व्हात्सप्प से ली गयी – बेनाम शायरी
दुश्मनों की महफ़िल में चल रही थी मेरे कत्ल की तैयारी…
मैं पहुंचा तो बोले, “यार बहुत लम्बी उम्र हे तुम्हारी…”
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मै ये नही कहता की मेरा हाल पूछो तुम
खुद किस हाल मै हो बस इतना बता दिया करो तुम…|
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काग़ज़ पे तो अदालत चलती है…
हमने तो तेरी आँखो के फैसले मंजूर किये।
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तुझे भी सुलझा लेंगे “ऐ जिंदगी”
पहले वॉटसएप का न्यू वर्जन तो समझ लेने दे
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“यूँ तो ए ज़िन्दगी तेरे सफर से शिकायते बहुत थी,
मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे तो कतारे बहुत थी!”
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मुस्कुराहटे तो कई खरीदी थी…
मेरे चेहरे पर कोई जंची ही नही…
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जरुरी नही की कुछ तोड़ने के लिए पत्थर ही मारा जाऐ…
लहजा बदल कर बोलने से भी बहुत कुछ टूट जाता है…!
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गलतफहमियों के सिलसिले इतने दिलचस्प हैं,
हर ईंट सोचती है, दीवार मुझ पर टिकी है।
डॉ. मंजरी शुक्ल की कलम से
कुछ तो मेरी मोहब्बत के साथ इंसाफ़ करता वो
रहकर ग़ैर के पहलू में कभी तो याद करता वो
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याद करना क्या उसे अब भूलना है क्या
जो घुल गया है फ़िज़ा में इत्र की तरह…
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जुगनू बन चमकती रहती है यादें तेरी
अंधेरों से अब मुझे खौफ़ नहीं रहता …..
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पिछले जन्मों का हिसाब चुकाने को
तेरी मोहब्बत में हम गिरफ्तार हुए…..
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