मगर जो है ख्यालों में उसे भी कह नहीं पाते
हज़ारों ज़ख्म खाकर भी किसी से कुछ नहीं कहते
किसी की बेरुख़ी लेकिन कभी हम सह नहीं पाते
हमारे मुस्कुराने पर बहुत पाबन्दियाँ तो हैं
मगर पाबन्दियों में हम कभी भी रह नहीं पाते
किसी के हाथ का पत्थर हमारी ओर आता है
मगर हम हैं कि उस पत्थर को पत्थर कह नहीं पाते
भरी महफ़िल में अक्सर हम बहुत ख़ामोश रहते हैं
हमारे नैन लेकिन कुछ कहे बिन रह नहीं पाते
किसी की याद में खोना इबादत है नहीं तो क्या
इबादत हम भी करते हैं मगर हम कह नहीं पाते
वफ़ा की राह में ‘घायल’ कभी तूफ़ां भी आता है
इमारत की तरह लेकिन कभी हम ढह नहीं पाते