बड़ा दिन: 25 दिसंबर को बड़ा दिन कहा जाता है, इसका कारण है कि यूरोप में कुछ लोग जो ईसाई समुदाय से नहीं थे वे सूर्य के उत्तरायण के मौके को त्योहार के रूप में 25 दिसंबर को मनाया करते थे। इस दिन के बाद से दिन धीरे-धीरे बड़ा होना शुरू हो जाता है. यूरोप में इस दिन को गैर ईसाई लोग सूर्यदेव के जन्मदिन के तौर पर मनाया करते थे।
बड़ा दिन: राम प्रसाद शर्मा ‘प्रसाद’
क्रिसमस से प्यार करो,
खुशियों का इजहार करो।
नाचो-गाओ जश्न मनाओ,
गुण प्रभु यीशू के गाओ।
कंजूसी छोड़ बांटो प्यार,
विश्व प्रसिद्ध यह त्यौहार।
अखिल विश्व मनाए इसको,
क्रिसमस पेड़ सजाए इसको।
हैप्पी क्रिसमस सांता बोले,
द्वार-द्वार सबके डोले।
गिफ्ट ले-दे आनंद उठाओ,
क्रिसमस (बड़ा दिन) की
तुम शान बढ़ाओ।
अरे क्रिसमस का स्वागत हो,
ऐसी सबकी सच आदत हो।
भविष्य आपका रहे खुशहाल,
कामना करें वृद्ध व बाल।
पर्व प्यारा उजाला लाए,
भाग्य सबका यह चमकाए।
यीशू-जन्म की याद दिलाता,
हर ईसाई इसे मनाता।
बड़ा दिन भी इसको कहते,
झरने खुशियों के हैं बहते।
‘क्रिसमस’ की शुभकामनाएं,
‘प्रसाद’ हम सबको भाएं।
~ ‘बड़ा दिन‘ poem by ‘राम प्रसाद शर्मा ‘प्रसाद’‘
क्रिसमस पर्व की 10 परंपराएं, जिनके बिना अधूरा है Christmas Festival
ईसाई धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है क्रिसमस। इस दिन प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया जाता है। कहते हैं कि ईसा मसीह जिन्हें जीसस क्राइस्ट और यीशु भी कहते हैं, का जन्म 25 दिसंबर 6 ईसा पूर्व हुआ था। उनके जन्मोत्सव पर खास तरह की परंपराओं का पालन करते हैं जो कि वक्त के साथ इस पर्व से जुड़ती गई। आओ जानते हैं उन्हीं में से खास 10 परंपराएं, जिनके बगैर अधूरा है क्रिसमस का पर्व।
- क्रिसमस ट्री : सदाबहार क्रिसमस वृक्ष डगलस, बालसम या फर का पौधा होता है जिस पर सजावट की जाती है। क्रिसमस ट्री को रिबन, गिफ्ट, घंटी और लाइट्स लगाकर सजाया जाता है। यह क्रिसमस की परंपरा का अहम हिस्सा है।
- सैंटा क्लॉज : मान्यता अनुसार सैंटा क्रिसमस के दिन स्वर्ग से आकर बच्चों के लिए टॉफियां, चॉकलेट, फल, खिलौने व अन्य उपहार बांटकर वापस स्वर्ग में चले जाते हैं। सैंटा क्लॉज चौथी शताब्दी में मायरा के निकट एक शहर में जन्मे थे। उनका नाम निकोलस था। अब लोग उन्हीं के भेष में बच्चों को गिफ्ट देते हैं।
- मोजे लटकाना : संत निकोलस के काल में बच्चे मौजे लटका देते थे ताकि सैंटा उसमें टॉफियां या तोहफे रख सके। हलांकि आज भी कई जगहों पर यह किया जाता है ताकि सैंटा क्लॉज़ आ सकें और उनमें अपने उपहार डाल सकें।
- जिंगल बेल : गिरजाघरों में पारंपरिक तरीके से ईसा मसीह के लिए गाए जा रहे भक्ति गीत के अलावा ‘जिंगल बेल्स’, ‘ओह होली नाइट’ और ‘सैंटा क्लॉज इज कमिंग टु टाउन’ सरीखे गानों से भी माहौल खुशनुमा हो जाता है। यह भी क्रिसमस परंपरा का खास हिस्सा है।
- रिंगिंग बेल्स : क्रिसमस के दिन घंटी को बजाने का भी रिवाज है जिसे रिंगिंग बेल कते हैं। यह बेल सदियों में सूर्य के लिए भी बजाई जाती है और खुशियों के लिए भी। मान्यता है कि घर को घंटियों से सजाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।
- झांकियां : क्रिसमय के दौरान घर और चर्च में ईसा के जन्म की झांकिया बनाई जाती है जिसमें भेड़, गोशाला या घोड़ों के अस्तबल में बालक येशु को मदर मैरी के साथ दर्शाया जाता है। किसी बर्फ के क्षेत्र में सैंटा क्लॉज को उनके हिरणों के साथ दिखाया जाता है। इसी तरह की झांकियां होती हैं।
- स्वादिष्ट पकवान और पुडिंग: कई पश्चिम देशों में स्मोक्ड टर्की, फ्रुअ केक, विगिल्ला, जेली पुडिंग, टुररॉन आदि को बनाना पसंद किया जाता है। भारत में भी कई तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं। क्रिसमस पर हर देश में अलग परम्परागत भोजन भी बनता है। कुछ लोग दूध और कुकीज के रुप में सैंटा के लिये भोजन रखते हैं। ईसा मसीह के जन्मदिन पर खुशियां बांटने के लिए केक भी खाया जाता है और लोगों को बांटा जाता है। क्रिसमय पुडिंग बनाने की परंपरा 1970 में प्रारंभ हुई। यह आलू बुखारे से दलिया जैसा व्यंजन बनाया जाता है। बाद में मांस, शराब और रोटी मिलाकर पुडिंग बनाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
- प्रार्थना और मोमबत्तियां: इस दिन चर्च में विशेष तौर पर सामूहिक प्रार्थना भी की जाती है। इस दिन लोग चर्च जाते हैं और क्रिसमस कैरोल (धार्मिक गीत) गाते हैं। क्रिसमय पर गिरजाघरों यानी चर्च में जाकर लोग ईसा मसीह और मदर मैरी की मूर्ति के समक्ष मोमबत्तियां जलाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। मान्यता है कि अलग-अलग रंगों की मोमबत्तियां जलाने से जीवन में खुशियां और सफलता आती हैं।
- गिफ्ट और क्रिसमस कार्ड: परंपरा से अब सिर्फ सांता ही उपहार नहीं देते हैं बल्कि क्रिसमय पर लोग एक-दूसरे को उपहार देते हैं। कई लोग सैंटा का भेष धारण करके बच्चों को टॉफियां, चॉकलेट, फल, खिलौने व अन्य उपहार बांटते हैं। गिफ्ट के साथ ही क्रिसमस कार्ड भी दिए जाते हैं। कहते हैं कि सर्वप्रथम क्रिसमस कार्ड विलियम एंगले द्वारा सन् 1842 में अपने दोस्तों को भेजा था। बाद में यह कार्ड महारानी विक्टोरिया को दिखाया गया। इससे खुश होकर उन्होंने अपने चित्रकार डोबसन को बुलाकर शाही क्रिसमस कार्ड बनवाने के लिए कहा और तब से क्रिसमस कार्ड की शुरुआत हो गई।
- नए वस्त्र और पिकनिक: क्रिसमय की 10 दिन की छुट्टियों के दौरान लोग या तो अपने पैत्रक घर, नाना नानी या दादा दादी के घर जाकर क्रिसमय मनाते हैं। कुछ लोग समुद्र के तट पर जाकर क्रिसमस का आनंद लेते हैं। इस दिन नए वस्त्रों में इस दिन लाल और हरे रंग का अत्यधिक उपयोग होता है क्योंकि लाल रंग जामुन का होता है और यह ईसा मसीह के खून का प्रतीक भी है। इसमें हरा रंग सदाबहार परंपरा का प्रतीक है।