अभी तो झूम रही है रात - गिरिजा कुमार माथुर

अभी तो झूम रही है रात – गिरिजा कुमार माथुर

बडा काजल आँजा है आज
भरी आखों में हलकी लाज।

तुम्हारे ही महलों में प्रान
जला क्या दीपक सारी रात
निशा का­सा पलकों पर चिन्ह
जागती नींद नयन में प्रात।

जगी–सी आलस से भरपूर
पड़ी हैं अलकें बन अनजान
लगीं उस माला में कैसी
सो न पाई–सी कलियाँ म्लान।

सखी, ऐसा लगता है आज
रोज से जल्दी हुआ प्रभात
छिप न पाया पूनों का चाँद
अभी तो झूम रही है रात।

सदा ही से है ऐसा रंग
आज ही नहीं गाल कुछ लाल
उषा की भी तो पड़ती छाँह
नींद में या भिंज गए प्रवाल।

अधर पर धर क्या सोई रात
अजाने ही मेंहदी के हाथ
मला होगा केसर अंग राग
तभी पुलकीत कंचन– सा गात।

आज तेरा भोलापन चूम
हुई चूनर भी अल्हड़ प्रान
हुए अनजान अचानक ही
कुसुम से मसले बिखरे साज!

बड़ा काजल आँजा है आज
भरी आखों में हलकी लाज।

∼ गिरिजा कुमार माथुर

Check Also

National Safe Motherhood Day: Date, Theme, History, Significance

National Safe Motherhood Day: Date, Theme, History, Significance

National Safe Motherhood Day: Women have God’s gift to give birth to a child. In …