मौसम पाती लिख रहा, ठगिनी बहे बयार
अष्ट सिद्धि नौ निधि भरा, देत थके को छाँव
नंद गाँव भी धन्य है, धन्य आप का गाँव
पीले फूलों से सजी, सरसों की सौगात
कहती ज्यों सौगंध से, छुओ न हमरे गात
भीग गए ये कंठ पर, पलक न भीजें आज
नैन झुके, झुकते गए, चुनरी लाल सलाज
बरसाना रंग-रस हुआ संग ढोलक की थाप
सुबह सुहानी आप से, श्याम सलोनी छाप
काँधे पर अब हल नहीं, कर्ज़-कंस जंजीर
डर-झर रहे न साल भर, सुन हलधर के वीर
माटी सोना उगलेगी, गोवर्धन रख पास
वर्धन ‘गृह उद्योग’ का देगा नित-नित आस