इस संग्रहालय का सबसे पहले जिक्र 1605 में रिकार्ड किए गए एक दस्तावेज में मिलता है। वुप्पर नदी के तट पर बना यह संग्रहालय चाकू निर्माण के पुराने वर्कशॉप्स का एक बेहतरीन ढंग से संरक्षित उदाहरण है। पश्चिम जर्मनी के इस शहर में उत्तम गुणवत्ता के चाकू तैयार किए जाने की वजह से ही ‘सिटी ऑफ़ नाइव्स‘ यानी ‘चाकुओं के शहर‘ के रूप में भी जाना जाता है। जर्मनी की सैर पर आने वाले विदेशी पर्यटन भी अपने साथ यादगार के तौर पर सोलंगिन के चाकू ले जाना पसंद करते है। पुराने वक्त में यहां चाकू तैयार करना एक लघु उधोग था। तब विभिन्न कारीगर छोटे स्तर पर यह काम करते थे। सोलंगिन में चाक़ू, ब्लेड, तलवार और कैंचियां मध्यकाल से तैयार हो रहे है। 17वी सदी में यहां करलरी उधोग के लिए सुनहरा दौर था। 1684 में यहां 100 से ज्यादा कटलरी निर्माता काम करते थे। आज शहर में 150 कम्पनियां कटलरी तैयार करती हैं जिनमें करीब 3000 कर्मचारी काम कर रहे हैं। शहर में स्तिथ एक अन्य संग्रहालय बाकहोसर कोटेन म्यूजियम की चेयरवुमन निकोल मोलीनारी के अनुसार संग्रहालय की ऐतिहासिक इमारत में दशकों तक चाकू निर्माण किया जाता था जो 1950 तक जारी रहा। 1930 के शोज़ की खींची तस्वीरें यहां प्रदर्शित हैं जिनसे पता चलता है कि उस वक्त किस तरह से कारीगर चाकू तैयार करते थे। यहां चाकू पॉलिशिंग, धारदार करने या फिर हैंडल लगाने के लिए भी लाए जाते थे। संग्रहालय में एक तरफ पड़े पक्षी रखने वाले पिंजरे के बारे में निकोल दिलचस्प तथ्य बताती है। पुराने दौर में ऐसे पिंजरे में छोटे पक्षी रखे जाते थे जिनसे पॉलिशिंग वर्कशाप में उड़ने वाली धूल के प्रदूषण के जानलेवा स्तर तक पहुंचने का संकेत प्राप्त किया जाता था। पिंजरे में पक्षी के मर जाने पर सब समझ जाते थे कि वर्कशॉप में ताजा हवा आने का वक्त हो गया है। उस वक्त यहां काम करना स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होता था।
चाकुओं का शहर सोलिंगन
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