बैरागी भैरव - बुद्धिनाथ मिश्र

बैरागी भैरव – बुद्धिनाथ मिश्र

बहकावे में मत रह हारिल
एक बात तू गाँठ बाँध ले
केवल तू ईश्वर है
बाकी सब नश्वर है

ये तेरी इन्द्रियाँ, दृश्य
सुख–दुख के परदे
उठते–गिरते सदा रहेंगे
तेरे आगे
मुक्त साँड बनने से पहले
लाल लोह–मुद्रा से
वृष जाएँगे दागे

भटकावे में मत रह हारिल
पकड़े रह अपनी लकड़ी को
यही बताएगी अब तेरी
दिशा किधर है।

ये जो तू है, क्या वैसा ही है
जैसा तू बचपन में था?
कहाँ गया मदमाता यौवन
जो कस्तूरी की खुशबू था?

दुनियाँ चलती हुई ट्रेन है
जिसमें बैठा देख रहा तू
नगर–डगर, सागर, गिरि–कानन
छूट रहे हैं एक–एक कर।

कोई फ़र्क नहीं तेरे
इस ब्लैक बॉक्स में
भरा हुआ पत्थर है
या हीरा–कंचन है।
जितना तू उपयोग कर रहा
मायावृत जग में निर्मम हो
उतना ही बस तेरा धन है।

एक साँस, बस एक साँस ही
तू खरीद ले
वसुधा का सारा वैभव
बदले में देकर!

∼ डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र

Check Also

Maha Kumbh 2025: क्या होता है अखाड़ा और कौन से हैं भारत के प्रमुख अखाड़े

Maha Kumbh and Akhada: क्या होता है अखाड़ा और कौन से हैं भारत के प्रमुख अखाड़े

Maha Kumbh and Akhada 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में 13 जनवरी से महाकुंभ …