वाल्मीकि जयंती विशेष: इन घटनाओं को जानकर दंग रह जाएंगे
इस तरह डाकू से महर्षि बने थे वाल्मीकि:
आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को महाकाव्य रामायण के रचनाकार महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 31 अक्टूबर यानी आज है। महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस को वाल्मीकि जयंती के नाम से जाना जाता है। सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि ने ही संस्कृत भाषा में रामायण लिखी थी, जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखी थी। इसके कारण ही वह आदिकवि कहलाए। महर्षि वाल्मीकि ऐसे विद्वान हैं, जिन पर सभी देवी-देवताओं ने अपनी कृपा बरसाई थी। हम आपको वाल्मीकि जयंती पर महर्षि वाल्मीकि से संबंधित ऐसी घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको जानकर आप दंग रह जाएंगे…
महर्षि वाल्मीकि का जन्म और पालन पोषण:
महर्षि बाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था और इनके पिता ब्रह्माजी के मानस पुत्र प्रचेता था। लेकिन बचपन में एक भीलनी द्वारा इनका अपहरण कर लिया गया, जिसके कारण भील समाज में इनका लालन पालन हुआ। भील परिवार के लोग उस वक्त जंगल में लोगों को लूटने का कार्य करते थे, जिसके कारण उन्होंने डकैती और लूटपाट का काम शुरू कर दिया।
इस तरह डाकू से महर्षि बने वाल्मीकि:
वाल्मीकि के लिए भगवान ने कुछ और ही सोच रखा था। इसलिए एकबार जंगल में नारद मुनि गुजर रहे थे, तभी वाल्मीकि ने उनको बंदी बना लिया। नारद मुनि ने कहा कि तुम जो पाप कर्म कर रहे हो, क्या इसके साझेदार तुम्हारे परिवार के लिए बनेंगे, एकबार जरा पूछकर आना। वाल्मीकि ने परिवार के सभी लोगों से पाप के साझेदार के बारे में पूछा लेकिन सभी ने मना कर दिया। इससे वाल्मीकि का संसार से मोह भंग हो गया और तब नारदजी ने मुक्ति का उपाय पूछा। तब नारदजी ने उनको राम नाम का मंत्र दिया। तभी से प्रचेता के गुण और रक्त ने जोर मारना शुरू कर दिया और अपने तपोबल से डाकू से महर्षि वाल्मीकि बन गए।
इस तरह रामायण के बने रचनाकार:
एक दिन महर्षि वाल्मीकि नदी तट पर क्रौंच पक्षियों के जोड़े को प्रणय करते देख रहे थे, तभी एक शिकारी ने तीर से क्रौंच नर को मार दिया। इससे महर्षि काफी व्याकुल हो गए और उनके मुख से शाप निकल पड़ा:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
यानी जिस दुष्ट शिकारी ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है उसे कभी चैन नहीं मिलेगा। शाप देने के बाद महर्षि सोच में पड़ गए आखिर मुख से ये कौन से शब्द निकल गए। तब नारद मुनि आए और उनकी व्याकुलता को समाप्त किया। नारद मुनि ने कहा कि यह आपका पहला श्लोक है, जिससे अब आप रामायण जैसे महाकाव्य की रचना करेंगे। इसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की।
भगवान राम पर महर्षि वाल्मीकि का उपकार:
भगवान राम पर महर्षि वाल्मीकि पर एक उपकार भी किया था। जब माता सीता को भगवान राम ने त्याग दिया था तब माता सीता महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में रहने लगीं और वहीं पर उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया। लव-कुश के जन्म के बाद महर्षि वाल्मीकि ने ही उनका लालन-पालन किया और शिक्षा दी।
वाल्मीकि के लिए हनुमानजी ने किया यह त्याग: Valmiki Jayanti
महर्षि वाल्मीकि ने जब रामायण की रचना कर चुके थे, तब से वह अपनी रचना को देखकर काफी आनंदित हो रहे थे। लेकिन एक दिन जब महर्षि सुबह-सुबह भ्रमण के लिए निकले थे तब उनकी दृष्टि चट्टानों पर गई, जहां उन्होंने रामायण के श्लोक देखे। इन श्लोक को पढ़कर वाल्मीकि हैरान हो गए कि आखिर इतनी अच्छी रामायण किसने यहां लिखी है। इससे वाल्मीकिजी दुखी हो गए कि इस रामायण के पढ़ने के बाद मेरी रामायण को कौन पढ़ेगा। तब हनुमानजी ने बताया कि यह रामायण मैंने लिखी है। हनुमानजी द्वारा लिखी गई रामायण को हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपने नाखूनों से पत्थरों की शिलाओं पर रामायण लिखी थी। लेकिन महर्षि की मनोदशा को समझते हुए हनुमानजी ने मुस्कराते हुए उसी समय चट्टानों पर लिखी रामयण को समुद्र में फेंक दिया और कहा कि आज से आपकी ही रामायण को मूल रामायण माना जाएगा।
तुलसीदास से बाल्मीकि का संबंध: Valmiki Jayanti
लोक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि ही अगले जन्म में तुलसीदास जी हुए थे और उन्होंने रामायण से रामचरित मानस की रचना की थी। इस जन्म में भी हनुमानजी ने तुलसीदास की सहायता की थी और राम के बड़े भक्त बने थे।