बात कम कीजे - निदा फ़ाज़ली

बात कम कीजे – निदा फ़ाज़ली

बात कम कीजे, ज़िहानत को छिपाते रहिये
यह नया शहर है, कुछ दोस्त बनाते रहिये

दुश्मनी लाख सही, ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिये

यह तो चेहरे का कोई अक्स है, तस्वीर नहीं
इसपे कुछ रंग अभी और चढ़ाते रहिये

ग़म है आवारा, अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिये वहाँ मिलते मिलाते रहिये

जाने कब चाँद बिखर जाए घने जंगल में
घर की चौखट पे कोई दीप जलाते रहिये

∼ निदा फ़ाज़ली

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