Ajmer 92: 2023 Hindi Film On True Events

Ajmer 92: 2023 Indian Hindi Crime Drama Film On True Events

कॉन्ग्रेस से जुड़े चिश्तियों की दरिंदगी पर छापी सीरीज, अस्पताल में घुसकर माँ के सामने गोलियों से भूना: वो पत्रकार जिसके बिना अधूरी है 250 लड़कियों से रेप की स्टोरी ‘अजमेर 92’

पुलिस प्रशासन को इस हत्याकांड से एक वर्ष पहले ही इस सेक्स स्कैंडल के बारे में पता चल गया था, लेकिन हिंसा और दंगों के भय से नेताओं ने कार्रवाई न करने को कहा था। कानूनी कार्रवाई भी रोक दी गई थी। आखिर आरोपित दरगाह के खादिम के परिवार से जो थे!

फिल्म ‘अजमेर 92’ चर्चा में है। इसका ट्रेलर भी आया है जिसमें बताया गया है कि कैसे राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिमों के परिवार ने 250 हिन्दू लड़कियों का बलात्कार किया और उनकी नंगी तस्वीरें शहर भर में बाँट दी। तब स्थिति ये थी कि जब अजमेर की लड़कियों से कोई रिश्ता नहीं करना चाहता था। सब ये सोचते थे कि कहीं इसका भी बलात्कार हुआ होगा। इसे अंजाम देने वाले चिश्ती परिवार के लोग कॉन्ग्रेस के नेता थे, ऐसे में कोई कड़ी कार्रवाई भी नहीं हुई।

अप्रैल 1992 में संतोष गुप्ता नाम के एक स्थानीय पत्रकार ने इस मामले का खुलासा किया, तब जाकर सरकार जगी। हालाँकि, इस मामले में न्यायपालिका की सुस्ती देखिए कि अभी तक सुनवाई चल रही है। जिन लड़कियों का बलात्कार हुआ था, उनमें से कई दादी-नानी भी बन गई है। ऐसे में कौन पीड़ित महिला केस लड़ना चाहेगी? एक तो सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली चिश्तियों के कारण पहले ही पीड़िताएँ इस मामले में सामने नहीं आती थीं, या पलट जाती थीं – ऊपर से न्यायपालिका की सुस्ती।

11 से 20 साल तक की उम्र की स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियों को कैसे पिछले कुछ वर्षों से ब्लैकमेलिंग और यौन शोषण का शिकार बनाया जा रहा था, इसका खुलासा संतोष गुप्ता ने अपने अख़बार में किया था। एक लड़की का इस्तेमाल कर के उसकी अन्य दोस्तों को फँसाया जाता था और फिर ये क्रम चलता ही चला जाता था। सोचिए, बलात्कारियों में कानून का कोई भय नहीं था। बलात्कारी उनकी जो नंगी तस्वीरें क्लिक करते थे, उससे ब्लैकमेल कर कई अन्य भी उन लड़कियों का बलात्कार करते थे।

अजमेर रेप स्कैंडल: दरगाह के चिश्ती थे शामिल, कॉन्ग्रेस कनेक्शन

ये अपराध तब सामने आया, जब जिस फोटो लैब में ये हैवान उन लड़कियों की तस्वीरें निकलवाते थे वहाँ से ये फोटोज लीक हो गईं। ‘नवज्योति न्यूज़’ अख़बार में संतोष गुप्ता ने पीड़िताओं की तस्वीरों को ब्लर कर के दुनिया को ‘अजमेर सेक्स स्कैंडल’ के बारे में बताया। राजस्थान के रिटायर्ड DGP ओमेंद्र भारद्वाज ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए 2018 में बताया था कि कैसे आरोपितों के रसूख के कारण लड़कियाँ सामने आने या फिर शिकायत करने या गवाही देने के लिए तैयार ही नहीं थीं।

पीड़िताओं को इसके लिए मनाना पुलिस के लिए एक कठिन कार्य था। जिन 18 लोगों को वर्षों तक चली सुनवाइयों के बाद सज़ा मिली, उनमें दरगाह की देखरेख करने वाले खादिमों के परिवार के वो लोग भी थे जो खुद को ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का वंशज बताते हैं। बता दें कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को 12वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर में पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ माहौल बनाने के लिए भेजा था। उसने मोहम्मद गौरी की जीत को इस्लाम की जीत करार दिया था।

पुलिस ने इस मामले में पहले 8, फिर 10 अन्य के विरुद्ध FIR दर्ज की थी। 1992 में ये मामला सामने आने के 6 वर्षों बाद 1998 में अजमेर के सेशन कोर्ट ने 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। 2001 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने इनमें से 4 को दोषमुक्त कर दिया और बाकियों पर से भी कई चार्ज हटा दिए। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इनकी सज़ा घटा कर 3 वर्ष कर दी। इस मामले में एक फरार आरोपित सलीम चिश्ती तो 2012 में गिरफ्तार हुआ, 20 साल बाद।

2018 में एक अन्य हैवान सलीम गनी चिश्ती ने पुलिस के समक्ष आत्म-समर्पण किया। इस मामले का एक अन्य आरोपित तो अब तक फरार है और CBI ने उसके विरुद्ध रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी कर रखा है। इन सभी दोषियों में फारूक चिश्ती और नफीस चिश्ती मुख्य था, जिसने अजमेर में उस समय ‘स्थानीय सेलेब्रिटी’ जैसी छवि बना रखी थी। इनके पास धन-संपत्ति थी, हथियार थे, राजनीतिक रसूख था और दरगाह के कारण मजहबी प्रभाव था।

राजनीतिक और मजहबी छत्रछाया के कारण ही ये इस तरह की वारदातों को अंजाम देने में सफल होते थे। सोचिए, जिस फारूक चिश्ती ने सोफिया सीनियर सेकंडरी स्कूल की एक लड़की को शिकार बना कर इस काण्ड की शुरुआत की थी, वो बाद में अदालतों में खुद को मानसिक रूप से अस्वस्थ साबित कराने में सफल हो गया। इस मामले में फरार अल्मास महाराज अब तक अमेरिका में है, ऐसा माना जाता है। कई पीड़ितों ने अपने बयान बदल लिए थे।

इसके 2 मुख्य कारण थे – हर एक पीड़िता को डर था कि अगर गलती से भी उसकी पहचान सार्वजनिक हो जाती है तो इससे उसके भविष्य पर ग्रहण लग जाएगा और शादी-विवाह भी नहीं होगा। घर से निकलना दूभर हो जाएगा। दूसरा – हैवानों का राजनीतिक-मजहबी रसूख ऐसा था कि पीड़िताओं का परिवार भी डरता था। वैसे भी सामान्यतः इस देश का शांतिप्रिय नागरिक भले अन्याय सह ले लेकिन इन लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता क्योंकि ये वर्षों चलते हैं और न्याय की गारंटी भी नहीं होती।

हमने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इसका उदाहरण देखा जब जिस व्यक्ति के अपहरण का मामला अभी सुनवाइयों में अटका था कि उसकी हत्या हो जाती है। उमेश पाल का अपहरण और हत्या कराने वाला सपा का पूर्व सांसद अतीक अहमद ही था। ऐसे ही मामला खींचता ही चला जाता है। जिस संस्थान में पीड़िता पढ़ती थी, उसे भी शक के निगाह से देखा जाता था। लड़कियों की आत्महत्या की खबरें आती थीं।

पत्रकार संतोष गुप्ता आज भी मानते हैं कि इस मामले में पुलिस-प्रशासन ने ‘कानून व्यवस्था बनाए रखने’ पर ज्यादा ध्यान दिया और आरोपितों पर कार्रवाई को कम। सोचिए, आज भी ऐसा होता है जब पुलिस मुस्लिम आरोपितों के नाम नहीं खोलती ताकि कोई वारदात न हो जाए। पत्थरबाजी, हिंसा और दंगों के भय से सांप्रदायिक मामलों को भी सामान्य बताया जाता है। ये पुलिस की मजबूरी भी है और एक खास कौम की मजबूती भी। पुलिस उसके सामने असहाय नजर आती है और ‘शांति समिति’ की बैठकों जैसे ड्रामे होते हैं। दिल्ली दंगा में हमने इसका चेहरा देखा था जब वही व्यक्ति दंगाई निकला जिसे लेकर पुलिस शांति की अपील करती फिर रही थी।

पत्रकार मदन सिंह को जानते हैं आप?

इस मामले में एक और पत्रकार का नाम आता है – मदन सिंह। उनके बारे में जानने से पहले हमें चलना होगा 7 जनवरी, 2023 को। ये वो दिन था जब राजस्थान का पुष्कर गोलीबारी से गूँज उठा था। एक रिजॉर्ट के बाहर ये गोलीबारी हुई। असल में ये हत्याकांड बेटों ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए अंजाम दिया था, 3 दशक बाद। मदन सिंह ही वो पत्रकार थे, जिनकी अजमेर स्थित JLN अस्पताल में हत्या कर दी गई थी। ये दृश्य भी आपको ‘Ajmer 92’ में दिखेगा।

इस हत्याकांड का आरोप लगा सवाई सिंह पर, जो बाद में बरी हो गया। सूर्यप्रताप सिंह ने उसे 30 साल 4 महीने बाद मार गिराया और कहा, “हमने अपने बाप की मौत का बदला ले लिया।” मदन सिंह ‘लहरों की बरखा’ नामक एक अख़बार के संपादक थे। उन्होंने भी पीड़ित लड़कियों से मिल कर उनके साथ हुई क्रूरता के दस्तानों को अपने अख़बार में जगह दी थी। उन्होंने अपने अख़बार में सीरीज चला कर न सिर्फ पुलिस-प्रशासन बल्कि शहर के कई सफेदपोशों को भी बेनकाब किया।

आज भी उनकी पत्नी आशा कँवर कहती हैं कि उनके पति को बेबस लड़कियों की रिपोर्ट छपने की सज़ा मिली थी। सोचिए, उनकी छानबीन कितनी तगड़ी थी कि 4 सितंबर, 1992 तक वो इस सीरीज की 76 किस्तें प्रकाशित कर चुके थे। उन्होंने इसकी अगली कड़ी कलर प्रिंट में छपने और कई सफेदपोशों को बेनकाब करने का ऐलान किया था। रात के 10 बज रहे थे। वो अपने स्कूटर में पेट्रोल भराने के लिए निकले। तभी श्रीनगर चौराहे पर एक एम्बेस्डर कार आकर रुकी।

कार में से ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू हो गई और इसका निशाना थे मदन सिंह। जान बचाने के लिए उन्होंने पास के एक नाले में छलाँग लगा दी। सोचिए, उस दौर की कानून व्यवस्था कैसी थी कि जिस JLN अस्पताल में उन्हें इलाज के लिए भर्ती कराया गया था वहीं रात के अँधेरे में कंबल ओढ़ कर आए अपराधियों ने उन पर गोलियाँ बरसाई और फिर भाग निकले। 5 गोलियाँ उन्हें लगीं। 3 दिन आबाद उन्होंने दम तोड़ दिया। ये वारदात तब हुई, जब उन्हें पुलिस सुरक्षा के साथ भर्ती कराया गया था।

उनकी माँ घीसी कँवर के सामने ये वारदात हुई, वो इस मामले की प्रत्यक्षदर्शी थीं। इस मामले में कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व विधायक डॉ राजकुमार जयपाल, पूर्व पार्षद सवाई सिंह और नरेंद्र सिंह सिंह समेत अन्य को आरोपित बनाया गया। उस समय मदन सिंह के बेटे धर्म प्रताप जहाँ 8 साल के थे वहीं सूर्य प्रताप की उम्र 7 साल थी। इस मामले में भी पुलिस ने लापरवाही की। गवाहों ने भी बयान बदले। इसके एक आरोपित को 2010 में शिव प्रताप ने 18 साल की उम्र में ही ठिकाने लगा दिया था।

सुधीर शिवहरे नामक आरोपित की पिटाई कर के उन्होंने उसके हाथ-पाँव तोड़ डाले थे और कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई थी। इसके एक दशक बाद 2020 में भी उन्होंने जयपाल और सवाई पर फायरिंग की थी लेकिन दोनों बच निकले थे। दोनों भाई इस मामले में गिरफ्तार हुए थे लेकिन उन्हें फिर जमानत मिल गई थी। सोचिए, मदन सिंह पर दो-दो बार गोलीबारी हुई लेकिन हाईकोर्ट ने भी आरोपितों को बरी कर दिया, माँ के बयान को विरोधाभासी बता दिया।

सवाई सिंह बेटे की शादी की कार्ड बाँट रहा था, तभी मारा गया। इस मामले में सूर्य प्रताप की पत्नी ने अपने पति पर फख्र जताते हुए कहा था कि अगर पुलिस ने उनके ससुर की हत्या के मामले में सही से कार्रवाई की होती और न्याय दिलाया होता, तब शायद ये घटना नहीं होती। इस पर आम लोगों, पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका – तीनों को मंथन करना चाहिए। सवाई सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज थे, जिनमें से 5 जानलेवा हमलों के थे। पुलिस-कोर्ट कुछ नहीं कर पाई।

अजमेर सेक्स स्कैंडल और मदन सिंह हत्याकांड: दोनों मामलों में पुलिस की लीपापोती

अब बात करते हैं आरोपितों के राजनीतिक रसूख की। राजकुमार जयपाल विधायक था, ऐसे में 1992 में उसकी गिरफ़्तारी के वक्त सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी और उसकी जीप को घेर लिया था, जिससे पुलिस को उसे गिरफ्तार करने में खासी दिक्कत और देरी हुई थी। हत्या के समय मदन सिंह की उम्र मात्र 32 साल थी। उन्होंने अस्पताल में इलाज के दौरान भी अपने ऊपर हुए पहले हमले में जयपाल और सवाई का नाम लिया था, लेकिन उनके बयान को पुलिस ने नज़रंदाज़ किया।

पुलिस उस समय तक कहती रही कि मदन सिंह फँसा रहे हैं राजकुमार जयपाल को। उधर शॉटगन और पिस्टल लेकर हत्यारे आए और उन्हें अस्पताल में ही गोली मार कर चले गए। मदन सिंह का दोष इतना ही था कि उन्होंने 9 साल की एक लड़की का दर्द साझा किया था, जिसके साथ एक बड़े कारोबारी के घर के लड़के ने प्रेम संबंध चलाया और बाद में दोस्तों के साथ मिल कर उसकी अश्लील तस्वीरें क्लिक कर ली। उस समय ‘इंडिया टुडे’ में बताया गया था कि 200 लड़कियों के साथ ऐसी वारदातें हो चुकी थीं।

इस रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि पुलिस प्रशासन को इस हत्याकांड से एक वर्ष पहले ही इस सेक्स स्कैंडल के बारे में पता चल गया था, लेकिन हिंसा और दंगों के भय से नेताओं ने कार्रवाई न करने को कहा था। कानूनी कार्रवाई भी रोक दी गई थी। आखिर आरोपित दरगाह के खादिम के परिवार से जो थे! तब ‘नवज्योति’ के संपादक दीनबंधु चौधरी ने कहा था कि इस संबंध में फैसला लेना काफी कठिन था कि उन फोटोग्राफ्स को प्रकाशित किया जाए या नहीं।

मदन सिंह के बेटों ने हत्या के 31 साल बाद लिया था बदला
मदन सिंह के बेटों ने हत्या के 31 साल बाद लिया था बदला

लेकिन, उनका कहना था कि इन्हें प्रकाशित किया गया क्योंकि पुलिस-प्रशासन को जगाने का इससे बेहतर कोई तरीका नहीं था। तब राज्य में भाजपा की सरकार थी। मामला सामने आते ही बंद और विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। तब भाजपा के स्टेट सेक्रेटरी रहे ओंकार सिंह लखोटिया ने माना था कि कार्रवाई बहुत देर से शुरू हुई। फारूक चिश्ती उस समय ‘अजमेर यूथ कॉन्ग्रेस’ का अध्यक्ष था। नफीस चिश्ती उपाध्यक्ष था तो अनवर चिश्ती जॉइंट सेक्रेटरी।

तब राजस्थान पुलिस ने मदन सिंह की हत्या को गैंगवॉर का नतीजा बता दिया था। बताया गया कि मदन सिंह के ऊपर पहले से ही कई मामले दर्ज थे। मदन सिंह 1983 से ही ‘लहरों की बरखा’ अख़बार चला रहे थे। उनके दो अन्य भाई सैम और रणवीर भी इसमें उनका साथ देते थे। तत्कालीन एसपी एमएन धवन ने इनलोगों को ‘अपराधी परिवार’ बता कर इतिश्री कर ली। उस समय अजमेर की तुलना तत्कालीन बिहार से होने लगी थी जहाँ आपराधिक घटनाएँ आम बात थीं।

Check Also

Kanguva: 2024 Tamil Fantasy Action Film Trailer, Review, Songs

Kanguva: 2024 Tamil Fantasy Action Film Trailer, Review, Songs

Movie Name: Kanguva Directed by: Siva Starring: Suriya, Bobby Deol, Disha Patani, Natarajan Subramaniam, Jagapathi …