आम के बौर की उपमा वसंतदूत से की गई है और आधुनिक कवियों ने ‘अमराइयों’ का मोहक वर्णन किया है, कलाकारों ने आम के व्रक्ष को अपने कैनवास पर उतारा है।
‘शतपथ ब्राह्मण’ में आम को ‘कल्पव्रक्ष’ कहा गया है। भारतीय लोकगीतों, रीति-रिवाजों, व्यवहार, हवन-यज्ञ, पूजा, कथा, तीज-त्यौहार तथा सभी मंगल कामनाओं में आम की लकड़ी, फल, फूल प्रयुकत होते हैं। वंदनद्वार, कलशपूजन, घटभरणा तथा घर द्वारों पर आम के पत्तों को ही शुभ मन जाता है। मरणोपरांत अस्थि चयनोपरांत चिता ठंडी करने के लिए आम के पत्तों द्वारा सूक्ष्म शरीर का तर्पण किया जाता है।
भारतीय संस्कृति में भी जो शुभ है और जो भी शुद्ध है वह आम का व्रक्ष ही है। यूं भी केले का फल या स्तम्भ, नारियल, आंवला, बहेड़ा, तुलसी, बिल्वपत्र, चंदन, नीम और पीपल हमारे संस्कारों में पूजनीय व्रक्ष है।
वर्षा ऋतु में जिस व्यक्ति ने आम नहीं खाया वह भी क्या जिंदगी जी रहा होगा? विशेषकर वर्षा के मौसम में देसी आम चूसना और ऊपर से कच्ची लस्सी अम्रत समान है। आम अत्यंत उपयोगी, दीर्घजीवी, सघन तथा विशाल व्रक्ष है। इसका फल सरस, मांसल, गूदेदार और स्वादिष्ट होता है। इसकी चटनी, अचार, मुरब्बा, अमचूर व आम पापड़ स्वादिष्ट व्यंजन है।
भारत में एक करोड़ टन आम हर साल पैदा होता है यानी विश्व का 12 प्रतिशत। अंतराष्ट्रीय-आम महोत्सव में इसकी विभिन्न प्रजातियों, इसके नामों का आनंद लिया जा सकता है। दशहरी, लंगड़ा, चौसा, अलफान्सो, मालदा, नीलम, केसरी, सिंदूरी, मल्लिका, बृजलाल अम्बी, जाफरीन, फजली, तोतापरी, सफेद , पानपत्ता, गार्डन किंग, पल्ली, रत्नगिरि, बम्बई ग्रीन, मोहन भाग इत्यादि आम की 1500 प्रजातियां हैं।
इनमें से 160 तो भारत में ही पाई जाती हैं। भारत में आम की पैदावार की कहानी लगभग 4000 साल पुरानी है। आम चौथी सदी में एशिया में पहुंचा और दसवीं शताब्दी में पूर्वी- अफ्रीका में आया। इसके बाद आम, ब्राजील, वैस्टइंडीज और मैक्सिको पहुंचा। चौदहवीं शताब्दी में मुस्लिम यात्री इब्नबतूता आम को सोमालिया लेकर गया। आम बर्मा, स्याम तथा मलाया में बहुत होता है। आम का वर्णन चीनी यात्री हवे हवेनत्सांग और फाहयान की पुस्तकों में खूब मिलता है।
भारत के लोगों के जीवन और अर्थव्यवस्था में आम का विशिष्ट स्थान है। आम लक्ष्मीपतियों के भोजन की शोभा और गरीब आदमी की उदरपूर्ति का उत्तम साधन है। वर्षा ऋतु में पहाड़ी क्षेत्र के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन आम ही है। आम के मौसम में मंडियां लगती हैं। चौक, चौराहों पर देसी आमों की खारियां (टोकरियां) हाथों हाथ बिका करती थी परंतु भौतिकवाद की इस आंधी में देसी आम के पेड़ों की धड़ाधड़ कटाई कर दी गई। उसके स्थान पर दशहरी आमों के बाग लगाए गए परंतु दशहरी आम तो एक-दो ही खाए जा सकते हैं। देसी आम जितने चाहे खाओ।
आम का पका हुआ फल वीर्यवर्धक, वातनाशक तथा श्वास की गति को संतुलित रखता है। आम के पत्ते बिच्छू के काटने से बचात व पत्तों का धुआं हिचकी दूर करता है। पेट के रोगों में आम का छिलका व बीज हितकर हैं। कच्चा आम भून कर, पका-बना कर नमक, जीरा, हींग, पुदीना मिला कर खाने से शरीर में तरावट आती है और लू से बचाव होती है।
आम की गुठली पीस कर खाने से खुनी बवासीर दूर होती है और गुठली को सिर पर रगड़ने से सिकरी का खात्मा होता है। यह आयरन का एक अच्छा स्रोत है जो गर्भवती और अनीमिक महिलाओं के लिए उपयोगी है। आम का सेवन मनुष्य की रकत कोशिकाओं को खुला रखता है। विटामिन सी और ई की बहुतायत होने के कारण ब्लड प्रैशर कंट्रोल में रहता है और बुढ़ापे से बचाव होता है।
महिलाओं को प्रसाद स्वरूप आम और केला ही दिया जाता है। इसमें स्त्री के गुप्त रोगों के ठीक होने का एक प्रतीकात्मक संदेश था। आम के सेवन से आखों की चमक बढ़ती है।
दिल के रोगियों के लिए आम लाभकारी है। आम में प्राप्त विटामिन ‘ए’ बाहरी वातावरण में पाए जाने वाले जीवाणुओं से हमारी रक्षा करता है। आम के छिलकों को फैंकने की बजाय उसके गूदे को त्वचा पर लगाने से त्वचा तरोताजा रहती है।
हाई ब्लड प्रैशर वालों के लिए आम एक प्राकृतिक उपचार है। आम में पोटाशियम की मात्रा अधिक होती है जो स्वाद के लिए ही नहीं अपितु सेहत के लिए भी फायदेमंद है। कैंसर और किडनी की बिमारियों में आम का सेवन उपयोगी हो सकता है। मैंने जैसा पढ़ा जैसा बुजुर्गों ने बताया, उन अनुभवों को पाठकों के सामने रख दिया है।