दूसरा अंक — पशु का उदय
संजय तटस्थद्रष्टा शब्दों का शिल्पी है
पर वह भी भटक गया असंजस के वन में
दाायित्व गहन, भाषा अपूर्ण, श्रोता अन्धे
पर सत्य वही देगा उनको संकट–क्षण में
वह संजय भी
इस मोह–निशा से घिर कर
है भटक रहा
जाने किस कंटक–पथ पर
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