Kashmiri Pashmina Shawls अदभुत "पश्मीना" शॉल

Kashmiri Pashmina Shawls अदभुत “पश्मीना” शॉल

पशमीना शॉल बुनने की पारम्परिक कला वक़्त के साथ खोने लगी है। हालांकि, खूबसूरत कश्मीर घाटी की एक सदियों पुरानी कला को संरक्षित रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

सर्दियों के मौसम में अच्छी गुणवत्ता वाले गर्म कपड़े हर किसी की पसंद होते हैं, फिर चाहे इनके लिए कुछ अतिरिक्त खर्च ही क्यों न करना पड़े। पशमीना शॉल एक ऐसा ही गर्म कपड़ा है जो अपनी गर्माहट तथा शानदार कारीगरी के लिए दुनिया भर में मशहूर है।

कला के नमूने

पशमीना शॉल हस्तकला से तैयार होने वाले कश्मीर के सर्वोत्तम शॉल हैं जिनका इतिहास सदियों पुराना है। इन्हें मूल रूप से कश्मीर में तैयार होने पश्म या पशमीना रेशों से बुना जाता है। इनकी बुनाई की शुरुआत सुल्तान जयान-अल-अबिदिन ने की थी जिन्होंने तुर्किस्तान से नीग्झ बेग नामक एक अत्यधिक कुशल बुनकर को विशेष रूप से आमंत्रित किया था। हालांकि, पशमीना की शुरुआत का इतिहास प्राचीन सभ्यता तक जाता है और इसे महाभारत के वक़्त से भी जोड़ा जाता है। बाद में पशमीना शॉल सम्राटों, राजाओं व कुलीन वर्ग के लोगों की पसंद बन गए इसीलिए इन कीमती रेशों को ‘राजाओं के रेशों’ के नाम से भी प्रसिद्धि मिली। असली पशमीना रेशों का अस्तित्व 300 वर्ष पूरा हुआ और केवल अमीर व उच्च वर्ग के लोग ही इस कीमती कपड़े का आनंद ले सकते थे।

बुनाई की पारम्परिक विधि

Colored Pashmina Shawl
Colored Pashmina Shawl

पशमीना रेशों को पशमीना बकरियों के पेट पर उगने वाले बालों से तैयार किया जाता है। आमतौर पर ये बकरियां हिमालय के शून्य से कम तापमान वाले इलाकों में पाई जाती हैं जिनका अब पालन भी किया जाता है। इनके पेट पर एकदम अनूठी, अविश्वसनीयरूप से कोमल पश्म उगती है जो इंसानी बाल से 6 गुणा महीन होती है।

प्रकृति ने इस विशेष पश्म को 14 हजार फुट की ऊंचाई पर जमा देने वाली ठंड में भी गर्म रखने के मकसद से प्रदान किया है। ये बकरियां सर्दियों के दौरान उगने वाले बालों को प्रत्येक बसंत के मौसम में गिरा देती हैं। एक बकरी से केवल 85 से 225 ग्राम तक ही ऊन प्राप्त होती है।

यह ऊन बेहद कोमल होती है जो मशीनों पर बुनाई के दौरान टूटती रहती है। चूंकि इसके रेशे व्यास में महज 14 से 19 माइक्रोनस के होते हैं और इनकी लम्बाई भी बेहद होती है, इन्हें मशीनों पर बुना नहीं जा सकता है। इन रेशों को चरखों पर काता जाता है। एक पशमीना शॉल को बुनने में 4 दिन का वक़्त लगता लगता है।

इसके बाद कढ़ाई के लिए उसे नक्काशों के पास भेजा जाता है जो उन पर डिजाइन बना कर उसे कशीदाकारों को देते हैं। कढ़ाई पूरी होने के बाद इन शॉलों को झेलम नदी के पानी में धोया जाता है ताकि ये अविश्वसनीय रूप से कोमल हो जाएं। हल्की धूप में सुखा कर इन्हें कुछ दिन के लिए सहेज कर रखा जाता है ताकि इन पर की गई कढ़ाई अच्छे से बैठ जाए। फिर शॉल को ईस्त्री व पैक करके बाजार में भेज दिया जाता है।

डिजाइन्स

पशमीना शॉलों की मूलता बरकरार रखने के लिए बुनकर इन पर पारम्परिक डिजाइन ही बनाते हैं। चाहे डिजाइन्स में बुना जाए या इन पर बाद में कढ़ाई की जाए, एक पशमीना शॉल तैयार करने में 9 से 12 महीने लगते हैं। हालांकि, इन दिनों इनके रंगों में कुछ नवीनता लाई जा रही है। बेहद महंगे होने की वजह से आज भी ये शॉल स्टेटस सिम्बल हैं।

सरकार की पहल

पशमीना शॉल तैयार करना कई कशमीरी परिवारों का रोजगार है। सरकार ने इन शॉलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए कई मिलें लगाई हैं। इससे कई लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं परंतु मिल में बने शॉलों की कीमत बुनकरों के शॉलों से कम होती है। ऐसे में इस कला के संरक्षण के लिए सरकार प्रदर्शनियां आयोजित करती है। आज

पशमीना बुनकरों के लिए परिस्थितियां ज्यादा अच्छी नहीं हैं। इनके कीमती होने की वजह से अधिक लोग इन्हें खरीद नहीं सकते हैं। पहले परिवार की कई पीढियां इस काम में लगी होती थीं परंतु अब कई परिवार अपने बच्चों को अन्य रोजगारों में लगा रहे हैं क्योंकि पशमीना शॉल निर्माण में बहुत मेहनत व समय लगता है जिसकी तुलना में मुनाफा कम है।

पशमीना शॉल से जुड़े कुछ भ्रम

  • रिंगटैस्ट: माना जाता है कि असली पशमीना शॉल इतना कोमल होता है कि उसे अंगूठी में से गुजारा जा सकता है। हालांकि, तथ्य यह है कोई भी अच्छा कशमीर शॉल या स्कार्फ भी एक अंगूठी में से गुजर सकता है।
  • उत्तर पशमीना शॉल बिल्ली के शावक जितना रोएंदार होता है: वास्तव में इस्तेमाल के साथ पशमीना और भी कोमल होता जाता है।

पशमीना शॉल को यूं सम्भालें

चूंकि पशमीना शॉल बेहद नाजुक होते हैं, इन्हें हल्के से गर्म पानी में शैम्पू डाल कर धोना चाहिए। इन्हें कभी भी धूप में नहीं, केवल हवा में सुखाना चाहिए।

ईस्त्री भी केवल दो तौलियों के मध्य रख कर की जाए। नमी तथा गर्मी से रक्षा के लिए इन्हें अखबार के कागज में लपेट कर पॉलिथीन बैग में रखना चाहिए।

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