वल्लभभाई पटेल कैसे बने सरदार और लौहपुरुष: आजादी के बाद सरदार पटेल ने पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें भारत का लौह पुरुष तथा भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है।
Sardar Vallabhbhai Patel jayanti, Ekta Diwas: 31 अक्टूबर, 2023 को देश भर में लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 148वीं जयंती मनाई जाएगी। स्वतन्त्र भारत के महान दूरदर्शी राजनेता-प्रशासक होने के साथ साथ वे प्रतिष्ठित वकील, बैरिस्टर तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी थे। पटेल उन कुछेक महान नेताओं व स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिनके न सिर्फ आजादी से पहले के बल्कि आजादी के बाद के योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। आजादी मिलने के बाद सरदार पटेल ने पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें भारत का लौह पुरुष तथा भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। वल्लभभाई पटेल की जयंती को देश में राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day) के तौर पर मनाया जाता है। वह एक मजबूत, अडिग और दृढ़ संकल्पि व्यक्तित्व के धनी थे।
वल्लभभाई पटेल कैसे बने सरदार और लौहपुरुष: यहां जानें सरदार वल्लभभाई पटेल के बारे में 10 खास बातें
1. 16 साल में हो गया था विवाह
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजगु रात के नडियाद मेंएक किसान परिवार मेंहुआ था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। उनका विवाह 16 साल की उम्र मेंहो गया था। वह 33 वर्षके ही थी जब उनकी पत्नी का देहांत हो गया।
2. वकालत से कैसे आए सामाजिक जीवन में, गांधी जी से थे प्रभावित
सरदार पटेल कानून के अच्छे जानकार थे। लंदन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में था। तब खेड़ा में सूखा पड़ा था और ब्रिटिश सरकार ने किसानों के कर से राहत देने से मना कर दिया था। पटेल ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और वकालत छोड़कर सामाजिक जीवन में एंट्री की।
3. कैसे जुड़ा नाम के साथ सरदार
उन्होंने 1928 में हुए बारदोली सत्याग्रह में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्त्व भी किया। बारडोली सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की थी। गांधी जी उन्हेंबारदोली का सरदार कहकर पुकारा था।
4. आजादी के बाद रियासतों को देश में मिलाया
महान स्वतंत्रता सेनानी लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण मेंउनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ मेंविलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण किया। उनकी शानदार नेतृत्व व प्रशासनिक क्षमता को ही भारत के भौगोलिक राजनैतिक एकीकरण का श्रेय दिया जाता है।
5. किसने कहा लौह पुरुष
स्वतंत्रता और विभाजन के पश्चात्भारत के सामनेएक अन्य बड़ी समस्या रजवाड़ों सेसंबंधित थी। गांधी नेपटेल सेकहा था, “रियासतों की समस्या इतनी कठिन हैकि आप अकेलेही इसेहल कर सकतेहैं।”
साहसिक कार्यव दृढ़ व्यक्तित्व के चलते महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को लौह पुरुष की उपाधि दी थी। उन्हें भारत के बिस्मार्क के रूप में भी जाना जाता है।
6. स्टैचू ऑफ यूनिटी
31 अक्टूबर 2018 में गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति “स्टेच्यूऑफ़ यूनिटी” पटेल जी को समर्पित की गई है जो कि “देश की एकता मेंउनके योगदान” को इंगित करती है। सरदार वल्लभभाई पटेल की यह प्रतिमा 182 मीटर (597 फीट) ऊंची लौह प्रतिमा है। यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है। स्टेचू ऑफ लिबर्टी की ऊंचाई केवल 93 मीटर है।
7. अखिल भारतीय सेवाओं के जनक
आजाद भारत में सरदार पटेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय सिविल सेवाओं के महत्व को बखूबी समझा और भारतीय संघ के लिए उसकी निरंतरता को आवश्यक बताया। यह सरदार पटेल का ही विजन था कि भारतीय प्रशासनिक सेवाएं देश को एक रखने में अहम भूमिका निभाएगी। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवाओं को मजबूत बनाने पर काफी जोर दिया। उन्होंने सिविल सेवाओं को स्टील फ्रेम कहा था।
8. संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका
भारत की संविधान सभा में वरिष्ठ सदस्य होने के नाते सरदार पटेल संविधान को आकार देने वाले प्रमुख नेताओं में से एक थे। वे प्रांतीय संविधान समितियों के अध्यक्ष थे।
9. पटेल जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस
किसी भी देश का आधार उसकी एकता और अखंडता मेंनिहित होता हैऔर सरदार पटेल देश की एकता के सूत्रधार थे। इसी
वजह सेउनके जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2014 सेहुई।
10. सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था।
सन 1991 मेंसरदार पटेल को मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।