बरसों के बाद उसी सूने- आँगन में जाकर चुपचाप खड़े होना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन का कोना-कोना कोने से फिर उन्हीं सिसकियों का उठना फिर आकर बाँहों में खो जाना अकस्मात् मण्डप के गीतों की लहरी फिर गहरा सन्नाटा हो जाना दो गाढ़ी मेंहदीवाले हाथों का जुड़ना, कँपना, बेबस हो गिर जाना रिसती-सी यादों से पिरा-पिरा उठना मन …
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भारतीय समाज – भवानी प्रसाद मिश्र
कहते हैं इस साल हर साल से पानी बहुत ज्यादा गिरा पिछ्ले पचास वर्षों में किसी को इतनी ज्यादा बारिश की याद नहीं है। कहते हैं हमारे घर के सामने की नालियां इससे पहले इतनी कभी नहीं बहीं न तुम्हारे गांव की बावली का स्तर कभी इतना ऊंचा उठा न खाइयां कभी ऐसी भरीं, न खन्दक न नरबदा कभी इतनी …
Read More »केवल भारत में पाये जाते हैं अनूठे कर्दम हिरण
हिरणो की यूँ तो दुनिया भर में कई प्रजातियां मिल जाती हैं किन्तु ‘कर्दम हिरण‘ सिर्फ भारत में ही पाये जाते हैं। अलग – अलग क्षेत्रों में पाये जाने वाले कर्दम कर्दम हिरणों के सींगो की बनावट अलग-अलग तरह की होती है। सामान्यत: एक कर्दम हिरण के सींगो में 10 से 14 तक शाखाएं निकली होती हैँ किन्तु किसी-किसी कर्दम …
Read More »बातें – धर्मवीर भारती
सपनों में डूब–से स्वर में जब तुम कुछ भी कहती हो मन जैसे ताज़े फूलों के झरनों में घुल सा जाता है जैसे गंधर्वों की नगरी में गीतों से चंदन का जादू–दरवाज़ा खुल जाता है बातों पर बातें, ज्यों जूही के फूलों पर जूही के फूलों की परतें जम जाती हैं मंत्रों में बंध जाती हैं ज्यों दोनों उम्रें दिन …
Read More »अंतहीन यात्री – धर्मवीर भारती
विदा देती एक दुबली बाँह-सी यह मेड़ अंधेरे में छूटते चुपचाप बूढ़े पेड़ ख़त्म होने को ना आएगी कभी क्या एक उजड़ी माँग-सी यह धूल धूसर राह? एक दिन क्या मुझी को पी जाएगी यह सफ़र की प्यास, अबुझ, अथाह? क्या यही सब साथ मेरे जाएँगे ऊँघते कस्बे, पुराने पुल? पाँव में लिपटी हुई यह धनुष-सी दुहरी नदी बींध देगी …
Read More »अहिंसा – भारत भूषण अग्रवाल
खाना खा कर कमरे में बिस्तर पर लेटा सोच रहा था मैं मन ही मन : ‘हिटलर बेटा’ बड़ा मूर्ख है‚ जो लड़ता है तुच्छ क्षुद्र–मिट्टी के कारण क्षणभंगुर ही तो है रे! यह सब वैभव धन। अन्त लगेगा हाथ न कुछ दो दिन का मेला। लिखूं एक खत‚ हो जा गांधी जी का चेला वे तुझ को बतलाएंगे आत्मा …
Read More »अगर डोला कभी इस राह से गुजरे – धर्मवीर भारती
अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला, यहां अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, मिलो जब गांव भर से बात कहना, बात सुनना भूल कर मेरा न हरगिज नाम लेना। अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, हंसी मे टाल देना बात, आंसू थाम लेना। शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें रंभाएं नींद में खो जाए …
Read More »अभी न सीखो प्यार – धर्मवीर भारती
यह पान फूल सा मृदुल बदन बच्चों की जिद सा अल्हड़ मन तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार! कुंजों की छाया में झिलमिल झरते हैं चांदी के निर्झर निर्झर से उठते बुदबुद पर नाचा करतीं परियां हिलमिल उन परियों से भी कहीं अधिक हलका–फुलका लहराता तन! तुम अभी सुकोमल‚ बहुत सुकोमल‚ अभी न सीखो प्यार! तुम जा …
Read More »क्या भारत का सिस्टम आम जनता को धोखा देता है?
आप खुद देखिये…
Read More »भारत के राज्यों के नाम याद रखने का आसान तरीका
बच्चों को राज्यों के नाम याद रखने में परेशानी होती है। इसके समाधान के लिए मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है। राज्यों के लिए मैंने एक पंक्ति बनाई है। जिसके एक वर्ण से एक राज्य बनता है। शायद अध्यापक साथियों को ये प्रयास पसन्द आए – राज्यों के लिए पंक्ति: “मित्र अतरा मुझसे कहता है मैं =================== अपने छ: बागों …
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