अशफाक उल्ला खां: भारत के अमर शहीद क्रांतिकारी

अशफाक उल्ला खां: भारत के अमर शहीद क्रांतिकारी

अशफाक उल्ला खां: भारत के अमर शहीद क्रांतिकारी – देश में चल रहे आंदोलनों और क्रांतिकारी घटनाओं से प्रभावित अशफाक के मन में भी क्रांतिकारी भाव जागे और उसी समय मैनपुरी षड्यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। इसके बाद वे ऐतिहासिक काकोरी कांड में सहभागी रहे और पुलिस के हाथ भी नहीं आए।

इस घटना के बाद वे बनारस आ गए और इंजीनियरिंग कंपनी में काम शुरू किया। उन्होंने कमाए गए पैसे से कांतिकारी साथियों की मदद भी की। काम के संबंध में विदेश जाने के लिए वे अपने एक पठान मित्र के संपर्क में आए, जिसने उनके साथ छल किया और पैसों के लालच में अंग्रेज पुलिस को सूचना देकर अशफाक उल्ला खां को पकड़वा दिया।

अशफाक उल्ला खां तो भारत के प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। वे उन वीरों में से एक थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। अपने पूरे जीवन काल में अशफाक, हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे।

अशफाक उल्ला खां: डा. हरीशचंद्र झंडई

भारत का वीर, चिराग,
आजादी का दीवाना,
पंडित राम प्रसाद बिस्मल का भक्त
कवि ‘हसरत’ के नाम का क्रांतिकारी,
वह था अशफाक उल्ला खां।
वतन की रोशनी, प्रेरणा शक्ति,
सामने था मकसद,
‘बंदे मारतम की ज्वाला’।
मां को था डर… कहा, मैं तेरी देशभक्ति
को परीक्षा लेना चाहती हूं?
जलाया दीया कहा… अपनी हथेली कर आगे,
अशफाक ने कर दी हथेली आगे, उफ न की,
मां ने दिया आशीर्वाद,
जुट गया बेटा… हे मातृभूमि ! मैं सज-धज कर आ गया हूं।
मैं तेरी सेवा करूंगा।
चल पड़ा विदेशी हकूमत से टकराने,
करता रहा संघर्ष, नसौब रही कांटों को शैया,
भर दी खुशबू “जंग-ए-आजादी” की,
विदेशी शक्ति के विरुद्ध,
पकड़ लिया गया एक कांड में,
जो जुर्म नहीं था इल्जाम लगा।
चल पड़ा वह हाथ में “कुरान शरीफ” को लेकर,
अपने शहर शाहजहांपुर से दूर,
कलाम पढ़ते यद़ते चूम लिया फांसी के तख़्त को.
देख कर बोला, “ए मेरी बुलबुल! मैं सज-धज कर तुमसे
निकाह करने के लिए आ गया हूं।”
रस्सी को चूम ललकार कर बोला,
इंसानी खून किया नहीं मैंने, गलत इल्जाम है मुझ पर, खुदा
मेरा जन्नत में इंसाफ करेगा,
नकार दिया सब कुछ, पढ़ा आखिरी कलाम
अपनी शायरी का,
‘तंग आकर बेदाद से चल दिए,
सु-ए-आदम फैजाबाद से’,
बतन हमेशा रहे शादकाम और आजाद,
हमारा क्या है हम रहें न रहें,
सो गया बह आजादी का दीवाना,
हमेशा अपनी मातृभूमि के लिए।

~ “अशफाक उल्ला खां” poem by ‘डा. हरीशचंद्र झंडई

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