‘हपफील्ड फोनोलिस्ट वायलिना‘ नामक उनके अनूठे स्वचलित वायलिन में तीन वायलिन एक के ऊपर एक रखे होते हैं। इसमें से एक वक्त में हर एक की केवल एक तार सक्रिय रहती है जिन पर एक घुमावदार डिस्क नुमा हिस्से के घूमने से मधुर संगीत स्वतः पैदा होता है। एक इलेक्ट्रिक मोटर 100 लैड पाइप से हवा फैंक कर इसके विभिन्न हिस्सों का संचालन करती है। इस सारे वाघ यंत्र को छिद्रित कार्ड का गोला नियंत्रित करता है। वायलिनो पर घुमावदार डिस्क के साथ दबाव बनाया जा सकता है। आम वायलिन की तारों पर वादक की उंगलिया जो कार्य करती हैं वही इसमें कुछ बटन करते हैं। ये बटन तारों को जरूरत के अनुरूप घुमावदार हिस्से के साथ टकराते हैं। गुजरे ज़माने के भुला दिए स्वचलित वाघ यंत्रो पर रोशनी डालने के लिए लिपजिग एक उम्दा स्थान है। किसी वक्त यह शहर लोकप्रिय संगीत तकनीकों का प्रमुख वैश्विक केंद्र था। तब यहां दुनिया के सर्वाधिक स्वचलित वाघ यंत्र निर्मित होते थे।
इन दिनों लिपजिग शहर में सहस्त्राब्दी समारोह चल रहे हैं। गौरतलब है कि इस शहर का प्रथम दस्तावेजी प्रमाण सन 1015 का हैं। इन समारोहों के तहत ही यह अनूठी प्रदर्शनी शहर में आयोजित की गई है। संघ्रालय के क्यूरेटर बिरगीट ने निजी संग्रकर्ताओ तथा अन्य संग्रहालयों से इन्हें यहां मंगवाया है। अपने बेहतरीन दौर में लिपजिग में 100 फैक्ट्रियों तथा वर्कशॉप्स में म्यूजिक बॉक्स निर्मित होते थे। इन्हें दुनिया भर के बार, होटल तथे सिनेमा में इस्तेमाल किया जाता था। तब हपफील्ड कम्पनी की विभिन्न फैक्ट्रियों में 2500 कर्मचारी थे। उस वक्त संगीत को लेकर लोगों में सच्ची लगन थी। तब ऐसे उपकरणों की खासी मांग थी और नई धुनों वाली लैड डिस्क को कुछ पैसो में ख़रीदा जा सकता था। इसमें कमी यही थी कि धुन को ड्रम के घुमाव के अनुसार तय अवधि के लिए सम्पादित करना पड़ता था। वहीं 19वीं सदी के अंत तक न्यूमैटिक तकनीकों के आने से डांस हॉल्स के लिए स्वचलित प्यानो तैयार करना सम्भव हो गया। रेडियो तथा ग्रामोफोन रिकॉर्ड का चलन शुरू होने के बाद लिपजिग का संगीत उद्योग डूबने लगा। 1935 के बाद शहर की अधिकतर संगीत कम्पनिया अपना बोरिया-बिस्तरा समेटने लगी थीं। 4 वर्ष बाद द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया जिसकी बमबारी ने शहर के बड़े हिस्से को तबाह कर दिया।
उस दौर में निर्मित 3 हजार ‘हपफील्ड फोनोलिस्ट वायलिना’ में से आज केवल 60 ही बचे है।