देश प्रेम और देश के लिए कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हर नागरिक में होता है। हिंदी सिनेमा ने भी इस मोहब्बत और जज़्बे को बख़ूबी अभिव्यक्त किया है। आज भी देशभक्ति के कई ऐसे गाने हैं जो लोकप्रिय हैं। बदलते वक़्त के साथ इनकी लोकप्रियता में इज़ाफ़ा ही हुआ है। कुछ ऐसे बेशक़ीमती गीत हैं जो हर नागरिक को वतन के प्रति अपनी मोहब्बत का इज़हार करने के लिए अल्फ़ाज़ देते हैं। आज़ादी स्पेशल में पेश है लोकप्रिय देशभक्ति गीत – ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झाँकी हिंदुस्तान की…।’
1954 में आई डायरेक्टर सत्यन बोस की फ़िल्म ‘जागृति’ में कई बेहतरीन गीत हैं। ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झाँकी हिंदुस्तान की‘ यह गीत बच्चों को स्वतंत्रता का मूल्य समझता है। इस गीत को लिखा और गाया है कवि प्रदीप ने। संगीत से सजाया है हेमंत कुमार ने। आज़ादी के 7 साल बाद बच्चों को केंद्र में रखकर बनाई गई यह फ़िल्म बच्चों को सकारात्मक भविष्य की दिशा दिखाने की कोशिश करती है।
आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झाँकी हिंदुस्तान की
गीत के बोल हैं:
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम…
उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट में हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती हैं बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम…
ये हैं अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला हैं आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मिनियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम…
देखो मुल्क मराठों का यह यहाँ शिवाजी डोला था
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पर्वत पे आग जली थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
शेर शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम…
जलियाँवाला बाग ये देखो यही चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इन्कलाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम…
ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
वंदे मातरम, वंदे मातरम…
∼ कवि प्रदीप
Song Picturized on: Abhi Bhattacharya
Movie: Jagriti (1954)
Singer / Lyrics: Kavi Pradeep
This was the famous song from the film “Jagriti”.
Jagriti is a 1954 Bollywood film that won the Filmfare Best Movie Award in 1956, and the lead, Abhi Bhattacharya, won the Filmfare Best Supporting Actor Award.
The film was copied in 1957 Pakistani film “Bedari” produced by Rafiq Rizvi. Even the songs were copied by replacing “Hindustan” by “Pakistan”.
The film is about a spoiled rich kid, Ajay (Rajkumar Gupta), who is a problem child and is sent away to a boarding school by his grandfather. The board school is run by Shekhar (Abhi Bhattacharya). Shekhar tries to instill good values in the students using unorthodox teaching methods. He gains the students’ trust and educates them about the heritage of their country and encourages them to become model citizens.
At the boarding school, Ajay continues his ways and gets into trouble all the time, including with Shekhar. Meanwhile, Ajay meets and befriends a crippled boy named Shakti (Rattan Kumar) whose character is the opposite of Ajay. Shakti tries very hard to help Ajay change his ways, but Ajay’s stubborn nature gets in the way.
Finally one day, Ajay attempts to leave the hostel and Shakti finds out. Shakti tries to go after him and stop him but his handicap slows him down and his earnestness to get Ajay back causes him to lose track of the heavy traffic on the road. That is when Shakti is run over in a horrific accident. This was the triggering moment in Ajay, realizing that it was because of his stubbornness, Shakti died. His moves him to change and become a better person. He goes on to excel in academics and sports.
Meanwhile, Shekhar’s method of teaching wins approval by the education board in the end. He decides to leave the boarding school to spread his message elsewhere through his unorthodox but successful ways.