अपनी आज निहाल हुई
मन जैसे कश्मीर हुआ है
आँखें नैनीताल हुईं।
तन्हाई का बोझा ढो–ढो
कमर जवानी की टूटी
चेहरे का लावण्य बचाये
नहीं मिली ऐसी बूटी
आप मिले तो उम्र हमारी
जैसे सोलह साल हुई।
तारों ने सन्यास लिया था
चाँद बना था वैरागी
रात सध्वी बनकर काटी
दिन काटा बनकर त्यागी
आप मिले तो एक भिखारिन
जैसे मालामाल हुई।
कल तक तो सपनों की बग़िया
में पतझड़ का शासन था
कलियाँ थीं लाचार द्रोपदी
मौसम बना दुःशासन था
आप मिले तो लगा सुहागिन
हर पत्ती, हर डाल हुई।
बस्ती में रह कर भी हमने
उम्र पहाड़ों में काटी
कभी मिलीं हैं हमें ढलानें
कभी मिली ऊँची घाटी
आप मिले तो धूल राह की
चंदन और गुलाल हुई।
अंधे को मिल गई आँख
भूखे को आज मिली रोटी
जीवन की ऊसर धरती में
दूब उगी छोटी–छोटी
आप मिले तो सभी निलंबित
खुशियाँ आज बहाल हुईं
मन जैसे कश्मीर हुआ है
आँखें नैनीताल हुईं।