आजा री निंदिया आजा - प्रतिभा सक्सेना

आजा री निंदिया आजा – प्रतिभा सक्सेना

Aaja Ri Nindiya Aajaआजा री निंदिया आजा, मुनिया/मुन्ना को सुला जा
मुन्ना है शैतान हमारा
रूठ बितता है दिन सारा
हाट-बाट औ’अली-गली में नींद करे चट फेरी
शाम को आवे लाल सुलावे उड़ जा बड़ी सवेरी।

आजा निंदिया आजा तेरी मुनिया जोहे बाट
सोने के हैं पाए जिसके रूपे की है खाट
मखमल का है लाल बिछौना तकिया झालरदार
सवा लाख हैं मोती जिसमें लटकें लाल हज़ार।

आजा री निंदिया आजा।
नींद कहे मैं आती हूँ सँग में सपने लाती हूँ
निंदिया आवे निंदिया जाय, निंदिया बैठी घी-गुड़ खाय
भोर पंख ले के उड़ जाय।

वर्षा के मौसम में जुड़ जाता
पानी बरसे झम-झम कर, बिजली चमके चम-चम कर
भोर का जागा मुन्ना, मेरी गोद में सोवे बन-बन कर
निरख-निरख छवि तन-मन वारूँ लोर सुनाऊं चुन-चुन कर।
आजा री निंदिया आजा…

∼ प्रतिभा सक्सेना

About Pratibha Saxena

जन्म: स्थान मध्य प्रदेश, भारत, शिक्षा: एम.ए, पी एच.डी., उत्तर कथा पुस्तकें: 1 सीमा के बंधन - कहानी संग्रह, 2. घर मेरा है - लघु-उपन्यास संग्रह .3. उत्तर कथा - खण्ड-काव्य. संपादन प्रारंभ से ही काव्यलेखन में रुचि, कवितायें, लघु-उपन्यास, लेख, वार्ता एवं रेडियो तथा रंगमंच के लिये नाटक रूपक, गीति-नाट्य आदि रचनाओं का साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन (विशाल भारत ,वीणा, ज्ञानोदय, कादंबिनी, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, अमेरिका से प्रकाशित, विश्व विवेक, हिन्दी जगत्‌ आदि में।) सम्प्रति : आचार्य नरेन्द्रदेव स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कानपुर में शिक्षण. सन्‌ 1998 में रिटायर होकर, अधिकतर यू.एस.ए. में निवास. pratibha_saksena@yahoo.com

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