हाल ही में दक्षिण कोरिया 5जी नेटवर्क लांच करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। अन्य कई देश इसे लांच करने पर जोर-शोर से लगे हुए हैं। चलिए जानते हैं कि 5 जी आखिर 4 जी से कैसे अलग है और यह क्या कर सकता है?
स्मार्टफोन से बिना किसी तार के हाई स्पीड दाता आने-जाने लगा। तेज डाटा स्पीड के कारण नेविगेशन, मैसेजिंग और कई अन्य कामों के लिए एप्स का इस्तेमाल शुरू हो गया। मोबाइल फोन पर वीडियो भी आराम से देखे जाने लगे।
सबसे तेज 4जी नेटवर्क पर स्पीड औसतन 45 एम.बी.एस. (मैगाबिट्स पर सैकेंड) दर्ज की जाती है। उम्मीद थी कि इसे और बढ़ाया जा सकता है लेकिन दुनिया भर में स्मार्टफोन्स की बढती मांग के कारण 4जी नैटवर्क अब ओवरलोड का शिकार हो रहा है। इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि हाईवे पर अकेली गाड़ी तेज रफ्तार भर सकती लेकिन अगर सड़क पर 1,000 और गाड़ियां हों धीमी हो जाएगी। 5जी इसी मुश्किल को हल करने की तैयारी है।
चिप निर्माताओं को उम्मीद है कि 5जी नैटवर्क में इंटरनैट की स्पीड को 1,000 एम.बी.पी.एस. तक पहुंचाया जा सकेगा। आम जिंदगी में इसका मतलब होगा कि 4जी की तुलना 10 से 20 गुना तेज डाटा डाऊनलोड स्पीड मिल सकेगी।
In Depth: 2G to 5G – By 2022, several countries would have shifted to 5G – ushering in a new age of interconnectedness… while the technology is considered revolutionary, it’s also going to be expensive as carriers will have to upgrade their infrastructures. Today’s In Depth talks about this emerging technology, its concept, requirements and features, who does it benefit, what are the challenges in 5G development, and is India ready for 5G?
ये हैं 5 तकनीकें:
5जी को पांच अलग-अलग तकनीकों का संगम भी कहा जा रहा है। इनमें ‘मिलीमीटर वेब्स’, ‘स्मॉल सैल’, ‘मैसिव माइमो’, ‘बीमफॉर्मिंग’ और ‘फुल डुप्लैक्स’ शामिल हैं।
- फिलहाल हमारे स्मार्टफोन और अन्य इलैक्ट्रॉनिक डिवाइसेज जैसे टी.वी. या वाई-फाई 6 गीगाहर्ट्ज से नीचे की फ्रीकेंसी पर चलते हैं लेकिन इंटरनैट इस्तेमाल करने वाले उपकरणों की बढती संख्या के कारण यह फ्रिक्केंसी जाम हो रही है और धीमी पड़ रही है इसीलिए अब मिलीमीटर वेब्स के जरिए 30 से 300 गीगाहर्ट्ज के खाली फ्रीक्केंसी बैंड को इस्तेमाल करने की तैयारी है लेकिन वेवलैंथ काफी छोटी होने के कारण मिलीमीटर वेब्स बहुत अच्छे से सफर नहीं कर पाती हैं। ये पेड़ या इमारतों जैसी बाधा को पार नहीं कर पाती हैं, बारिश और पेड़ भी इन तरंगों को सोख लेते हैं इसीलिए इसके साथ ‘स्मॉल सैल’ तकनीक को भी मिलाया जा रहा है। फिलहाल डाटा ट्रांसफर के लिए ऊंचे मोबाइल टावरों का इस्तेमाल किया जाता है। इन टावरों से अगर ‘मिलीमीटर वेब्स’ छोड़ी गईं तो वे बाधाओं से टकरा कर बेकार हो जाएंगी इसीलिए अब एक बड़े टावर के आस-पास कई छोटे-छोटे ‘स्मॉल सैल बेस’ प्वाइंट लगाने की बात हो रही है। ये बेस प्वाइंट ऊंचे टावर की आवृत्तियों को ट्रांसफॉर्मरों की तरह आगे फैलाने का काम करेंगे।
- इसमें ‘मल्टीपल इनपुट’ और ‘मल्टीपल’ कही जाने वाली तकनीक ‘मैसिव माइमो’ का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
- 4जी के टावरों एंटीनाओं के लिए करीब दर्जन भर पोर्ट्स होते हैं। ‘मैसिव माइमो’ बेस्ट स्टेशनों में एंटिनाओं पर 100 से ज्यादा पोर्ट्स होंगे।
- लेकिन इतने ज्यादा सिग्नलों से क्रॉस कनैक्शन भी होगा इसीलिए चौथी ‘बीमफॉर्मिंग तकनीक’ अमल में लाई जाएगी। इसके जरिए सिग्नल एक दूसरे से उलझने कि बजाए निर्धारित दिशाओं में प्रसारित होंगे।
- ‘फूल डुप्ले’ तकनीक इनकमिंग और आऊटगोइंग डाटा को एक साथ सम्भाल सकेगी।
कैसी होगी स्पीड:
यह बहुत ही हाईटैक तकनीकी संगम है। इसका असर सीधा बहुत तेज वायरलैस नैटवर्क के रूप में देखने को मिलेगा। फुल एच.डी.फिल्म कुछ ही सैकेंड के भीतर डाऊनलोड हो जाएगी लेकिन 5जी का इस्तेमाल स्मार्टफोन पर वीडियो देखने से कहीं ज्यादा व्यापक है। इसकी मदद से ड्राइवरलैस ट्रांसपोर्ट, स्मार्ट सिटिज, वर्चुअल रियल्टी और बहुत तेज रियल टाइम अपडेट मिलेगा।
5जी आपस में संवाद करने वाले सिग्नलों पर आधारित तकनिक है। इसके जरिए एक गाड़ी, दूसरी गाड़ी से भी संवाद करेगी और डाटा के जरिए तय करेगी कि दोनों वाहनों के बीच दूरी व रफ्तार कितनी होनी चाहिए।
4जी नेटवर्क 3डी डाटा के मामले में कमजोर महसूस होता है परंतु 5जी में 3डी का उपयोग बेहद आसान हो जाएगा।
चिंताएं:
हालांकि, 5जी नैटवर्क के साथ कई चिंताएं भी सामने आ रही हैं। यह नैटवर्क खासतौर पर शहरों को मिलीमीटर वेब्स का जाल बना देगा। कीटों और पंछियों पर इसके दुष्परिणामों की भी आशंका जताई जा रही है।
स्वास्थ्य से जुड़े कुछ शोधों में दावा किया जा रहा है कि 5जी इंसान की कोशिकाओं और डी.एन.ए. को भी नुक्सान पहुंचाएगा। हालांकि, इसका असली प्रभाव तो इस तकनीक के दुनिया भर में शुरू होने के कुछ सालों बाद ही पता चलेगा।