जब भगवान विष्णु और शिवजी ने मिलकर जलंधर का वध करके देवताओं को जलंधर के अत्याचार से मुक्त करवाया तो जलंधर की पत्नी सती वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। वृंदा ने भगवान को शाप इसलिए दे दिया था क्योंकि जलंधर का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा के साथ छल किया था। भगवान को ऐसा इसलिए करना पड़ा था क्योंकि वृंदा के सतीत्व के कारण जलंधर अजेय बन गया था।

वृंदा को जब अपने साथ हुए छल और पति के वध के बारे में पता चला तो उससे क्रोध सहन नहीं हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दे दिया। सृष्टि का संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु का होना जरूरी था। ऐसे में देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया और भगवान को शाप मुक्त कर दिया। लेकिन भगवान ने वृंदा के शाप को कायम रखने के लिए स्वयं को एक अन्य रूप शालिग्राम के रूप में प्रकट कर लिया। जहां वृंदा ने अपने शरीर को अग्नि के हवाले किया वहां से एक तुलसी के पौधा प्रकट हुआ। भगवान विष्णु ने ही वृंदा को वरदान दिया था कि तुम्हारी राख से तुम तुलसी के रूप में प्रकट होगी और देवी लक्ष्मी के समान मुझे प्रिय रहोगी। तुम्हें मैं हमेशा अपने सिर पर धारण करूंगा।

देवी देवताओं ने कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप का विवाह सती तुलसी के संग करवाया। उस दिन को याद करते हुए हर साल देवी तुलसी का विवाह भगवान शालिग्राम के संग करवाने की परंपरा चली आ रही है। यह एक तरह से विवाह के वर्षगांठ का उत्सव है। कहते हैं जो जो लोग तुलसी संग भगवान का विवाह करवाते हैं उनका वैवाहिक जीवन सुखद होता है। अगले जन्म में भी उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

ऐसे करवाएं तुलसी विवाह

प्रबोधिनी एकादशी के दिन देवी तुलसी के ऊपर लाल चुनरी ओढाएं। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र पहनाएं। अगर घर में शालिग्राम है तो उन्हें पीले वस्त्र में लपेटकर तुलसी की जड़ में रखें और एक वस्त्र से दोनों का गठबंधन करवाएं। तुलसी से लेकर पूजा घर तक का रास्ता साफ करके उस पर रंगोली सजाएं। तुलसी संग भगवान विष्णु की पूज करें। भगवान विष्णु की आरती और तुलसी माता की आरती करें। तुलसी की जड़ में घी के दीप जलाएं।

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