कुछ वर्ष पहले तो भारत में इनकी संख्या काफी कम हो चुकी थी क्योकि अक्सर किसान इनके मारे मवेशियों पर ज़हर छिड़क दिया करते थे जिससे इनकी मौत हो जाती थी। परन्तु हाल के वर्षों में संगरक्षण के प्रयासों से भारत के पश्चमि घाट के जंगलों में लकड़बग्घों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है।
विशेषताएं
- यह परजीवी प्राणी है। इसके शक्तिशाली जबड़े होते हैं। मजबूत अगली टांगे और नुकीले दांत होने के बावजूद यह बड़ा शिकार करने में असमर्थ है। कभी – कभी बीमार और जख्मी छोटे जीवों पर हमला करता है।
- अफ्रीका में चोरी छिपे शिकार करने वालों के फंदों में जो जानवर फंस जाते हैं उन्हें शिकारियों के आने से पहले ही लकड़बग्घे खाने लगते हैं।
- चीतला लकड़बग्घा कीट – पतंगों को भी खा जाता है। टिड्डो का यह विशेष शौकीन है। जिन दिनों टिड्डी दल आते हैं, यह उन्हीं से पेट भर लेता है।
- गर्मियों में जब तालाब सूखने लगते हैं इन्हे वहां से मछली पकड़ते हुए देखा जाता है।
- यह चमड़े की बनी किसी भी चीज़ को नहीं छोड़ता, बन्दूक का कवर और जूतों को भी चबा जाता है।
- धारीदार लकड़बग्घों की संख्या ज्यादा है, चीतल लकड़बग्घों की संख्या बहुत कम है।
- यह बहुत बदसूरत जानवर है। इसके शरीर से दुर्गंध आती है। कई जानवर इसका मांस खाने में हिचक महसूस करते है।
- इसकी लम्बाई 150 सेंटीमीटर , उचाई 90 सेंटीमीटर तथा वजन 40 किलोग्राम तक होता है।
- गर्दन मोटी, अगली टाँगें भारी, आँखे गहरी, जीभ खुरदरी, चौड़ा सिर इसकी पहचान है।
- शरीर की इस भद्दी बनावट से इसकी चाल पर भी असर पड़ता है। ऐसा लगता है कि मानो लंगड़ाकर चल रहा है।
- मादा 2 वर्ष में बच्चे पैदा करने योग्य हो जाती है। एक बार में दो – तीन शावक पैदा होते हैं।
- इसकी औसत उम्र 19 वर्ष मानी जाती है। चिड़ियाघर में 25 – 30 साल तक भी जी लेते हैं।
- चिड़ियाघरों में भी यह गन्दा जानवर माना जाता है। इसका बाडा दूर – दूर तक दुर्गन्ध फैलता है। पर्यटक भी इसके पास जाने से कतराते हैं।