रंगों के त्यौहार पर बाल-कविता: आई होली

रंगों के त्यौहार पर बाल-कविता: आई होली

आई होली – प्रभा पारीक की बाल-कविता: होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।

हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।

होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। इतिहासकारों का मानना है कि आयरें में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था।

होली, जिसे ‘रंगों का त्योहार‘ के रूप में जाना जाता है, फाल्गुन (मार्च) के महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली मनाने के लिए तेज संगीत, ड्रम आदि के बीच विभिन्न रंगों और पानी को एक दूसरे पर फेंका जाता है। भारत में कई अन्य त्योहारों की तरह, होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

आई होली: प्रभा पारीक

देखो इतराती बलखाती होली आ गयी
युवतियों का योवन क्या,

प्रौढ़जनों में भी फागुन की मस्ती छा गई
देखों डूबती, इतराती होली आ गई।

कहीं होती है गुलकारी तो
कहीं बरसती है पिचकारी,

कहीं तबले खड़कते है
कहीं घुंगरू खनकते हैं।
कहीं रंग दमकते हैं
तो कहीं भांग छनती हैं,

कपडों पैर रंग छलक पड़ते हैं
लाल गालों पर दांत दमक पड़ते हैं ।

कहीं बजती है मृदंग
तो कहीं बजती है चंग,
पांव थिरकते हैं जब चढ़ जाती है भंग।

~ प्रभा पारीक

आपको प्रभा पारीक जी की यह कविता “आई होली” कैसी लगी – आप से अनुरोध है की अपने विचार comments के जरिये प्रस्तुत करें। अगर आप को यह कविता अच्छी लगी है तो Share या Like अवश्य करें।

Check Also

Hanuman - The Powerful

Hanuman: The Powerful – Poetry On Monkey God

Hanuman, also known as Maruti, Bajrangabali, and Anjaneya, is a deity in Hinduism, revered as …