बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु - सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु!
पूछेगा सारा गाँव, बन्धु!

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बन्धु!

बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु!
पूछेगा सारा गाँव, बन्धु!

वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बन्धु!

बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु!

∼ सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

Check Also

World Lupus Day: Date, History, Significance, Facts about autoimmune disease

World Lupus Day: Date, History, Significance, Facts about autoimmune disease

World Lupus Day is dedicated to people worldwide who suffer from this debilitating autoimmune disease …