पथिकों को राह दिखाने को दी काया
मैंनें उत्तरदाइत्व सहज ही माना
जो कार्य मुझे सौंपा था उसे निभाना
जुट गया पूर्ण उत्साह हृदय में भर के
इस घोर कर्म को नित्य निरंतर करते
जो पथिक निकल इस ओर चले आते थे
मेरी किरणों से शक्ति नई पाते थे
मेरी ऊष्मा उत्साह नया भरती थी
पथ पर अपने वे बढ़ते ही जाते थे
पर धीरे धीरे पथ यह हुआ पुराना
पथिकों का कम हो गया यहां तक आना
मैं एक दीप था तम में राह दिखाता
पर कोई भी तो इधर नहीं अब आता
अस्तित्व दीप का पथिक नहीं तो क्या है
तट सूना हो तो कर्महीन नैया है
लौ मंद हुई अब क्षीण हुई बाती है
यादों की धड़कन रूकती सी जाती है
अब कार्य नहीं कुछ शेष मात्र जलता हूं
प्रभु बुझने की आज्ञा दें अब चलता हूं