Bengal 1947 : Movie Name
Directed by: Akashaditya Lama
Starring: Ankur Armam, Devoleena Bhattacharjee, Harish Bhimani
Genre: Drama, History
Running Time: 129 Minutes
Release Date: 29 March, 2024
Production Company: –
Rating:
Budget: Not Available
Bengal 1947 explores the partition of India in 1947, focusing specifically on the impact on Bengal.
Bengal 1947: Overview
‘इस पाक जमीन पर काफिर भी हमारे साथ रहेंगे?’: ‘अल्लाह-हू-अकबर’ और ‘नारा-ए-तकबीर’ चिल्ला कर हिन्दुओं का नरसंहार, ‘बंगाल 1947’ में दिखाया विभाजन का दंश
एक अन्य दृश्य में इस्लामी टोपी पहना विलेन कहता है कि ‘वो’ हमारे नहीं हैं, इसके बाद एक अन्य मुस्लिम बुजुर्ग कहता है कि जो हमारे नहीं हैं उन्हें अपना बनाना होगा।
भारत-पाकिस्तान विभाजन की जब भी बात होती है, 20 लाख लोगों की मौत का कड़वा इतिहास हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। अब इस इतिहास पर एक फिल्म आई है – ‘बंगाल 1947’ नाम की। इसमें TV का जाना-पहचाना चेहरा देवोलीना भट्टाचार्जी भी हैं, जिन्होंने ‘साथ निभाना साथिया’ में ‘गोपी बहू’ का किरदार अदा कर के शोहरत बटोरी थी। उनके साथ इस फिल्म में अंकुर अरमान हैं। वहीं अतुल गंगवार इस फिल्म में विलेन की भूमिका में हैं।
फिल्म के एक दृश्य में वो कहते दिख रहे हैं कि हिन्दू होगा न मुसलमान, सब पाकिस्तानी होंगे। इसके बाद वो कहते हैं कि क्या पाकिस्तान की पाक जमीन पर काफिर भी हमारे साथ रहेंगे? फिल्म में ‘अल्लाह-हू-अकबर’ नारे के साथ हिंसा करते लोगों को भी दिखाया गया है। एक अन्य दृश्य में इस्लामी टोपी पहना विलेन कहता है कि ‘वो’ हमारे नहीं हैं, इसके बाद एक अन्य मुस्लिम बुजुर्ग कहता है कि जो हमारे नहीं हैं उन्हें अपना बनाना होगा। फिल्म के कुछ दृश्यों में दिखाया गया है कि कैसे ‘नारा-ए-तकबीर’ चिल्लाते हुए हिन्दुओं का नरसंहार हुआ।
‘हिंदुस्तान’ अख़बार के मैनेजिंग एडिटर प्रताप सोमवंशी ने बताया कि वो इस फिल्म को स्क्रीनिंग में ये सोच कर देखने पहुँचे थे कि बीच में निकल लेंगे, लेकिन फिल्म की ताकत देखिए कि उसने अंत तक बाँधे रखा। उदयपुर में ‘मेवाड़ टॉक फेस्ट’ में भी इसकी स्क्रीनिंग हुई। पश्चिम बंगाल की संस्कृति और वेशभूषा को भी फिल्म में दिखाया गया है, विभाजन के समय की एक प्रेम कहानी पर ये आधारित है। फिल्म के एक दृश्य में इस पर भी प्रकाश डाला गया है कि वेदों को लिखने में महिलाओं का भी योगदान है, एक नहीं बल्कि कई ऋषियों ने इसमें योगदान दिया।
फिर ये भी बताया गया है कि अगर प्राचीन काल में छुआछूत या जाति भेद होता तो प्रभु श्रीराम शबरी के जूठे बेर नहीं खाते। आकाशादित्य लामा ने इस फिल्म का लेखन-निर्देशन किया है। पहले इस फिल्म को ‘शबरी का मोहन’ नाम से बनाया जा रहा था, लेकिन फिर इसका नाम बदल कर ‘बंगाल 1947’ कर दिया गया। चित्रकूट, कांगेर घाटी, जगदलपुर व परलकोट में इसकी शूटिंग हुई है। बस्तर के ऐसे क्षेत्र जहाँ बंगाली समाज रहता है, इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ महल, कवर्धा, छुईखड़ान और गंडई में भी इसकी शूटिंग हुई है।
सतीश पांडे ने ‘बंगाल 1947’ का निर्माण किया है। उनके साथ-साथ ऋषभ पांडे भी इस फिल्म के प्रोड्यूसर हैं। सतीश पांडे ने बताया कि शबरी और मोहन की प्रेम कहानी युवाओं को खासा लुभा रही है और फिल्म को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। सतीश-ऋषभ की ये डेब्यू फिल्म ही है। ऋषभ पांडे इससे पहले डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाया करते थे। सतीश पांडे ने कहा कि भारतीय संस्कृति और जड़ों को समझाने के लिए ये फिल्म बनाई गई है। उन्होंने कहा कि आज का युवा विदेशी संस्कृति से कुछ ज्यादा ही प्रभावित है, उन्हें अपनी संस्कृति को लेकर जागरुक करना पड़ेगा।
Bengal 1947: Movie Trailer
Movie Review:
अनिल शर्मा के साथ ब्लॉक बस्टर मूवी गदर के असिस्टेंट डायरेक्टर रहे आकाशादित्य लामा ने जब अपनी मूवी बनाई तो वो कहानी को पंजाब के बजाय पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगाल ले गए। हालांकि विभाजन की त्रासदी और प्रेमिका के सरहद पार चले जाने के अलावा इस मूवी में और गदर से कोई और बड़ी समानता नहीं है। ना प्रेमी प्रेमिका अलग अलग धर्मों के हैं, ना हीरो सरहद पार जाता है, ना ही प्रेमिका का बाप अमरीश पुरी जैसा कद्दावर विलेन या नेता है। ना ही फिल्म में कोई बड़ा सितारा या फार्मूलों की भरमार है, बावजूद इसके ये मूवी देखने वालों पर असर छोड़ती है।
बंगाल 1947 आपको गदर का रियलिटी वर्जन लगता है, विभाजन पर तमाम अतिश्योक्ति पूर्ण फिल्में देखने के बाद युवा अगर उस वक्त के समाज की सच्चाई देखना चाहते हैं तो ये मूवी आईने का काम करती है। कम बजट होने के बावजूद टेक्निकली मूवी किसी भी मोर्चे पर कमजोर नहीं लगती। डायलॉग्स से लेकर म्यूजिक तक, एडिटिंग से लेकर बैकग्राउंड स्कोर तक की मेहनत आपको दिखती है और बिना एंटरटेनमेंट फार्मूलों के इस्तेमाल के भी मूवी आपको अंत तक बांधे रखती है।
‘बंगाल 1947’ कहानी
कहानी शुरू होती है आजादी मिलने से ठीक पहले और भारत विभाजन के लिए बने रेडक्लिफ आयोग की रिपोर्ट के इंतजार बैठे, बंगाल के दो तालुकों की, जहां के बहुत लोग पाकिस्तान जाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो दूसरी ओर वो लोग भी हैं, जिनको इस बात का ही सबसे ज्यादा डर है। दोनों के जमींदार परिवारों के बीच एक रिश्ता होना है, लंदन से पढ़कर आया मोहन (अंकुर अरमान) अपनी होने वाली पत्नी से मिलने नाव से जाता है, लेकिन उतरता है अछूत डोम परिवारों की बस्ती में। जहां इंतजार था लंदन से ही आए उन्हीं की बिरादरी के युवक चंदन का, जो उनके बच्चों को पढ़ाने आने वाला था।
मोहन पढ़ाई को लेकर उनकी आकांक्षा को देख खुद ही चंदन बन जाता है और उनके बच्चों के साथ साथ शबरी की भी पढ़ाने लग जाता है। शबरी के मन में उठा प्रेम मोहन को भी इश्क करने पर मजबूर कर देता है, उधर उसकी होने वाली पत्नी को भी उसका इंतजार था, लेकिन बिना टेलीफोन वाले उस दौर में लोगों को इंतजार की भी आदत थी। प्रेम कहानी के साथ साथ मूवी में एक और कहानी आगे बढ़ रही है, गांव का एक दमदार मुस्लिम 40 प्रतिशत मुस्लिमों के दम पर बाकी को दबाना चाहता है, तो 25 प्रतिशत दलित भी जिन्ना के पिछलग्गू बने जोगेंद्र नाथ मंडल के कहने पर पाकिस्तान में मिलना चाहता है।
ऐसे में प्रेम कहानी और दलित मुस्लिम की इस राजनैतिक समस्या को एक साथ आकाशादित्य लामा ने उस दौर के एजेंडे को उजागर करते हुए फिल्म को किस खूबसूरती के साथ आगे बढ़ाया है, यही देखने लायक है। आधी मूवी के बाद टीवी एक्ट्रेस देवोलीना भट्टाचार्य एक तवायफ के किरदार में अवतरित होती हैं, उन पर फिल्माया गया गाना ए री सखी.. हम सौतन के घर जायिएं.. बहुत ही उम्दा बन पड़ा है। दूसरा गीत ‘मिलन कब होगा जाने’ भी अच्छा बन गया है। संगीतकार अभिषेक रे ने एक गाने को अपनी आवाज भी दी है।
दोनों जमींदार परिवारों के मुखिया के तौर पर अनिल रस्तोगी और सोहिला कपूर, शबरी के पिता के तौर पर आदित्य लखिया और एक अहम किरदार में पीपली लाइव वाले ओंकार मानिकपुरी किसी परिचय के मोहताज नहीं, और उनकी एक्टिंग पर सवाल करना भी ठीक नहीं। हालांकि ओंकार के हिस्से में इस मूवी में कई बेहतरीन दृश्य आए हैं, कमाल तो पत्रकार से प्रोड्यूसर और एक्टर बने अतुल गंगवार ने भी किया है, एक मुस्लिम दबंग के रोल में कई बार बिना बोले भी भंगिमाओं के जरिए वो बोलते नजर आए। लीड रोल में अंकुर एक खोज साबित हो सकते हैं, अगर उन्हें आगे भी अच्छे रोल मिले तो, लंबे लंबे डायलॉग को सहजता से बोला उन्होंने तो डोम की बेटी शबरी के रोल में सुरभि और जमींदार की बेटी के रोल में फलक राही ने भी निराश नहीं किया।