अब घर लौट आओ।
थरथराती गंध
पहले बौर की
कहने लगी है,
याद माँ के हाथ
पहले कौर की
कहने लगी है,
थक चुके होंगे सफ़र में पाँव
अब घर लौट आओ।
कह रही है
जामुनी मुस्कान
फूली है निबोरी
कई वर्षों बाद
खोली है
हरेपन ने तिजोरी
फिर अमोले माँगते हैं दाँव
अब घर लौट आओ।