प्राचीन पर्वों की यही सुंदरता है कि इनके पीछे छुपे पौराणिक राज हमें आकर्षित करते हैं। आइए जानें होलिका दहन का अभिप्राय और इतिहास। होलिका दहन का पर्व संदेश देता है कि ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।
भारत में मनाए जाने वाले सबसे शानदार त्योहारों में से एक है होली। दीवाली की तरह ही इस त्योहार को भी अच्छाई की बुराई पर जीत का त्योहार माना जाता है। हिंदुओं के लिए होली का पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित है प्रहलाद, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी। लेकिन होली की केवल यही नहीं बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित है। वैष्णव परंपरा मे होली को, होलिका-प्रहलाद की कहानी का प्रतीकात्मक सूत्र मानते हैं।
आओ जलाएं: होली दहन पर महेंद्र भटनागर की हिंदी कविता
आओ जलाएं
कलुष-कारनी कामनाएं!
नए
पूर्ण मानव बने हम,
सकल-हीनता-मुक्त, अनुपम
आओ जगाएं
भुवन-भाविनी भावनाएं!
नहीं हो
परस्पर विषमता,
फले व्यक्ति-स्वातंत्र्य-प्रियता,
आओ मिटायें
दलन-दानवी-दास्ताएं!
कठिन
प्रति चरण हो न जीवन,
सदा हों न नभ पर प्रभंजन,
आओ बहाएं
अधम आसुरी आपदाएं!