आलपिन का सिर होता – रामनरेश त्रिपाठी

आलपिन के सर होता पर बाल नहीं होता है एक,
कुर्सी के टाँगे है पर फूटबाल नहीं सकती है फेंक।

कंघी के है दांत मगर वह चबा नहीं सकती खाना,
गला सुराही का है पतला किन्तु न गए सकती गाना।

जूते के है जीभ मगर वह स्वाद नही चख सकता है,
आँखे रखते हुए नारियल कभी न कुछ लिख सकता है।

है मनुष्य के पास सभी कुछ ले सकता है सबसे काम,
इसीलिए सबसे बढ़कर वह पाता है दुनिया में नाम।

∼ रामनरेश त्रिपाठी

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