‘250 लड़कियों का बलात्कार’: आ गया ‘अजमेर 92’ का ट्रेलर, पर्दफाश करने वाले पत्रकार की भी कहानी; चिश्तियों की दरिंदगी 21 जुलाई से पर्दे पर
पुलिस अधिकारी कहता है कि लड़की गर्भवती थी, इसका मतलब है कि वो अपनी मर्जी से गई और उसके साथ जोर-जबरदस्ती नहीं हुई। हालाँकि, बीच के दृश्यों में दिखाया जाता है कि कैसे उस लड़की पर अत्याचार हुआ और क्रूरता से उसका बलात्कार किया गया।
अजमेर में नब्बे के दशक में बड़े पैमाने पर हुए हिन्दू लड़कियों के बलात्कार की कहानी दिखाने वाली फिल्म ‘Ajmer 92’ का ट्रेलर आ गया है। ‘रिलायंस इंटरटेनमेंट’ के बैनर तले इस फिल्म का निर्माण हुआ है। ट्रेलर की शुरुआत में ही एक दृश्य है, जिसमें वक बुजुर्ग अपनी होने वाली बहू की तस्वीर 2 युवकों को देता है और पता लगाने के लिए कहता है कि कहीं उसका बलात्कार तो नहीं हुआ है। बता दें कि उस समय अजमेर में ऐसे हालात थे कि वहाँ की लड़कियों के रिश्ते भी नहीं हो पाते थे। फिल्म 21 जुलाई को रिलीज होगी।
इसके बाद ट्रेलर में आगे एक व्यक्ति कहता है कि लोग सिर्फ उतना जानते हैं जितना उन्होंने पढ़ा-सुना है, लेकिन असल में अजमेर में 1992 में क्या हुआ था, ये हकीकत मैं आपको बताता हूँ। अख़बार में एक खबर दिखाई गई है, जिसमें लिखा है – “लड़कियों ने किया शहर को गंदा।” इसके बाद एक व्यक्ति कहता है कि ये पत्रकार लोगों को जरा भी अक्ल नहीं है कि कैसी फोटो छापनी चाहिए और कैसी नहीं। इसके बाद एक लड़की पेड़ पर फाँसी के फंदे से झूलती हुई दिखती है।
पुलिस अधिकारी कहता है कि लड़की गर्भवती थी, इसका मतलब है कि वो अपनी मर्जी से गई और उसके साथ जोर-जबरदस्ती नहीं हुई। हालाँकि, बीच के दृश्यों में दिखाया जाता है कि कैसे उस लड़की पर अत्याचार हुआ और क्रूरता से उसका बलात्कार किया गया। फिल्म का निर्माण उमेश कुमार तिवारी ने किया है। इसके बाद मुस्लिमों को प्रदर्शन करते हुए दिखाया गया है, जो कहते हैं कि उनकी कौम को बदनाम किया जा रहा है। एक पत्रकार है, जो इस गिरोह के पीछे पड़ा है।
‘अजमेर 92’ के ट्रेलर में फिर उस नेता को धमकाते हुए दिखाया गया है जो कहता है, “उस पत्रकार को समझाइए। शहर की शांति न बिगाड़े वो।” इसके बाद पुलिस सबूत के लिए मदद का आश्वासन देती है। एक और लड़की को छत से गिर कर मरते हुए दिखाया गया है। फिर बताया जाता है कि इस केस को वापस लाना आसान नहीं है, क्योंकि इतनी पीड़ित लड़कियाँ हैं कि उनका जीना हराम हो जाएगा। इस पर पत्रकार कहता है, “जीना हराम तो अभी भी है न उनका। जब उनका मन करता है अपने फार्महाउस बुलाते हैं, उनका रेप करते हैं।”
ट्रेलर में और भी पीड़ित लड़कियों को दिखाया गया है जो इस कश्मकश में हैं कि वो अपने परिवार वालों को बताएँ या नहीं। एक को तो उसकी माँ ही हिदायत देती है कि वो आगे से इन बातों को जुबान पर न लाए। वहीं पुलिस अधिकारी की बेटी भी इस जुल्म का शिकार हो जाती है। फिर बताया जाता है कि ये सब 1987 से ही चल रहा है। आँकड़ा दिया गया है कि 250 लड़कियों का बलात्कार हुआ, उनकी नंगी तस्वीरों को शहर भर में बाँट दिया जाता था और जिनके हाथ वो तस्वीरें लगती थीं वो ब्लैकमेल कर उनका रेप करते थे।
ये तो थी फिल्म के ट्रेलर की बात। अब लड़कियों की ब्लैकमेलिंग और बलात्कार को अंजाम देने के इस मामले के मुख्य आरोपितों का नाम भी जान लीजिए। इनके नाम हैं- फारुक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती थे। तीनों युवक कॉन्ग्रेस में भी महत्वपूर्ण पदों पर थे। अजमेर दरगाह के खादिम परिवारों से आते थे। उस समय मीडिया नहीं था तो लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि कैसे इस खबर पर लीपापोती के प्रयास हुए ताकि एक दरगाह पर आने वाले हिंदुओं की संख्या कम न हो।